जस्टिस भानुमति ने बयां किया दर्द, कहा- मैं भी रही हूं अदालती लेटलतीफी की शिकार
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति जस्टिस आर. भानुमति ने कहा कि वह और उनका परिवार जटिल कानूनी प्रक्रियाओं और देरी का शिकार रहा है। वह 19 जुलाई को रिटायर होने जा रही हैं।
नई दिल्ली, पीटीआइ। 19 जुलाई को रिटायर होने जा रही सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति जस्टिस आर. भानुमति ने शुक्रवार को कहा कि वे और उनका परिवार जटिल कानूनी प्रक्रियाओं और देरी का शिकार रहा है। उन्हें बस दुर्घटना में मरे पिता का मुआवजा मिलने में काफी परेशानी हुई थी। शुक्रवार को आखिरी बार अदालत की कार्यवाही का संचालन करने वाली महिला जज ने अपने विदाई संबोधन में कहा कि उनके तीन दशक के करियर में अधीनस्थ अदालत से शीर्ष कोर्ट तक पहुंचना काफी कठिनाई भरा रहा।
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने जस्टिस भानुमति को एक महान जज बताया जिन्हें 16 दिसंबर, 2012 को हुए निर्भया कांड के ऐतिहासिक फैसले में चार दोषियों को फांसी देने के लिए याद किया जाएगा। जस्टिस भानुमति ने उस पीठ का नेतृत्व किया, जिसने 20 मार्च की सुबह दोषियों को फांसी देने से एक घंटे पहले तक मामले की सुनवाई की। एक जज के रूप में अपने तीन दशक लंबे करियर के उपलक्ष्य में आयोजित एक वेबिनार में, जस्टिस भानुमति ने अपने पिता की दुर्घटना और मुआवजे से संबंधित विलंब के बारे में बात की।
उन्होंने बताया कि मैं और मेरा परिवार भी जटिल कानूनी प्रक्रियाओं और उनमें देरी के पीड़ित रहे हैं। इस लेटलतीफी की वजह से एक बस दुर्घटना में मेरी पिता की मृत्यु के बाद मुझे मुआवजा नहीं मिल सका था। मैंने अपने पिता को एक बस हादसे में खो दिया था। जब मैं दो साल की थी। उन दिनों हमें मुआवजे के लिए मुकदमा दर्ज करना होता था। मेरी मां ने मुकदमा दाखिल किया और अदालत ने आदेश जारी किया लेकिन, हमें जटिल प्रक्रियाओं और मदद की कमी की वजह से पैसा नहीं मिल सका।
न्यायमूर्ति भानुमति ने कहा कि पिता की दुर्घटना में मृत्यु के कारण मां को बहुत कठिनाइयों में उनका लालन-पालन करना पड़ा। जस्टिस भानुमति ने कहा कि निचली अदालत से शीर्ष अदालत तक बतौर न्यायाधीश मैंने तीन दशक के कॅरियर में अकारण अवरोध देखे हैं। बता दें कि जस्टिस भानुमति की सेवानिवृत्ति के बाद शीर्ष अदालत में अब दो महिला जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी रह गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में इससे पहले कभी तीन महिला जज एक साथ नहीं रहीं।