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सांसद रहते कमल नाथ ने छिंदवाड़ा में नौ साल पहले शुरू करवा दी थी कांट्रैक्ट फार्मिंग

कांट्रैक्ट फार्मिग (अनुबंधित खेती) को लेकर भले ही इन दिनों पंजाब हरियाणा समेत देश के अन्य राज्यों के किसानों ने हल्ला बोल रखा है लेकिन मध्य प्रदेश का किसान इसी कांट्रैक्ट फार्मिग के जरिये लागत से दोगुना तक मुनाफा ले रहा है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 15 Dec 2020 08:25 PM (IST)Updated: Tue, 15 Dec 2020 08:25 PM (IST)
सांसद रहते कमल नाथ ने छिंदवाड़ा में नौ साल पहले शुरू करवा दी थी कांट्रैक्ट फार्मिंग
कमल नाथ ने छिंदवाड़ा में 9 साल पहले कांट्रैक्ट फार्मिंग की शुरुआत करवाई थी। (फाइल फोटो)

आशीष मिश्रा, भोपाल। केंद्रीय कृषि कानूनों में शामिल कांट्रैक्ट फार्मिग (अनुबंधित खेती) को लेकर भले ही इन दिनों पंजाब, हरियाणा समेत देश के अन्य राज्यों के किसानों ने हल्ला बोल रखा है लेकिन मध्य प्रदेश का किसान इसी कांट्रैक्ट फार्मिग के जरिये लागत से दोगुना तक मुनाफा ले रहा है। जो कांग्रेस आंदोलन को हवा देने का काम कर रही है उसी के सांसद रहे व पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने ही अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा में प्रदेश में सबसे पहले कांट्रैक्ट फार्मिंग की शुरुआत करवाई थी।

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नौ साल पहले पेप्सीको और रिलायंस कंपनी के साथ कांट्रैक्ट फार्मिंग 

चार ब्लॉक में नौ साल पहले पेप्सीको और रिलायंस कंपनी के साथ कांट्रैक्ट फार्मिंग की शुरुआत हुई थी। पेप्सीको ने चिप्स के लिए आलू और रिलायंस ने सब्जी उत्पादन के लिए किसानों से अनुबंध किया था। सबसे पहले इसके तहत महज पांच एकड़ में आलू की फसल लगाई गई थी। आज जिले में दो हजार एकड़ रकबे में आलू बोया जा रहा है। हर साल सैकड़ों टन आलू निर्यात किया जाता है। हाल ही में विशेष ट्रेन बुक कर 250 टन आलू हावड़ा भेजा गया। उमरेठ ब्लॉक के रिधोरा में कंपनी का कलेक्शन सेंटर है।

अनुबंध के बाद किसी भी प्रकार की समस्या नहीं 

किसानों के अनुसार कंपनी से अनुबंध के बाद किसी भी प्रकार की समस्या नहीं है। 30 से 40 हजार रुपये प्रति एकड़ खर्च होता है और मुनाफा भी 60 से 70 हजार रुपये प्रति एकड़ तक हो जाता है। हालांकि रिलायंस कंपनी ने अपना काम बंद कर दिया है।

'विन-विन फार्मूला' है सफल

जिले के उमरेठ, चौरई, बिछुआ और मोहखेड़ ब्लॉक के किसानों ने इस कंपनी के साथ अनुबंध किया है। बिछुआ ब्लॉक के रिधोरा में तो 80 फीसद किसान इसी प्रकार खेती कर रहे है। कंपनी और किसानों के बीच की कड़ी दविंद्र डोबलेकर ने बताया कि 2011 में काम शुरू करने के साथ इस प्रोजेक्ट को 'विन-विन फार्मूला' नाम दिया गया। यानी किसान की मेहनत और खर्च के हिसाब से आलू का दाम तय किया जाता है। विन-विन यानी न किसान को नुकसान हो और न ही कंपनी को। कंपनी की ओर से खाद, बीज दिया जाता है, साथ ही खेती की तरीका भी बताया जाता है। फसल तैयार हो जाने पर कंपनी को दे दी जाती है।

किसान चाहे तो अनुबंध तोड़ भी सकते है

इस साल बाजार में आलू की कीमत 50 से 60 रुपये प्रति किलो तक चली गई थी। हालांकि अनुबंध के मुताबिक तय दाम पर ही किसान को आलू देना होता है लेकिन इस साल कंपनी ने आलू की बढ़ी कीमत को देखते हुए अनुबंध के बाद भी कीमत बढ़ाकर 40 रुपये प्रति किलो के भाव से लिया। किसान चाहे तो अनुबंध तोड़ भी सकता है।

कांट्रैक्ट फार्मिंग से 50 हजार रुपये प्रति एकड़ कमाई 

 मेरे पास दस एकड़ जमीन है, बीते कई सालों से इस प्रोजेक्ट से जुड़ा हुआ हूं। इस साल 50 हजार रुपये प्रति एकड़ से कमाई हुई है।

अखिलेश पवार, किसान, रिधोरा, छिंदवाड़ा

कांट्रैक्ट फार्मिग से कोई समस्या नहीं

केंद्र सरकार जो कृषि कानून लेकर आई है, उसमें कोई समस्या नहीं है। कांट्रैक्ट फार्मिग में फसल को बेचने को लेकर चिंता नहीं रहती। अनुबंध तोड़ने का भी रास्ता रहता है।

रामदयाल, किसान, रिधोरा, छिंदवाड़ा


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