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अपने दम आसमान छूने की हसरत रखने वाली लड़कियों की रोल मॉडल बनीं रेशमा निलोफर

नारी शक्ति पुरस्कार-2018 से सम्मानित देश की इकलौती और पहली मैरीन पायलट रेशमा नीलोफर नाहा से दैनिक जागरण की विशेष बातचीत। जानें- क्यों कहा चुनौतियों से है प्यार।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 05:44 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 01:36 AM (IST)
अपने दम आसमान छूने की हसरत रखने वाली लड़कियों की रोल मॉडल बनीं रेशमा निलोफर
अपने दम आसमान छूने की हसरत रखने वाली लड़कियों की रोल मॉडल बनीं रेशमा निलोफर

नई दिल्ली, [सीमा झा]। 'इतना बड़ा मुल्क है। उन महिलाओं की कमी नहीं जो सशक्त और बुलंद हैं। उन सब के रहते मुझे नारी शक्ति पुरस्कार मिलना एक अविश्वसनीय खबर थी। आंखें नम थीं और मन अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञता से भरा हुआ।' ये कहना है 30 वर्षीय भारत की पहली और एकमात्र मरीन पायलट रेशमा नीलोफर नाहा का।

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वह उन सभी लड़कियों की प्रेरणा बन गई हैं जो अपने इरादों के बल पर आसमान छू लेना चाहती हैं। वह उन युवा लड़कियों की रोल मॉडल बन सकती हैं जो अपने दम पर ख्वाब पूरे करना चाहती हैं। रेशमा ने वर्ष 2006 में ही इस क्षेत्र में कदम रखा जहां दूर-दूर तक महिलाकर्मी नहीं नजर आती थीं और 2011 में जब उन्होंने कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट में बतौर मरीन पायलट काम करना शुरू किया। आज भी इनके अलावा कोई दूसरी महिला मरीन पायलट भारत में नहीं है।

पानी की राह से दोस्ती
रेशमा लहरों से टकराते हुए समुद्री जहाजों को पानी में रास्ता दिखाती हैं। गहरे पानी के बीच संकरे, गहरे, टेढ़े-मेढ़े रास्तों से जहाज निकालना टेढ़ी खीर है, पर यही चुनौती उन्हें पसंद है। वे कहती हैं, 'हर दिन नया है क्योंकि एक बार आप पानी में उतर गए तो आपको नहीं पता कि अगले पल किस रोमांच से वास्ता होगा। सबसे रोमांचकारी हुगली नदी है, जो भारत की दूसरी नदियों से, समुद्र से एकदम अलग है। यहां बहुत संकरे रास्ते हैं। कहां गहराई, कहां चट्टान मिल जाएगा केवल हमें पता होता है।'

काम से कभी बोर नहीं होती
कह सकते हैं जहाज चलाने वाला भले कोई और हो पर वह चलता है रेशमा जैसे जाबांज मरीन पायलट के इशारे पर। हां, रेशमा जहाज नहीं चलातीं पर जहाज को बंदरगाह तक पहुंचाना और फिर उसे समुद्र तक ले जाने की जिम्मेदारी उनकी होती है। इस क्रम में मौसम का पता केवल उन्हें मालूम है। पानी के राह से दोस्ती हो चुकी है उनकी। मौसम के मिजाज को और भी बारीकी से जान गई हैं। रेशमा फिर कहती हैं,'यह पूरा सफर इतना रोमांच भरा होता है कि मैं अपने काम से कभी बोर नहीं हो सकती।'

माइंडसेट है मुश्किलें
देश की एकमात्र और पहली महिला मरीन पायलट के रूप में मिली यह उपलब्धि रोमांच पैदा करती है? 'अलग रहना है मुझे यह पहले से ही था मन में। मेरे लिए महिला और पुरुष से ज्यादा महत्वपूर्ण है मिली हुई भूमिका में सौ प्रतिशत खरा उतरने का संकल्प। चुनौतियों से प्यार है मुझे, जो समय के साथ बढ़ता जा रहा है। मेरे साथ कई महिलाओं ने ट्रेनिंग ली थी, पर अनुपात कम है। कोई बड़ी बात नहीं है सब कुछ मुमकिन हो सकता है। यह माइंडसेट है कि अमुक चीज मुश्किल है।' रेशमा के मुताबिक, इसी माइंडसेट पर चोट करना होगा, तब कुछ मुश्किल नहीं नजर आएगा।

डॉक्टर बनना था कभी
चेन्नई की रहने वाली रेशमा को डॉक्टर बनना था लेकिन सरकारी मेडिकल कॉलेज में 98 प्रतिशत की अर्हता पूरी न होने के कारण उन्होंने अपनी च्वाइस बदल दी। फिर भी मुख्य धारा से एकदम अलग क्षेत्र में जाने का मन था। वे कहती हैं, 'मैं यह तो नहीं कहती कि मुझे मरीन पायलट ही बनना था पर कुछ ऑफबीट करना था जिसमें मजा आए। यही हुआ। मेरी मुराद मरीन पायलट बनकर पूरी हुई।'

कैसे आईं इस क्षेत्र में? इस सवाल के जवाब में उनका कहना था, 'एक दिन मैंने एक स्थानीय अखबार में एक डेनिश कंपनी का विज्ञापन देखा। शिपिंग कंपनी थी जिसे एम्प्लॉयी की तलाश थी। यदि आप टेस्ट में सलेक्ट होते तो आपको अपनी तरफ से कुछ खर्च नहीं करना था।

अप्लाई किया और उस नेशनल लेवल टैलेंट एग्जाम में पास हो गई।' वह बताती हैं कि कंपनी ने ट्रेनिंग ही नहीं प्लेसमेंट भी दिया। उनके साथ रहकर बड़े जहाज पर रहने और काम-काज के बारे में जानने का मौका मिला। इसके बाद उन्हें नदी-समुद्र के गिरती-उठती लहरों की मौजों से प्यार होता गया।

खुदी को बुलंद करना होगा
'सबको सुविधाएं नहीं मिलतीं। बेहतर परिवार या प्रशिक्षण भी सबको कहां मिलता है। शिकायतें होंगी, आपको मन मुताबिक न मिलने का तंज होगा, लेकिन इससे मिलेगा कुछ नहीं।' रेशमा यह बात उन महिलाओं से कहना चाहती हैं जो सुविधाएं और अनुकूल माहौल का रोना रोती हैं या आगे नहीं जाना चाहतीं। उनका कहना है कि आपको हर हाल में खुद को मजबूत करना होगा और हवा के रुख के विरुद्घ भी चलना सीखना होगा। यह तभी होगा जब उनके पास होगा आत्मविश्वास नामक हथियार।


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