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जीवनदायिनी गंगा की कोख में जहर, संकट में जलीय जीव

बढ़ते प्रदूषण और पानी की मात्रा कम होने से मछलियां, कछुए और डॉल्फिन हो रहीं गायब

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 23 May 2018 10:00 AM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 11:03 AM (IST)
जीवनदायिनी गंगा की कोख में जहर, संकट में जलीय जीव
जीवनदायिनी गंगा की कोख में जहर, संकट में जलीय जीव

कानपुर [समीर दीक्षित]। जीवन और मोक्ष प्रदान करने वाला गंगाजल अब जीव-जंतुओं के लिए जहर का काम कर रहा है। सर्वविदित है कि गंगाजल में कीड़े नहीं पड़ते, लेकिन गंगा के जल में जैवविविधता का समाप्त होते जाना समूचे नदी तंत्र के लिए खतरे का सूचक है। 13 मई को कन्नौज, उत्तरप्रदेश के मेहंदीघाट में लाखों मृत मछलियां गंगा तट पर उतराते हुए मिलीं। 14 मई को बिल्हौर के गिल्बर्ट अमीनाबाद, सजंती बादशाहपुर, बहरामपुर घाटों पर भी यही दृश्य देखने को मिला। विशेषज्ञ इसे गंभीर खतरा बताते आए हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की टीम ने हाल ही कानपुर में गंगा बैराज से होते हुए इलाहाबाद की ओर से आगे बढ़ते हुए गंगा का सर्वे किया तो स्थिति बेहद चौंकाने वाली मिली। प्रदूषण के चलते गंगा में जलीय जीवन संकट में हैं।

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पर्यावरण संतुलन के लिए जलीय जीवों का गंगा में रहना जरूरी है। कछुए, ऊदबिलाव, रोहू, कतला और नैन मछलियां तो छोड़िए, गंगा में प्रदूषण बढ़ने की वजह से गैंगेटिक डॉल्फिन भी कम होती जा रही हैं। सर्वे करने वाली टीम को बैराज से लेकर फतेहपुर स्थित भिटौरा तक के करीब 80 किलोमीटर के सफर में महज 50 डॉल्फिन दिखीं, वह भी भिटौरा के पास ही।

सदस्यों का कहना था कि भिटौरा के पास जहां ये डॉल्फिन मिलीं, वहां गंगा का पानी साफ था, इसकी गुणवत्ता भी ठीक थी और पानी पर्याप्त मात्रा में था। हालांकि टीम के सदस्यों को उससे पहले कई किलोमीटर के सफर में इतना गंगा पानी और गाद मिली कि कई बार मोटरबोट खींचकर ले जानी पड़ी थी। बैराज से ही डोमनपुर तक गंगा में जलीय जीव ढूंढ़े नहीं मिले।

ये मछलियां हैं गंगा में
गंगा में कॉमन कॉर्प, सिल्वर कॉर्प, ग्रासकॉर्प प्रजाति की मछलियां बहुतायत में पाई जाती हैं। रोहू, कतला और नैन (मृगल) की संख्या तेजी से कम हुई है। डॉल्फिन भी तेजी से कम हुई हैं।

इतनी ऑक्सीजन की जरूरत
गंगा में मछलियों व अन्य जलीय जीवों के जीवन के लिए कम से कम चार मिलीग्राम प्रतिलीटर घुलित आक्सीजन (डीओ) की जरूरत होती है जबकि बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए।

इसलिए जरूरी है जैवविविधता
पारिस्थितिकी में हर जीव का अपना महत्व है। कछुआ सड़ी-गली मृत मछलियों, जीवों के शवों आदि को खाकर पानी साफ को करता है। मगरमच्छ भी यही काम बड़े पैमाने पर करता है। घड़ियाल मछलियों की संख्या को नियंत्रित करने में सहायक होता है। ऊदबिलाव छोटे जीवों को खाता है। रोहू छोटी मछलियों को खाकर पारिस्थितिकी तंत्र को ठीक करती है। नदी में इन जीवजंतुओं के खत्म हो जाने से नदी का संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा सकता है, जो नदी के स्वास्थ्य के लिए घातक साबित होगा।

गंगा में तेजी से बढ़ते प्रदूषण के कारण किसी से छिपे नहीं हैं। 70 फीसद घरेलू उत्प्रवाह, 15 से 20 फीसद औद्योगिक उत्प्रवाह व 10 फीसद अन्य स्नोतों से गंगा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है। इस पर अंकुश लगाना जरूरी है।
-कुलदीप मिश्रा, क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण् नियंत्रण बोर्ड 


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