गुजरात चुनाव में भाजपा नहीं कर पाएगी ‘पप्पू’ का इस्तेमाल, क्या राहुल को मिलेगा फायदा
गुजरात के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने पिछले महीने भाजपा द्वारा सौंपी गई प्रचार सामग्री में 'पप्पू' शब्द पर आपत्ति जताई है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। गुजरात विधानसभा का चुनाव दो चरणों में 9 और 14 दिसंबर को होने जा रहा है। 18 दिसंबर को गुजरात और हिमाचल दोनों राज्यों का चुनाव परिणाम एक साथ लोगों के सामने आ जाएगा। लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कई दिलचस्प बातें में भी सामने आ रही हैं और भाजपा व कांग्रेस दोनों ही मुख्य दलों की तरफ से जनता को लुभाने की कोशिशें भी की जा रही हैं।
इस बीच गुजरात चुनाव आयोग ने राज्य की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के इलेक्ट्रॉनिक प्रचार में 'पप्पू' शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने को कहा है। 'पप्पू' शब्द को सोशल मीडिया पर अमूमन राहुल गांधी के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है और इस घटना को भी कांग्रेस उपाध्यक्ष से ही जोड़कर देखा जा रहा।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या है ये 'पप्पू' शब्द और क्यों भाजपा ने इस शब्द को अपने इलेक्ट्रॉनिक प्रचार में शामिल किया था? इसके साथ ही, कांग्रेस को 'पप्पू' शब्द से क्यों आपत्ति है? कहीं 'पप्पू' शब्द का राहुल गांधी से कोई कनेक्शन तो नहीं? आइए जानते हैं इस बारे में क्या सोचते हैं राजनीति के जानकार।
भाजपा नहीं कर पाएगी 'पप्पू' का इस्तेमाल
दरअसल, गुजरात के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने पिछले महीने भाजपा द्वारा सौंपी गई प्रचार सामग्री में इस शब्द पर आपत्ति जताई है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'चुनाव से संबंधित कोई भी प्रचार सामग्री तैयार करने से पहले इसे समिति को सौंपना होता है। समिति उसका प्रमाणपत्र देती है। हालांकि समिति ने 'पप्पू' शब्द पर आपत्ति जताई है, क्योंकि इसे अपमानजनक माना है। समिति ने हमसे इसे हटाने या उसकी जगह दूसरे शब्द का इस्तेमाल करने के लिए कहा है।'
उन्होंने कहा कि पार्टी इस शब्द को हटाकर दूसरी स्क्रिप्ट चुनाव आयोग को सौंपेगी। 'पप्पू' शब्द का किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ा नहीं होने का पक्ष रखते हुए फैसले पर विचार करने के लिए कहा था। लेकिन उन्होंने इसे नामंजूर कर दिया।
क्यों 'पप्पू' शब्द को ही चुना गया
चुनाव आयोग की तरफ से पप्पू शब्द के इस्तेमाल पर लगायी गई रोक पर दैनिक जागरण से खास बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार ने बताया कि चूंकि 'पप्पू' शब्द का मतलब अपरिपक्वता या छोटा बच्चा समझा जाता है, यही एक वजह रही होगी, जिसे भाजपा ने अपने चुनावी कैंपेन में चुना होगा। उन्होंने कहा कि इससे अपरोक्ष तौर पर लोगों में कांग्रेस के नेता को लेकर यह संदेश देने की कोशिश थी कि वे अभी राजनीति में परिपक्व नहीं है और कांग्रेस की भी यही शिकायत रही है।
'पप्पू' शब्द पर रोक के बाद किसको फायदा
चुनाव आयोग की तरफ से 'पप्पू' शब्द के इस्तेमाल पर लगाई गई रोक के बाद एक बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या इससे किसी को फायदा मिलेगा? शिवाजी सरकार की मानें तो यह कहना बड़ा मुश्किल है कि 'पप्पू' शब्द पर रोक लगाने के बाद आखिर किसको फायदा पहुंचेगा। क्योंकि, यह शब्द एक व्यंग्य है और जब व्यंग्य में कोई बात कही जाती है तो उससे वोटर के मतदान करने के रुझान पर कोई असर न के बराबर होता है। वोटर हमेशा अपना मत अपने हित, राज्य के हित और देश के हित को सर्वोपरि रखते हुए देता है।
मुहावरों से नहीं बदलता वोटरों का रुझान
उन्होंने कहा कि वोटर हमेशा वोटिंग करने से पहले यह देखता है कि वह कौन सी पार्टी है, जिसके पास वह किसी भी मुश्किल घड़ी में अपनी बातों को लेकर जा सकता है और वहां पर उनकी सुनवाई होगी। ऐसे में मुहावरों का चुनावी मौसम में इस्तेमाल तो खूब होता है, लेकिन उन मुहावरों का वोटर के दिलो-दिमाग पर कितना असर होता है और इसे सुनकर उनका वोटिंग को लेकर किसी पार्टी के बारे में रुझान बदलता भी है या नहीं, इस बारे में कुछ साफतौर पर नहीं कहा जा सकता है।
पूर्व चुनाव में हुआ है 'पप्पू' का इस्तेमाल
हैरानी की बात ये है कि गुजरात चुनाव में भले ही भाजपा के चुनावी कैंपेन में 'पप्पू' शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई हो, लेकिन पप्पू शब्द का खुद चुनाव आयोग ने ही पीछे खूब इस्तेमाल किया है। 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली चुनाव आयोग की तरफ से बकायदा कैंपेन चलाया गया था जिसमें वोट न देनेवालों को 'पप्पू' कहकर संबोधित किया गया था।
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