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अनूठी होली : जूते की माला और जूते से दनादन वार, सच में अलबेली है ये होली

ब्रज में बरसाने की लट्ठामार होली देश-दुनिया में चर्चित है। उप्र के ही शाहजहांपुर में भी होली मनाने का अंदाज निराला है। यहां होली के दिन लाट साहब की सवारी निकाली जाती है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 09:30 AM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 10:20 AM (IST)
अनूठी होली : जूते की माला और जूते से दनादन वार, सच में अलबेली है ये होली
अनूठी होली : जूते की माला और जूते से दनादन वार, सच में अलबेली है ये होली

शाहजहांपुर/वाराणसी, [नरेंद्र यादव]। विविधताओं के देश भारत में त्योहार एक, पर उसे मनाने के तरीके अनेक। यही है भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता की पहचान। अब होली को ही देखिए। ब्रज में बरसाने की लट्ठामार होली देश-दुनिया में चर्चित है। तो उप्र के शाहजहांपुर में भी होली मनाने का अंदाज निराला है। यहां होली के दिन रंगों की बौछार के बीच लाट साहब की सवारी निकाली जाती है। भैंसा गाड़ी पर लाट साहब के प्रतीक के रूप में एक व्यक्ति को बैठाया जाता है, फिर उसकी जूते-चप्पल व झाड़ू से पिटाई करते हुए जुलूस निकाला जाता है। शहर में जुलूस जिस-जिस रास्ते से होकर गुजरता है, लोग जूते-चप्पल से लाट साहब का स्वागत करते हैं।

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निकलते हैं चार जुलूस
शहर में बड़े व छोटे लाट साहब का अलग-अलग जुलूस निकलता है। इसके अलावा शहर से सटे रोजा के बरमौला अर्जुनपुर में भी जुलूस निकालता है। यहां लाट साहब बने व्यक्ति को गधे पर बैठाकर जूतों की माला पहनाई जाती है। इसी तरह कांट में भी लाट साहब को भैंसागाड़ी पर बैठाकर जुलूस निकाला जाता है। ब्रिटिश शासनकाल में अत्याचार के विरोध में इस जुलूस को निकालने की परंपरा शुरू की गई। एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर जूते चप्पलों से मारते हुए उसका जुलूस निकाला जाता था। हालांकि, अंग्रेजों ने रोकने की कोशिश की, पर सफलता नहीं मिली। छह वर्ष पहले लाट साहब के जूलूस पर पाबंदी के लिए याचिका दायर की गई। लेकिन कोर्ट ने रोक से इन्कार कर दिया।

कोतवाल देते हैं सलामी
लाट साहब को सबसे पहले चौक कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक सलामी देते हैं। लाट साहब को शराब की बोतल के साथ नकदी व अन्य उपहार भी भेंट करते हैं। इसके बाद लाट साहब को भैंसा गाड़ी पर बैठाकर शहर में घुमाया जाता।

गोपनीय रहती पहचान
लाट साहब बनने वाले व्यक्ति को कमेटी की ओर से भी हजारों रुपये का नकद इनाम व उपहार दिए जाते हैं। उसकी पहचान गोपनीय रखी जाती है। लाट साहब को करीब चार दिन पहले से ही गोपनीय स्थान पर रखकर खातिरदारी शुरू हो जाती है।

सुरक्षा का रखा जाता ध्यान
लाट साहब बने व्यक्ति को चोट न लगे, इसके लिए उसे हेलमेट पहनाया जाता है। पूरा शरीर पॉलीथिन से ढका रहता है। उसके साथ भैंसा गाड़ी पर कमेटी के अलावा पुलिस के जवान भी होते हैं। जुलूस में कोई गड़बड़ी न हो इसके लिए फोर्स के साथ डीएम, एसपी से लेकर प्रशासन व पुलिस के अधिकारी व आरएएफ भी मौजूद रहती है। शासन स्तर से इस जुलूस की मॉनीटरिंग होती है।

अनुदया तिथि में निखरेगा रंगोत्सव
सनातन धर्म के चार प्रमुख त्योहारी उत्सवों में रंग पर्व होली प्रमुख है। फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन कर अगली सुबह चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में होली खेलने की परंपरा है। इस बार चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा की हानि होने से होली 21 मार्च सुबह 7.04 बजे से अनुदया तिथि में मनाई जाएगी। होलिका दहन 20 मार्च की रात नौ बजे के बाद किया जाएगा। फाल्गुन पूर्णिमा 20 मार्च सुबह 9.19 बजे लग रही है जो 21 मार्च को प्रात: 7.03 बजे तक रहेगी।

भद्रा में होलिका दाह निषेध
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कार्यपालक समिति के पूर्व सदस्य ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार होलिका दहन में पूर्व विद्धा प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा ली जाती है। यह यदि दो दिन प्रदोष व्यापिनी मिले तो दूसरी ही लेनी चाहिए। शास्त्रीय मान्यता है कि प्रतिपदा, चतुर्दशी, दिन और भद्रा में होली जलाना सर्वथा त्याज्य है। हर फाल्गुन पूर्णिमा को भद्रा होती है। ऐसे में भद्रा को त्याग कर ही होलिका दाह किया जाता है। मान्यता है कि भद्रा में होलिका दहन से जनसमूह का नाश होता है।


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