Move to Jagran APP

लड़कों सी हेयरस्टाइल, लड़कों जैसे कपड़े पहन जब मर्दों वाले काम में उतरीं दो युवा बहनें, लेकिन...

आज ज्योति 18 की और नेहा 16 की है। इंटर पास ज्योति ने पांच साल में पिता की गुमटीनुमा दुकान को सलून की शक्ल दे दी। काम बढ़िया चल रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 03 Jan 2019 09:30 AM (IST)Updated: Thu, 03 Jan 2019 09:30 AM (IST)
लड़कों सी हेयरस्टाइल, लड़कों जैसे कपड़े पहन जब मर्दों वाले काम में उतरीं दो युवा बहनें, लेकिन...
लड़कों सी हेयरस्टाइल, लड़कों जैसे कपड़े पहन जब मर्दों वाले काम में उतरीं दो युवा बहनें, लेकिन...

कुशीनगर, अजय कुमार शुक्ल। क्या आपने अपने गांव, शहर, गली- मुहल्ले में मौजूद हेयरकटिंग की किसी दुकान में जवान लड़की को मर्दों के दाढ़ी-बाल बनाते हुए देखा है? नहीं? आइये चलते हैं उत्तर प्रदेश के बनवारी टोला गांव। कुशीनगर जिले का पडरौना क्षेत्र। कसया विकास खंड के गांव बनवारी टोला निवासी ध्रुव नारायण गांव में गुमटी लगा दाढ़ी-बाल बनाने का काम किया करते। छह बेटियों के पिता ने छोटी सी दुकान की कमाई के बूते चार बेटियों के हाथ पीले कर दिए। सब ठीक चल रहा था। अब दो छोटी बेटियों की जिम्मेदारी ही सिर पर थी।

loksabha election banner

13 साल की ज्योति और 11 साल की नेहा। दोनों स्कूल में पढ़ती थीं। साल 2014 में ध्रुव नारायण को लकवा मार गया। हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया। अब दुकान बंद हो गई। घर का चूल्हा जलना दूभर हो उठा। ऐसे में ज्योति ने पिता की बंद पड़ी दुकान को खोला। काम कतई आसान न था। लेकिन विकल्प भी तो न था।

आज ज्योति 18 की और नेहा 16 की है। इंटर पास ज्योति ने पांच साल में पिता की गुमटीनुमा दुकान को सलून की शक्ल दे दी। काम बढ़िया चल रहा है। छोटी नेहा भी दीदी का हाथ बंटाने लगी है। दोनों बहनों ने परिवार को भंवर से उबार लिया है। आज लोग इन्हें हैरत से देखते हैं। स्वाभाविक भी है। लोगों ने जवान लड़कियों को ये काम करते न तो कभी देखा था न सुना था।

ज्योति बताती है, यह काम बहुत कठिन था। तमाम तरह की परेशानियां आईं। लेकिन मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था। मजबूरी में हिम्मत नहीं छोड़ी। जैसे-जैसे हिम्मत बढ़ती गई हालात बदलते गए। आज नेहा भी मेरे साथ दुकान में लोगों के दाढ़ी-बाल बनाने का काम करने लगी है। हमारी कमाई से ही घर का खर्च चल रहा है तो पिता का इलाज भी...।

बकौल ज्योति, हमारे समाज में यह काम पुरुष ही करते आए हैं। जैसे मेरे दादा-परदादा और पिता ने भी किया। मैंने जब पिता की दुकान संभाली तो बहुत परेशानी हुई। इतनी कि मुझे अपना वेश बदलने को मजबूर होना पड़ा। लड़कों जैसे बाल रखे, लड़कों जैसे कपड़े पहने और लड़कों सा बर्ताव करती। नाम भी बदला। दीपक उर्फ राजू। इन सब से थोड़ी आसानी हुई। लोगों को पता चल ही जाता है। लेकिन तब तक लोग भी इस नई व्यवस्था में ढलते गए। आज यहां सभी को पता है कि हम लड़कियां हैं...।

ज्योति और नेहा बतातीं हैं कि दुकान से रोजाना 400 तक कमा लेती हैं। आजकल पिता भी साथ आते हैं। दुकान के बाहर बैठे रहते हैं। इससे संबल मिलता है। लेकिन हम यह काम जारी रखना नहीं चाहतीं। इसकी जगह ब्यूटीपार्लर खोलने की कोशिश में हैं। ताकि कमाई के साथ सम्मान भी मिल सके...। सम्मान मिल सके? हमने पूछा, क्या यह सम्मानजनक नहीं? ज्योति ने साफ कहा, नहीं। बोलीं, हमने बड़ी मजबूरी में यह काम किया और अब भी कर रही हैं। लेकिन यह हमारे लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था और अब भी है। लोगों ने हमारी मजबूरी को नहीं समझा।

समाज ने हमें अच्छी नजरों से नहीं देखा...। समाज की पुरुषप्रधान सोच के आगे हम बहनें और संघर्ष नहीं कर सकती हैं। आप जिस हद तक सोच सकते हैं, हमें उस हद तक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सामाजिक और व्यवाहारिक दोनों स्तरों पर...। शुरू में संघर्ष अधिक था, अब उतना नहीं, पर है...। परिवार की तो मजबूरी थी, लेकिन हमारे अपने समाज और रिश्तेदारों तक का सपोर्ट न था। आज रिश्ते-नातेदार इस मजबूरी को समझ पाए हैं, लेकिन दूसरे नहीं।

मुझे अपनी बेटियों पर गर्व...

मां लीलावती कहती हैं, मेरी बेटियों ने जिस तरह हिम्मत जुटा परिवार को संकट से उबारा, पूरा घर संभाला है, मुझे उनके इस साहस पर लाज नहीं, नाज है। गृहस्थी इनके दम पर चल रही है। हम तो हार गए थे, जब इनके पिता को लकवा मारा। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था, तब मेरी ताकत बनकर सामने आई मेरी बेटियां।

समाज क्या कहता है चिंता नहीं...

पिता ध्रुव नारायण ने कहा, ईमानदारी के काम से कमाती हैं मेरी बेटियां। समाज क्या कहता है, इसकी चिता नहीं हैं। मुझे खुशी है इनके इस साहस ने परिवार को संभाल लिया। मेरी बेटियां बेटों के समान हैं। उनके इस साहस और संघर्ष को देख आंखें भर आती हैं, लेकिन सीना गदगद हो जाता है।

यह आपका हक है, डटी रहें...

जो अपने हक की ताकत नहीं जानता, ईश्वर उसे हिम्मत नहीं देता। हिम्मत से आगे बढ़ें। डरे नहीं। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। छोटी सी थी तब पिता गुजर गए। मुंबई से शिकागो भेज दी गई। किसी रिश्तेदार के यहां। लोगों का, समाज का अकेले सामना किया। सामूहिक बलात्कार का शिकार तक हुई। लेकिन हिम्मत न हारी। वह सब काम करने लगी, जिन्हें मर्दों ने अपना अधिकार समझ रखा था। मुंबई लौटी तो हेयर स्टाइलिस्ट बनने की ठानी। जिस सलून में काम करती, ड्रेस कोड फॉलो करने को कहते। मैंन नहीं किया। आज इस काम में मेरी अपनी मुकम्मल पहचान है।

सपना भावनानी, मशहूर हेयरस्टाइलिस्ट

हिम्मत न हारें ज्योति, नेहा : जावेद हबीब

हमने देश के मशहूर हेयरस्टाइलिस्ट जावेद हबीब को ज्योति और नेहा की बात बताई। उनकी उलझन भी बताई। पूछा, आधुनिकता के दौर में गांव कस्बों की लड़कियों के लिए इस पेशे में आना कठिन क्यों? जावेद हबीब ने कहा, ज्योति और नेहा को मैं शाबाशी देता हूं। उनके जज्बे को सलाम है। दोनों हिम्मत न हारें। समाज इसी से बदलता है। हमारे देश-समाज में एक टैबू है इस प्रोफेशन पर, धारणा है कि यह नाई का काम है। छोटा काम है। वे इसे प्रोफेशन के तौर पर नहीं देखते हैं। मैं मानता हूं कि अगर घर चलाने के लिए यह करना पड़े तो इसमें बुराई क्या है। मैंने भी तो किया है। मेरा मानना है कि यह प्रोफेशन महिला-पुरुष दोनों के लिए ही समान है। इससे बड़ी स्किल नहीं है दुनिया में। दुनिया का सबसे पुराना प्रोफेशन बाल काटना ही तो है। जब तक दुनिया चलेगी, बाल काटने का प्रोफेशन कहीं नहीं जाने वाला है। इसमें कोई मंदी नहीं आने वाली है।

अगर आप डॉक्टर बन सकते हैं, तो क्या हम बालों के डॉक्टर नहीं बन सकते हैं। इसमें सरकार को भी अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी। अगर हम इसे वास्तविक प्रोफेशन बनाना चाहते हैं, तो कम से कम 10 से 15 साल की योजना होनी चाहिए। स्कूली प्रक्रिया से जोड़ना होगा। हेयर एंड ब्यूटी प्रोफेशन शीर्ष पर है। अगर आप हुनरमंद हैं तो आपको किसी के सामने हाथ फैलाने या भीख मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं अपने प्रोफेशन की ही बात करूं तो आपको केवल एक कुर्सी चाहिए। अगर कुर्सी भी नहीं है तो कोई बात नहीं। आपको एक बॉक्स चाहिए। उसमें आपके सारे औजार मसलन कैंची, कंघी वगैरह होंगे। ये चीज आपकी अजीविका चला सकती है। हमें इसमें शर्म बिलकुल नहीं करनी चाहिए। हमें यह देखना चाहिए कि हमारे घर की जरूरतें क्या हैं, जैसा ज्योति और नेहा ने किया। यह बात दिमाग से निकालनी पड़ेगी कि लोग क्या बोलेंगे। बाहर वालों की चिंता क्यों करना?

संकलन: मुंबई से स्मिता श्रीवास्तव 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.