Move to Jagran APP

आदिवासी बच्चों का भविष्य संवारने के लिए शिक्षक ने पेश की मिसाल, सादगी से भरा है जीवन

आदिवासी बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए एक शिक्षक ने तबादला तक नहीं लिया और वे रोजाना औसतन 20-22 किलोमीटर पैदल चलते थे।

By Mangal YadavEdited By: Published: Mon, 03 Jun 2019 01:14 PM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 01:18 PM (IST)
आदिवासी बच्चों का भविष्य संवारने के लिए शिक्षक ने पेश की मिसाल, सादगी से भरा है जीवन
आदिवासी बच्चों का भविष्य संवारने के लिए शिक्षक ने पेश की मिसाल, सादगी से भरा है जीवन

जगदलपुर [हेमंत कश्यप]। छत्तीसगढ़ के बस्तर के जुगरू गुरुजी की कहानी किसी फिल्मी अथवा कॉमिक्स के पात्र से कम नहीं लगती। 32 साल पहले उनकी पहली पोस्टिंग अबूझमाड़ के गांव लंका में हुई थी, जो उनके निवास स्थान अंतागढ़ तहसील के ग्राम अर्रा से 150 किमी दूर था। जाने का कोई साधन नहीं था। दाना-पानी लेकर वह पत्नी से यह कहकर पैदल निकले कि तीन-चार महीने में वेतन इकट्ठा कर लौटेंगे।

loksabha election banner

चौथे दिन पदमेटा के जंगल में उन्हें बाघ ने घेर लिया। दो रात पेड़ पर काटी। सातवें दिन लंका पहुंचे तो वहां न स्कूल था, न पढ़ने वाले बच्चे। घास-फूंस से झोपड़ी तैयार कर शिक्षा का मंदिर बनाया और 12 माड़िया आदिवासी बच्चों से स्कूल की बुनियाद रखी। आदिवासी बच्चों की जिंदगी संवारने को तबादला रुकवा-रुकवाकर वह लंका गांव में 20 साल रहे। अतीत के पन्ने को पलटते हुए जुगरूराम कुमेटी यानी जुगरू गुरुजी खो से जाते हैं।

वह बताते हैं कि बचपन से ही वह शिक्षक बनना चाहते थे। ईश्वर ने उन्हें यह मौका दिया भी। 1987 में उनकी पहली पोस्टिंग सहायक प्राध्यापक के रूप में अबूझमाड़ के दुर्गम ग्राम लंका में हुई। घरवालों ने कहा, कहां उतनी दूर जाओगे। नौकरी-वौकरी छोड़ो। लेकिन उन पर तो शिक्षक बनने का जुनून सवार था। गठरी उठाई और पैदल ही निकल पड़े।

इस तरह तय किया सफर 

जुगरू गुरुजी बताते हैं कि रोजाना औसतन 20-22 किलोमीटर पैदल चलते थे। शाम होते तक जो भी गांव मिलता, वहीं रात रुक जाते। चौथे दिन पदमेटा के जंगल से गुजर रहे थे कि रास्ते में बाघ मिल गया। जान बचाने को दौड़कर पेड़ पर चढ़ गए। बाघ पेड़ के आसपास ही मंडराता रहा। तीसरे दिन वहां से गुजर रहे कुछ ग्रामीणों को देखकर रोका और उनके साथ लंका पहुंचे।

...तो जैसे दीवाली मनी थी

वह बताते हैं कि उनकी नियुक्ति उस समय 300 रुपये मासिक वेतन में हुई थी, इसलिए तीन-चार महीने बाद ही आने की बात कहकर निकले थे। वहां शिक्षकीय कार्य में इतना मशगूल हो गए कि पांच साल तक घर नहीं लौट पाए। पत्नी समेत परिवार वालों से समझ लिया था कि शेर-भालू का शिकार बन गया। पत्नी लखेश्वरी बताती हैं कि उसने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। पांच साल बाद जब वह लौटे तो घर में जैसे दीवाली मनी थी।

जैसे जीवन धन्य हो गया

जुगरूराम कुमेटी की चर्चा उनकी सादगी को लेकर भी होती है। वह कहते हैं कि आदिवासी बच्चों को शिक्षा की राह दिखाकर लगता है जैसे जीवन धन्य हो गया। उनके पढ़ाए कई छात्र आज उच्च पदों पर हैं। जब भी वह सुनते हैं, फलां बच्चे को नौकरी लग गई, लगता है ईश्वर का आशीर्वाद मिल रहा है।

जुगरू गुरुजी ने कहा कि इस पेशे में आना बड़े सौभाग्य की बात है। ईश्वर तो केवल शरीर देता है, इंसान बनाने का काम तो शिक्षक ही करता है। 

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.