Positive India: 'ऑक्सीजनी' थामेगी जिंदगी की सांस, सुदूर क्षेत्रों में होगा सुविधाओं का विस्तार
कोविड की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई थी। शोधकर्ताओं ने अब एक सुदृढ़ और मजबूत मोबाइल समूह ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर विकसित किया है जिसका उपयोग ग्रामीण क्षेत्र में किया जा सकता है। इसे किसी भी स्थान पर आपात स्थिति में शीघ्रता से तैनात किया जा सकता है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई थी। हालांकि कमी का यह संकट बड़े शहरों में आपूर्ति श्रृंखला की सीमाओं पर काबू पाने के बारे में अधिक था, लेकिन छोटे शहरों और गांवों में इस संकट ने देश में चिकित्सा ऑक्सीजन के बुनियादी ढांचे की पुरानी कमी को उजागर किया।
भारतीय शोधकर्ताओं ने एक सुदृढ़ और मजबूत, मोबाइल समूह ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर विकसित किया है जिसका उपयोग ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध सुविधाओं में किया जा सकता है और जिसे किसी भी स्थान पर आपात स्थिति में शीघ्रता से तैनात किया जा सकता है। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान, जवाहरलाल नेहरू आधुनिक वैज्ञानिक शोध केंद्र (सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च) की एक टीम ने अवशोषण विज्ञान और इंजीनियरिंग में इन नई चुनौतियों का समाधान करने के लिए 'ऑक्सीजनी' नाम से एक नया समाधान विकसित किया।
इसे कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान विकसित किया गया था, जिसमें सामग्री की उपलब्धता (सोर्सिंग) और विभिन्न क्षमताओं के अस्पतालों में आवश्यकता के हिसाब सामने आने वाली कई नई डिजाइन चुनौतियों का समाधान किया गया था।
क्या था समाधान
संकट पर काबू पाने के लिए दो प्रकार के समाधानों की आवश्यकता थी। घरेलू उपयोग के लिए 5 से 10 एलपीएम व्यक्तिगत ओ2 सांद्रता और बड़े अस्पतालों के लिए 500 एलपीएम वाले पीएसए संयंत्र। जबकि अस्पतालों के लिए 500 आईपीएम संयंत्र पर्याप्त थे, लेकिन उन संसाधनों में कमी वाले क्षेत्रों में लगाए जाने लिए आवश्यक परिवहनीय सुविधा (पोर्टेबिलिटी) की कमी थी। वहीं दूसरी और व्यक्तिगत कन्सेंट्रेटर अस्पतालों की आधारभूत सुविधाओं के हिसाब से निरंतर उपयोग करने के लिए बहुत कमजोर और अपर्याप्त थे। ऐसी स्थिति में आवश्यक पोर्टेबिलिटी के साथ एक मजबूत तकनीक की आवश्यकता अनुभव हुई।
ऑक्सीजनी प्रेशर स्विंग एडजौर्प्शन (पीएसए) तकनीक के सिद्धांतों पर आधारित है। टीम ने लिथियम जिओलाइट्स (एलआईएक्स-लिक्स) को प्रतिस्थापित किया जिसे आमतौर पर सोडियम जिओलाइट्स के साथ ऑक्सीजन कन्सेंट्रेटरस में उपयोग किया जाता है। यह विषाक्त ठोस अपशिष्ट उत्पन्न नहीं करता है और इसे भारत में बनाया भी जा सकता है।
यद्यपि इसके पीछे के विज्ञान को अच्छी तरह से समझा जाता है, फिर भी एक ऐसा इंजीनियरिंग समाधान विकसित करना जो इधर-उधर ले जाए जा सकने वाले पोर्टेबल डिवाइस में सोडियम के साथ काम कर सकता है।
इसलिए फायदेमंद
यह चिकित्सीय हवा को चिकित्सीय ऑक्सीजन में परिवर्तित करता है, और सभी मॉड्यूल सहित पूरी तरह से ऑफ-ग्रिड समाधान है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में तैनाती की सुविधा मिल सकती है। इसके अलावा, 13एक्स जिओलाइट संयंत्र से निकलने वाला कचरा संभावित रूप से एक कृषि के लिए एक अच्छी कृषि निवेश सामग्री हो सकता है। जेएनसीएएसआर के, डॉ एसवी दिवाकर, डॉ मेहर प्रकाश, प्रोफेसर संतोष अंसुमाली और उनके सहयोगी, अल्बर्टा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरविंद राजेंद्रन और अरुण कुमार (ईवेव डिजिटेक) ने ऑक्सीजनी का निर्माण किया। यह तकनीक सस्ती भी है। साथ ही आईसीयू के लिए भी उपयोगी है।