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गन्ने की खोई से बनेगा चीनी का विकल्प 'जायलीटॉल', स्वाद में नहीं होगा कोई अंतर

चीनी के विकल्प के रूप में इस्तेमाल होने वाले जायलीटॉल को संस्थान ने गन्ने की खोई और पत्तियों से तैयार कर लिया है।

By Edited By: Published: Mon, 18 Jun 2018 01:27 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2018 12:42 PM (IST)
गन्ने की खोई से बनेगा चीनी का विकल्प 'जायलीटॉल', स्वाद में नहीं होगा कोई अंतर
गन्ने की खोई से बनेगा चीनी का विकल्प 'जायलीटॉल', स्वाद में नहीं होगा कोई अंतर

कानपुर [जितेंद्र शर्मा]। शुगर टेक्नोलॉजी में दुनिया के कई देशों के मार्गदर्शक बन चुके राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआइ) ने एक और उपलब्धि हासिल की है। चीनी के विकल्प के रूप में इस्तेमाल होने वाले जायलीटॉल को संस्थान ने गन्ने की खोई और पत्तियों से तैयार किया है। प्राकृतिक विधि से तैयार जायलीटॉल का स्वाद तो चीनी जैसा ही होगा, लेकिन कैलोरी उससे आधी होगी। अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने वाले डायबिटीज और मोटापे से बचने के लिए चीनी के विकल्प के रूप में ईजाद जायलीटॉल और स्टीविया (मीठी तुलसी) का इस्तेमाल करते हैं।

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विदेशों में इसका प्रचलन काफी बढ़ चुका है। भारत में भी कई कंपनियां जायलीटॉल बना रही हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया जटिल और रासायनिक है। साथ ही इसका स्वाद भी चीनी से थोड़ा भिन्न है। इसका इस्तेमाल च्युइंगम, चॉकलेट आदि में भी किया जाता है। प्राकृतिक विधि से जायलीटॉल बनाने पर राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में छह माह से शोध चल रहा था। संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि हमें शोध में सफलता मिल चुकी है। हमने गन्ने का अपशिष्ट मानी जाने वाली पत्तियों और खोई से जायलीटॉल तैयार किया है। यह दुनिया में अब तक उपलब्ध जायलीटॉल से अलग है।

इसका स्वाद बिल्कुल चीनी जैसा होगा। सबसे ज्यादा अच्छी बात यह है कि स्वास्थ्य के प्रति चिंतित रहने वाले इसका भरपूर इस्तेमाल कर सकेंगे, क्योंकि इसमें कैलोरी की मात्रा चीनी से बिल्कुल आधी है। यह शोध डॉ. विष्णु प्रभाकर के निर्देशन में संस्थान में प्रशिक्षण के लिए आए तुषार मिश्रा ने किया है।

बढ़ेगा चीनी मिलों का लाभ
संस्थान निदेशक ने बताया कि चीनी मिलों में गन्ने की पत्तियों और खोई को अभी कूड़ा-कचरा ही माना जाता है। उसे यूं ही फेंक दिया जाता है। हमारी तकनीक से वह इस कचरे से जायलीटॉल बनाएंगे तो उनका मुनाफा भी बढ़ेगा।

प्रदूषण की बड़ी समस्या का समाधान
भारत सहित कई देशों में गन्ने की फसल प्रदूषण के लिए भी हानिकारक होती जा रही है। मजदूर का खर्चा बचाने के लिए किसान खेत में आग लगाकर गन्ने की पत्तियों को जला देते हैं और गन्ने का इस्तेमाल कर लेते हैं। पत्तियां जलने से बड़े पैमाने पर प्रदूषण होता है। जब इनका इस्तेमाल होने लगेगा, पत्तियों का भी दाम मिलेगा तो कोई इन्हें जलाएगा नहीं।

दस क्षेत्रों से मंगाई पत्तियां और खोई
एनएसआइ निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि भौगोलिक स्थितियां बदलने पर कई बार फसल के तत्व भी बदल जाते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए देश के अलग-अलग दस क्षेत्रों से गन्ने की पत्तियां और खोई मंगाई गई। सभी पर शोध करके देखा गया। समान मात्रा में जायलीटॉल मिल रहा है।


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