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दूर ही रहेगा डायबिटीज का भी रोग, नियमित करें योग

भविष्‍य में डायबिटीज रोगियों के मामले में भारत नंबर वन हो जाएगा। यह बेहद चौंकाने वाला है। लेकिन इसकाे योग के जरिए साधा जा सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 21 Jun 2017 03:38 PM (IST)Updated: Wed, 21 Jun 2017 04:09 PM (IST)
दूर ही रहेगा डायबिटीज का भी रोग, नियमित करें योग
दूर ही रहेगा डायबिटीज का भी रोग, नियमित करें योग

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। विश्‍व योग दिवस के मौके पर दुनियाभर से लोगों के योग करने की खबर आ रही है। खुद पीएम से लेकर मंत्री तक आज सड़क पर योग करते दिखाई दिए। लेकिन योग के फायदे क्‍या हैं और किसी भी इंसान को योग कितना फायदा पहुंचा सकता है, इस बारे में कभी आपने सोचा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आने वाले वर्षों में भारत में डायबिटीज के सबसे अधिक रोगी होंगे। भारत में मौजूदा समय में अनुमानित तौर पर करीब 5 करोड़ व्यक्ति डायबिटीज (मधुमेह) के शिकार हैं। इसका मुख्य कारण है असंयमित खानपान, मानसिक तनाव, मोटापा, व्यायाम की कमी। टेंशन या स्ट्रेस (Tension or Stress) डायबिटीज के सबसे बड़े कारण हैं।

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क्‍या है वजह

डायबिटीज में कार्बोहाइड्रेट और ग्लूकोज का ऑक्सीकरण पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है या यूं कहें कि इसका मुख्य कारण शरीर में 'इंसुलिन की कमी' का होना है। इंसुलिन नामक हार्मोन पेनक्रियाज की इन्स्लैट ऑफ लैगरहैस द्वारा निकलता है, जो ग्लूकोज का चयापचय करता है। रक्त में ग्लूकोज की मात्रा सामान्य से ज्यादा तथा सामान्य से  कम होना दोनों ही स्थितियां घातक सिद्ध होती हैं। इंसुलिन ठीक प्रकार से नहीं बनने के कारण हृदय, किडनी, उच्च रक्तचाप और आंखों की समस्या होती हैं।

जीवन शैली में परिवर्तन लाना जरूरी

इस समस्या का निवारण करने के लिए आपको आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाना भी अति आव्यशक है। मधुमेह की समस्या को काबू में करने के लिए अपनी जीवन शैली में योगासन, प्राणायाम व ध्यान को जोड़ना एक सही कदम है। इस रोग को प्रारंभिक अवस्था में आहार व्यायाम तथा दवाइयों द्वारा काबू में किया जा सकता है।  ऐसे रोगियों के आहार की मात्रा कैलोरी पर निर्धारित रहती है, जो कि प्रत्येक रोगी की उम्र, वजन, लिंग, ऊंचाई, दिनचर्या, व्यवसाय आदि पर निश्चित की जाती है।

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पांच हजार साल पुराना है योग

भारतीय परंपरा में योग करीब पांच हजार साल पुराना शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है। इसका मकसद शरीर व मस्तिष्क का कायांतरण है। इससे पूर्ण आत्मबोध की स्थिति को पाया जा सकता है। इससे शरीर में अंतर्निहित शक्तियों को संतुलित तरीके से विकसित किया जाता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार योग के माध्यम से मानसिक एकाग्रता के उच्चतम स्तर को प्राप्त किया जा सकता है। भारतीय परंपरा में पूर्व-वैदिक काल से ही इसकी उत्पत्ति के संबंध में कयास लगते हैं। पांचवीं-छठी ईसा पूर्व में इसके विकसित होने के संकेत हैं। 400 ईसवी में पतंजलि के योग सूत्र के जरिये योग दर्शन को व्यवस्थित ढंग से पेश किया गया।

योग से फायदे

मेडिकल साइंस ने भी इसकी पुष्टि की है कि योग के बेहद फायदे हैं। कुछ योग आसनों (Yoga poses) के प्रभाव से पैनिक्रियाज के बीटा सेल्स (Beta Cells) तक रक्त प्रवाह बढ़ जाता है, कोशिकाओं को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है, इनमें नई ऊर्जा का सृजन होता है। साथ ही योग के आसनों से इंसुलिन की संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। कुछ योगासनों को करके डायबिटीज से काफी हद बचा जा सकता है।

1. प्राणायाम (Pranayama)- धीरे धीरे सांस लेना और छोड़ना, इससे रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा जाती है, जिससे रक्त संचार (Blood Circulation) सुधरता है। इसके अलावा थका मस्तिष्क भी सुचारू रूप से कार्य करने लगता है।
2. सेतुबंधासन (Setu Bandhasana)- इससे न केवल ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है बल्कि मस्तिष्क शांत रहता है और पाचन शक्ति सुचारू होती है। महिलाओं में मेनोपॉज की स्थिति में भी आराम मिलता है। लेकिन गर्दन या कमर में किसी भी तरह की कोई चोट होने पर इस आसन को नहीं करना चाहिए।

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3. बालासन (Balasana)- बच्चों के बैठने की अवस्था जैसा लगने वाला यह योग स्ट्रेस बूस्टर है। इससे जांघ और घुटनों आदि में खिंचाव होता है जो स्ट्रेस को कम करता है साथ ही कमर के नीचे के हिस्से में होने वाले दर्द में काफी आराम मिलता है। लेकिन इसको भी प्रेग्‍नेंसी के दौरान या फिर घुटने में कोई इंजुरी होने की सूरत में या डायरिया के वक्‍त नहीं करना चाहिए।

4. वज्रासन (Vajrasana)- इस योगासन द्वारा भी टेंशन को कम किया जाता है और पाचन क्रिया में सुधार होता है।
5. सर्वांगासन (Sarvangasana)- इस योगासन के द्वारा थायराइड ग्लैंड सुचारू काम करते हैं। यह ग्लैंड ही पूरे शरीर के सुचारू रूप से काम करने, पाचन, नर्वस रिप्रोडक्टिव सिस्टम, मेटाबॉलिज्म तथा रेस्पोरेटिव सिस्टम के ठीक ढंग से काम करने के लिए जिम्मेदार होती है। इस आसन को गर्दन या स्पाइनल इंजरी होने की स्थिति में नहीं करना चाहिए। हाई ब्‍लड प्रेशर होने की सूरत में भी इस आसन से बचना चाहिए।

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6. हलासन (Halasana)- जो लोग लंबे समय तक दफ्तरों में बैठकर काम करते हैं और बैठने या चलने का पोश्चर बिगड़ गया है ऐसे लोगों के लिए यह आसन है। यह थायराइड ग्लैंड, पैराथायराइड ग्लैंड, एबडोमिनल ऑर्गन आदि में रक्त संचार को दुरुस्त रखता है। लेकिन यदि आप हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं या आपको डायरिया और पीरियड चल रहे हैं तो इस आसन को न करें।
7. धनुरासन (Dhanurasana)- यह आसन कमर को मजबूत बनाता है। स्ट्रेस को कम करता है तथा माहवारी के दर्द को भी कम करता है। हाई या लो ब्लड प्रेशर, माइग्रेन, हर्निया, गर्दन में चोट, सिर दर्द, या कोई पेट संबंधी सर्जरी होने पर इसको नहीं करना चाहिए।
8. चक्रासन (Chakrasana)- स्पाइन को स्ट्रेच करने और मसल्स को आराम देने के लिए सर्वोत्तम आसन है। इसके अलावा मस्तिष्क को भी रिलेक्स करता है। लेकिन कोई स्पाइनल इंजुरी की सूरत में इसको नहीं करना चाहिए।

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9. पश्चिमोत्नासन (Paschimottanasana)- इस योगासन से रक्त चेहरे की तरफ बहता है। इसके साथ ही पेट की सभी क्रियाओं को सुचारू करता है। जांघों की मसल्स को मजबूत करता है तथा बांहों और कमर में आराम मिलता है। कमर दर्द या स्पाइनल समस्या होने पर भी इसको नहीं करना चाहिए।
10. अर्धमतस्येन्द्रासन (Ardha Matsyendrasana)- फेफड़ों के काम करने की क्षमता को बढ़ाता है। साथ ही कमर को भी आराम मिलता है। लेकिन बैक इंजुरी होने पर इसको नहीं करना चाहिए।

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