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PADMAN हो गई रिलीज, सवाल उन दिनों में महिलाओं के लिए पैड बेहतर या मेंस्ट्रुअल कप?

फिल्म पैडमैन रिलीज होने को तैयार है। ऐसे में हम यहां आपको बता रहे हैं सैनेटरी पैड क्यों जरूरी हैं और क्यों इसके विकल्प की तलाश लगातार जारी है...

By Arti YadavEdited By: Published: Thu, 08 Feb 2018 01:30 PM (IST)Updated: Fri, 09 Feb 2018 01:41 PM (IST)
PADMAN हो गई रिलीज, सवाल उन दिनों में महिलाओं के लिए पैड बेहतर या मेंस्ट्रुअल कप?
PADMAN हो गई रिलीज, सवाल उन दिनों में महिलाओं के लिए पैड बेहतर या मेंस्ट्रुअल कप?

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। इस शुक्रवार सिनेमाघरों में अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म को पूरे देश का सपोर्ट मिल रहा है, क्योंकि फिल्म का मुद्दा हर घर और हर महिला से जुड़ा है। फिल्म के जरिए अक्षय कुमार पीरियड्स से जु़ड़े कई मुद्दों को सामने लाना चाह रहे हैं। लेकिन हम यहां बात फिल्म की नहीं, बल्कि मासिक धर्म की कर रहे हैं। मासिक धर्म जिसे महावारी, मेन्सुरेशन, पीरियड्स और महीना जैसे कई नामों से जाना जाता है। लेकिन इस बारे में आज भी भारतीय समाज में बात करना वर्जित माना जाता है। 

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मासिक धर्म एक ऐसी चीज है जिससे हर औरत को गुजरना ही होता है और महिला ही क्यों हर इंसान जुड़ा है क्योंकि यह जीवन की उत्पति का आधार भी है। इसका महत्व आप भी जानते हैं, फिर भी हमारे समाज में इसे अछूत नजरिए से देखा जाता है। आज भी लोग इसे एक बीमारी की तरह देखते हैं, जिसकी वजह से लड़कियों और महिलाओं को कई दिक्कतों से गुजरना पड़ता है।

आप इस वर्जना (टैबू) का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि एक खबर के अनुसार फिल्म 'पैडमैन' की मेकिंग के दौरान जब एक क्रू मेंबर को सैनिटरी पैड उठाने के लिए कहा गया तो उसने उसे छूने तक से साफ इंकार कर दिया। उसका कहना था कि मैं इस गंदी चीज को हाथ नहीं लगाऊंगा।

अगर आज भी एक लड़की दुकान पर सैनेटरी नैपकिन लेने जाती है तो दुकानदार उसे छुपा कर कागज में लपेटकर काले बैग में देता है। मासिक धर्म को लेकर न केवल पुरुष बल्कि महिलाएं भी बात करने से शर्माती हैं। यहां तक कि जब युवा हो रही लड़कियों को पहली बार पीरियड्स होने शुरू होते हैं तो मां अपनी बेटी से इस मामले में बात करने से कतराती हैं। यहां तक कि किचन हो या फिर मंदिर सभी जगह जाने उसके जाने पर रोक लगा दी जाती है।

एक जान मानी मनोचिकित्सक डॉक्टर प्रणिता गौड़ का कहना है कि पहले के समय में लोग हाइजीन को लेकर इतने जागरुक नहीं थे। वह मासिक धर्म को घृणा की नजरों से देखते थे। इसी वजह से लड़कियों को बंद कमरे रखा जाता था। उन्हें मंदिर या किचन में जाने तक नहीं दिया जाता था।

डॉ प्रणिता गौर का कहना है कि अगर समाज मासिक धर्म से जुड़ी सोच से उबरना चाहता है तो इसकी शुरुआत हमें अपने घरों से करनी होगी। हमें अपने बच्चों को शुरू से ही एक लड़की के शरीर में होने वाले बॉयोजिकल बदलावों के बारे में जानकारी देनी होगी। उन्होंने कहा कि ये समझना बहुत जरूरी है कि पीरियड्स कुछ नहीं बस लड़कियों के शरीर में होने वाले जैविक बदलावों में से एक हैं और यह बहुत जरूरी है।

आज हम यहां मासिक धर्म से जुड़े हर पहलू पर बात करेंगे। पीरियड्स में महिला सैनेटरी नैपकिन के अलावा और किन-किन चीजों का उपयोग कर सकती हैं। उनके फायदे और नुकसान क्या हैं आदि...

सूती कपड़े का इस्तेमाल

पहले के समय में लड़कियां और औरतें मासिक धर्म के दौरान सूती कपड़े का इस्तेमाल करती थीं। फिर इसकी जगह सैनेटरी नैपकिन ने ली। अाज भी कई घरों खासकर गांवों और पिछड़े इलाकों में महिलाएं और लड़कियां सूती कपड़े का ही उपयोग करती हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण सैनेटरी नैपकिन खरीदने के लिए उनकी असर्मथता है। लेकिन कपड़े को इस्तेमाल करते समय महिलाओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जैसे जल्दी बदलना पड़ता है और इससे कई बीमारियों के होने का भी खतरा रहता है।

सैनेटरी नैपकिन

धीरे-धीरे समय बदला और सूती कपड़े की जगह सैनेटरी नैपकिन ने ले ली। आज हर घर में अधिकतर लड़कियां सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। कई मामलों में यह आरामदायक रहता है। एक रिसर्च के मुताबिक एक शहरी महिला पूरी जिंदगी में करीब 17 हजार सैनेटरी नैपकिन यानी 125 किलोग्राम सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती है। सैनेटरी नैपकिन को लेकर ही फिल्म 'पैडमैन' बनाई गई है। सरकार से भी इस पर लगाए गए जीएसटी को कम करने की मांग की जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल पूरी तरह सुरक्षित है?

एक सैनेटरी नैपकिन को नष्ट होने में लगते हैं 800 साल

एक सैनेटरी नैपकिन को अगर इस्तेमाल करके ऐसे ही खुले में फेंक दिया जाता है तो उसे नष्ट होने में 800 साल तक लग सकते हैं और अगर उसे मिट्टी में दबाया जाता है तो भी उसे नष्ट होने में कम से कम 100 साल लग जाते हैं। इस तरह यह पर्यावरण के लिए भी एक बहुत बड़ा खतरा भी है। यहां यह स्पष्ट कर देना सही होगा कि यह स्थिति सिर्फ सैनेटरी नैपकिन को लेकर ही नहीं है, बल्कि बच्चों और बुजुर्गों के डायपर के मामले में भी ऐसा ही होता है।

कई बीमारियों को न्योता देते हैं सैनेटरी नैपकिन

सैनेटरी नैपकिन कई तरह की बीमारियों को भी न्योता देता है। सैनेटरी नैपकिन में डायोक्सिन नाम के एक पदार्थ का इस्‍तेमाल किया जाता है। डायोक्सिन का उपयोग नैपकिन को सफेद रखने के लिए किया जाता है। हालांकि इसकी मात्रा कम होती है लेकिन फिर भी नुकसान पहुंचाता है। इसके चलते ओवेरियन कैंसर, हार्मोनल डिसफंक्‍शन, डायबिटीज और थायरॉयड की समस्‍या हो सकती है। नैपकिन बनाने के दौरान उस पर कृत्रिम फ्रेगरेंस छिड़का जाता है, जिससे एलर्जी और त्वचा को नुकसान होने का खतरा रहता है। लंबे समय तक नैपकिन के इस्‍तेमाल से वेजाइना में स्‍टेफिलोकोकस ऑरे‍यस बै‍क्‍टीरिया बन जाते हैं। इससे डायरिया, बुखार और ब्‍लड प्रेशर जैसी बीमारियों का खतरा रहता है।

रेड डॉट कैंपेन

सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करने के बाद उसे ऐसे ही फेंक दिया जाता है। जब इन नैपकिन को सैनिटरी वर्कर उठाती हैं तो उन्हें भी कई बीमारियां होने का खतरा होता है। इसी के चलते ही पुणे में वेस्टकीपर ट्रेड यूनियन और पीएमसी ने रेड डॉट कैंपेन चलाया है। इसके तहत वॉलिटीयर्स महिलाओं और लड़कियों से अपील कर रहे हैं कि वह नैपकिन को फेंकने से पहले उसे अखबार में लपेट कर उस पर रेड डॉट मार्क लगा दें। जिससे सैनिटरी वर्कर को पता चल जाए कि उसमें सैनेटरी नैपकिन है और वह उसे हाथ से नहीं उठाएंगे।

अब सवाल उठता है कि अगर लड़किया सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल न करें तो क्या करें। हम आपको कुछ ऐसे उपाय बताने जा रहे हैं जिससे महिलाएं, सैनेटरी वर्कर औऱ पर्यावरण सब सुरक्षित रह सकेंगे।

ऑर्गेनिक क्‍लॉथ पैड्स

अब बाजार में ऑर्गेनिक क्‍लॉथ पैड्स उपलब्ध हैं। ये रूई और जूट या बांस से बने होते हैं। यह इस्तेमाल करने में भी आरामदायक रहता है और उपयोग किए गए पैड्स को धोकर फिर से इस्‍तेमाल किया जा सकता है। साथ ही ये पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते।

मेंस्‍ट्रुअल कप

मेंस्‍ट्रुअल कप के बारे में अभी लोग बहुत कम जानते हैं। इसका इस्तेमाल भी कम किया जाता है लेकिन महिलाओं और लड़कियों के लिए मेंस्‍ट्रुअल कप काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं। यह सिलिकन से बना होता है। अच्‍छी क्‍वालिटी के कप की कीमत 1000 रुपये तक है। लेकिन एक बार खरीदने के बाद इसे 10 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

टैम्पोन

मासिक धर्म से निपटने का एक अन्य तरीका है टैम्पोन। यह कपास या रेयान से बना होता है और जिसे मासिक धर्म के दौरान मासिक स्राव को सोखने के लिए योनि के अंदर डाला जाता है। एक टैम्पोन योनि के अंदर सुरक्षित तरीके से फिट होता है जहां बहुत कम संवेदी तंत्रिकाएं होती हैं।

टैम्पोन योनि की दीवारों में मासिक स्राव को सोखते हुए फूल जाता है। इस बात की चिंता न करें कि टैम्पोन आपके शरीर में अंदर कहीं खो जाएगा। गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्सस) का मुंह इतना छोटा होता है कि टैम्पोन इसके अंदर प्रवेश नहीं कर सकता। टैम्पोन के एक सिरे पर एक छोटा धागा लगा होता है ताकि उसे आसानी से बाहर निकाला जा सके।


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