कोरोना संक्रमण को मात देने के लिए जनता कर्फ्यू ने दिया पर्यावरण को आक्सीजन
जनता कर्फ्यू के दिन पूरे देश में सड़कों पर गाड़ियां रेलगाड़ियां नहीं दिखीं। लगभग 400 अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर पहले ही 31 मार्च तक प्रतिबंध है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण की कड़ी को तोड़ने में जनता कर्फ्यू कितना अहम रहा इसका आकलन तो आने वाले वक्त में होगा, लेकिन यह तय है कि इसने मानव स्वास्थ्य पर असर दिखाने वाले प्रदूषण पर वार किया है। पूरे देश में जिस तरह जनता कर्फ्यू के कारण कल कारखाने, मोटर वाहन, रेलगाड़ी बंद रही उसका व्यापक असर पर्यावरण पर दिखा। वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण काफी हद तक नीचे आ गया। एक दिन की शांति ने पूरे देश को एक ऐसे माहौल से परिचित करा दिया जिसका आभास अब तक नहीं हुआ था। कईयों को शायद पहली बार इसका अहसास हुआ कि उनके आसपास चिड़ियों की सुखद चहचहाहट हुआ करती है जो सामान्यतया शोर शराबे में अनसुनी रह जाती है।
देश में पहली बार इतने बड़े कर्फ्यू से विकास का पहिया रुका
इसमें शक नहीं कि देश में पहली बार लगे इतने बड़े कर्फ्यू से विकास का पहिया रुका और इसका असर अर्थव्यवस्था पर दिखना तय है, लेकिन कोरोना से लड़ाई के लिए जरूरी इन कदमों ने राहत की कुछ झलक तो तत्काल ही दिखा दी।
प्रदूषण से जंग में हमेशा हांफती रही
दिल्ली में दो दिनों में पीएम-2.5 का स्तर लगभग दस अंक नीचे गिर गया। 20 मार्च को यह 76 माइक्रोग्राम प्रति क्यूविट मीटर था, जो 21 मार्च को घटकर 69.4 और 22 मार्च को घटकर औसतन 64 माइक्रोग्राम प्रति क्यूविट मीटर रहा। मुंबई, लखनऊ, मेरठ जैसे शहरों में भी इसका असर दिखा। कोरोना की आशंका को देखते हुए अभी देश के कई हिस्सों में बंदी रहने के आसार हैं और लिहाजा पर्यावरण पर भी असर दिखेगा। अगर ध्वनि प्रदूषण की बात की जाए तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकडों के मुताबिक आबादी वाले क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर अधिकतम 55 डेसीबल तक होना चाहिए, जो दिल्ली के कई क्षेत्रों में औसतन 61 डेसीबल तक रहता है। रविवार को यह घटकर करीब 45 डेसीबल तक पहुंच गया है। ध्यान रहे कि सामान्यतया घर के अंदर जितना शोर होता है वह 40 डेसीबल माना जाता है। जबकि म्यूजिक बैकग्राउंड के बीच बातचीत में शोर का स्तर 60 डेसीबल होता है। दिल्ली सामान्यतया इसी स्तर पर होती है।
वायु और ध्वनि प्रदूषण में कारखाने और मोटर वाहन जिम्मेदार होते हैं
वायु और ध्वनि प्रदूषण में मुख्यतया कल कारखाने और मोटर वाहन जिम्मेदार होते हैं। ये सभी डीजल, पेट्रोल और बिजली पर चलते हैं। आंकड़ों के अनुसार देश में रोजाना 210759 मीट्रिक टन डीजल और 76216 मीट्रिक टन पेट्रोल का इस्तेमाल होता है। अगर रेलवे की बात की जाए तो उसमें रोजाना 7600 टन डीजल और 485 लाख किलोवाट बिजली की खपत होती है। देशी विदेशी उड़ानों में एअरक्राफ्ट रोजाना 20592 मीट्रिक टन पेट्रोल जलाता है।
जनता कर्फ्यू के दिन पूरे देश में सड़कों पर गाड़ियां, रेलगाड़ियां नहीं दिखीं
जनता कर्फ्यू के दिन पूरे देश में सड़कों पर गाड़ियां, रेलगाड़ियां नहीं दिखीं। लगभग 400 अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर पहले ही 31 मार्च तक प्रतिबंध है। जाहिर है कि कोरोना के खिलाफ जंग में जहां कामकाज प्रभावित हो रहा है, वहीं कुछ कदमों के कारण पर्यावरण को जरूर थोड़ा आक्सीजन मिला है।