शिंदे के घर घुसे जाट आंदोलनकारी
नई दिल्ली [जासं]। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बदसलूकी की घटना के एक दिन बाद बुधवार को आरक्षण की मांग को लेकर कई दिनों से धरना दे रहे जाट नेता जबरन केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के आवास में घुस गए। तमाम सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बताते हुए प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बेरीकेड व आवास के मुख्य गेट को
नई दिल्ली [जासं]। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बदसलूकी की घटना के एक दिन बाद बुधवार को आरक्षण की मांग को लेकर कई दिनों से धरना दे रहे जाट नेता जबरन केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के आवास में घुस गए। तमाम सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बताते हुए प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बेरीकेड व आवास के मुख्य गेट को क्षतिग्रस्त कर दिया। घर में घुसे तीन-चार जाट नेताओं ने करीब आधे घंटे तक धरने पर बैठकर सरकार के विरोध में जमकर नारे लगाए।
रूस के दौरे पर गए गृहमंत्री ने जानकारी मिलने पर पुलिस आयुक्त नीरज कुमार को आड़े हाथ लिया। हरकत में आई पुलिस भारी बल के साथ मौके पर पहुंची और आंदोलनकारियों को उठाकर ले गई। दिल्ली में लगातार हुई इन घटनाओं से अति विशिष्ट लोगों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए हैं।
गौरतलब है कि अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले जाट आंदोलकारी कई दिनों से जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे करीब चार सौ की तादाद में आंदोलनकारी गृहमंत्री के सरकारी आवास 2, कृष्णा मेनन मार्ग पर पहुंच गए। वहां पुलिस का घेरा व आवास का मुख्य गेट तोड़कर तीन-चार जाट नेता अंदर घुसने में सफल रहे। वहां इन्होंने सरकार के विरोध में नारे लगाए। गृहमंत्री की नाराजगी के बाद मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारी प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेकर तुगलक रोड स्थित थाने लेकर आए।
पुलिस ने आधिकारिक तौर पर उनकी गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की है। बताया जा रहा है कि गृहमंत्री आवास के मुख्य गेट पर पुलिस के 18 जवान तैनात थे। बावजूद इसके आंदोलनकारियों के घर में घुस जाने की घटना में दिल्ली पुलिस की लापरवाही साफ झलकती है।
मालूम हो कि मंगलवार को योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया से मिलने पहुंचीं ममता बनर्जी और बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा के साथ योजना भवन के गेट पर एसएफआइ [स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया] के कार्यकर्ताओं ने बदसलूकी की थी। खींचतान के दौरान अमित मित्रा का कुर्ता फट गया। इससे नाराज ममता दिल्ली को असुरक्षित करार देते हुए वापस कोलकाता लौट गई।
शिंदे के मंत्रालय से आंतरिक सुरक्षा पर संजीदगी गायब
नई दिल्ली। पी. चिदंबरम के गृह मंत्री रहते आंतरिक सुरक्षा पर बनी संजीदगी सुशील कुमार शिंदे के समय गायब होती दिख रही है। योजना भवन में मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ धक्कामुक्की और बुधवार को खुद शिंदे के आवास पर प्रदर्शनकारियों के उत्पात को इसी रूप में देखा जा रहा है। जबकि चिदंबरम के विपरीत शिंदे ने खुद को जेड प्लस की सुरक्षा दे रखी है।
हालत यह है कि आंतरिक सुरक्षा के लिए चिदंबरम के कार्यकाल में अधूरे रह गए कामों में शिंदे के समय कोई प्रगति नहीं हुई है। कसाब और अफजल को फांसी के अलावा आठ महीने के कार्यकाल में शिंदे के पास गिनाने के लिए कोई भी उपलब्धि नहीं है।
26/11 के मुंबई हमले के बाद देश की आंतरिक सुरक्षा की कमान संभालने वाले चिदंबरम ने एनआइए के गठन से लेकर अपराधियों की निगरानी के लिए सीसीटीएनएस जैसी योजनाओं पर काम शुरू किया। यही नहीं, खुफिया ब्यूरो के तहत सक्रिय किए गए मल्टी एजेंसी सेंटर की मदद से तीन साल में दो दर्जन से अधिक आतंकी मॉड्यूल को ध्वस्त करने में भी सफलता मिली। यही कारण है कि इस दौरान नक्सली हिंसा से लेकर आतंकी हमले तक आंतरिक सुरक्षा के सभी मापदंडों पर जबरदस्त सुधार हुआ। लेकिन शिंदे के कार्यकाल में भले ही नक्सली या आतंकी हिंसा में बढ़ोतरी देखने को नहीं मिली हो, लेकिन मंत्रालय के अधिकारी इसका श्रेय चिदंबरम के समय उठाए गए कदमों को देते हैं। अधिकारियों में आंतरिक सुरक्षा को लेकर चिदंबरम के समय जैसी संजीदगी देखने को नहीं मिलती है।
गौरतलब है कि आम लोगों में सुरक्षा की भावना जगाने के लिए चिदंबरम ने खुद के लिए कोई सुरक्षा नहीं ली थी। यहां तक उनके घर की सुरक्षा के लिए कोई तामझाम नहीं था। जबकि गृह मंत्री बनने के बाद शिंदे ने सबसे पहले अपने लिए जेड प्लस सुरक्षा ली। साथ ही उन्होंने वीआइपी को निजी सुरक्षा देने में भी कोताही नहीं दिखाई, लेकिन राष्ट्रीय आतंकरोधी केंद्र [एनसीटीसी] को लेकर ऐसी जल्दबाजी देखने को नहीं मिली। तमाम विवादास्पद मुद्दों को निकालने के बाद भी अभी तक इसका गठन नहीं किया जा सका है।
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