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गोपाल कांडा की आस्था या ढोंग

नई दिल्ली। किसी आरोपी का धर्म व पुजा-पाठ पर यकीन करना थोड़ा अटपटा सा लगता है। हरियाणा के पूर्व मंत्री व गीतिका शर्मा खुदकुशी मामले के आरोपी गोपाल कांडा का भी एक बाबा पर खुब विश्वास था। तारा बाबा की कही गई सभी बातों पर कांडा आंख बंद कर विश्वास कर लेते थे। कांडा ने अपनी सफलता का श्रेय पूरी तरह से बाबा को दिया है।

By Edited By: Published: Thu, 30 Aug 2012 02:01 PM (IST)Updated: Thu, 30 Aug 2012 04:46 PM (IST)
गोपाल कांडा की आस्था या ढोंग

नई दिल्ली। किसी आरोपी का धर्म व पूजा-पाठ पर यकीन करना थोड़ा अटपटा सा लगता है। हरियाणा के पूर्व मंत्री व गीतिका शर्मा खुदकुशी मामले के आरोपी गोपाल कांडा का भी एक बाबा पर खुब विश्वास था। तारा बाबा की कही गई सभी बातों पर कांडा आंख बंद कर विश्वास कर लेते थे। कांडा ने अपनी सफलता का श्रेय पूरी तरह से बाबा को दिया है। बाबा जैसा कहते थे कांडा बैसा ही करते थे।

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गौरतलब है कि हरियाणा का सिरसा शहर में तारा बाबा आम लोगों के बीच अधिक प्रचलित नहीं थे। तारा बाबा ने जब शरीर छोड़ा तो उनकी समाधि बनवाने में काडा की खासा भूमिका थी।

कौन है तारा बाबा

सिरसा में रानिया रोड पर राजस्थान बॉर्डर के पास तारा बाबा का आश्रम है। तारा बाबा में आस्था रखने वालों की भीड़ में काडा भी शामिल थे। बाबा की समाधी बनने के बाद से भक्तों की भीड़ ज्यादा होने लगी। काडा ने बाबा के लिए 25 एकड़ जमीन पर भव्य समाधि स्थल बनवाया। कुटिया में बच्चों के लिए झूले लगवाए गए, खान-पान की व्यवस्था की गई। तारा बाबा की बरसी पर हर साल आश्रम में कार्यक्रम का आयोजन होता हैं।

तारा बाबा की कुटिया का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। वह ब्रह्माचारी संत थे। उनका जन्म हिसार जिले के गाव पाली में हुआ था। उनके पिता जमीन दार व पशु व्यापारी थे। जब वे तीन वर्ष के थे, उनके माता पिता का देहात हो गया था। माता- पिता के देहात के बाद उनकी बुआ उन्हें सिरसा ले आई और उनका पालन पोषण किया। दस वर्ष की आयु में उनका ध्यान भक्ति में लग गया और उन्होंने अपना समय बाबा बिहारी जी की सेवा में लगा दिया। 14 वर्ष की आयु में उन्होंने बिहारी बाबा के शिष्य बाबा श्योराम से नाम ले लिया। उसके बाद वह हिसार के पास वन में तप करने चले गए। लेकिन राम नगरिया गाव वाले बाबा को बड़ी मिन्नतों के बाद गाव वापस ले आए। उसके बाद बाबा को गाव के बाहर एक कुटिया बनाकर दी गई। बाबा ने कई साल वहा पर तपस्या की। मौन धारण किया। अक्सर शिवरात्रि को वह कुटिया से बाहर निकलते थे।

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