न्यायपालिका को आरोपित करने की बढ़ रही प्रवृत्ति, संस्थाओं को हो रहा नुकसान : जस्टिस कौल
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय किशन कौल ने कहा है कि न्यायपालिका को आरोपित करने की प्रवृत्ति समाज में बढ़ती जा रही है। सभी तरह के संस्थान इसका निशाना बन रहे हैं।
नई दिल्ली, पीटीआइ। न्यायपालिका को आरोपित करने या उसे वर्गीकृत करने की प्रवृत्ति समाज में बढ़ती जा रही है। यह समाज में बढ़ती असहिष्णुता की ओर संकेत करती है। सभी तरह के संस्थान इस बढ़ती असहिष्णुता का निशाना बन रहे हैं। कुछ अवकाश प्राप्त न्यायाधीश दुष्परिणामों को लेकर चिंतित भी दिखाई दिए हैं। यह बात सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय किशन कौल ने कही है। वह मद्रास बार एसोसिएशन द्वारा कोविड-19 के दौर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विषय पर आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान में विचार व्यक्त कर रहे थे।
जस्टिस कौल ने कहा, किसी फैसले की आलोचना से कोई समस्या नहीं है। लेकिन जब फैसला या निर्णय देने वाले व्यक्ति को वर्गीकृत किया जाने लगता है और एक खास चश्मे से देखा जाने लगता है तो समस्या पैदा होती है। उससे संबंधित संस्था को नुकसान पहुंचता है। इसके बाद उस संस्था से जुड़े लोग आशंकाओं से घिरने लगते हैं। उन्हें अवकाश प्राप्ति के बाद के समय की चिंताएं सताने लगती हैं। कई संस्थाएं इस खतरे से खुद को घिरा हुआ महसूस कर रही हैं। जस्टिस कौल की यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर के हाल के ब्लॉग से जोड़कर देखी जा रही है।
ब्लॉग में जस्टिस लोकुर ने कोविड-19 महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर शीर्ष न्यायालय के आचरण को एफ ग्रेड का बताया है। जस्टिस कौल सुप्रीम कोर्ट में प्रवासी मजदूरों पर सुनवाई कर रही पीठ में शामिल हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों की त्रासदी पर दिल्ली और मुंबई के 20 प्रमुख वकीलों के पत्र का संज्ञान लिया है। वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे को पत्र लिखकर मजदूरों को हो रहे अमानवीय अनुभवों की ओर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान आकृष्ट कराया था।