आखिर दहेज की बुराई से समाज को कब मिलेगी निजात?
बिहार के सीएम की दहेज के खिलाफ लड़ाई मुक्कमल रूप कैसे ले पाएगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में शादी का न्यौता देने वाले लोगों से अपील की है कि वे उनका निमंत्रण तभी स्वीकार करेंगे, जब वे यह सुनिश्चि करेंगे कि उन्होंने शादी में दहेज का लेनदेन नहीं किया है। अपने साप्ताहिक कार्यक्रम-लोकसंवाद में उन्होंने ऐसी शादियों के बहिष्कार को कहा, जिसमें दहेज लिया-दिया जाता है। उन्होंने यह जानकारी भी दी है कि एक जनवरी 2018 को राज्य में मानव श्रंखला बनाकर दहेज के खिलाफ लोगों को जागरुक किया जाएगा।
दहेज अपराधों और दहेज हत्याओं के मामले में बिहार अपने पड़ोसी राज्य यूपी से ही पीछे है। इस राज्य में 2016 में दहेज हत्या के 987 मामले दर्ज किए गए थे। हालांकि एक तरफ नीतीश कुमार हैं जो अपने राज्य में दहेज हत्याओं और दहेज हिंसा की घटनाओं से चिंतित हैं और इसकी तस्वीर बदलना चाहते हैं, तो दूसरी तरफ हमारा समाज है जो अब भी दहेज के नाम पर महिलाओं से क्रूरता से पेश आ रहा है। इस पर हमारे कथित आधुनिक समाज की एक विडंबना यह है कि भले ही लड़कियां अच्छी पढ़ी-लिखी हों और अच्छी नौकरी में हों, पर उन्हें भी दहेज की अनिवार्य शर्त निभानी पड़ रही है। दहेज नहीं देने पर समाज उनके साथ पहले की तरह क्रूरता से पेश आ रहा है। इधर इसमें एक विचित्र स्थिति भी पैदा हुई है, जब सुप्रीम कोर्ट ने एक नई व्यवस्था दी है जिसके तहत दहेज प्रताड़ना से जुड़े मामलों में पुलिस आरोपी को सीधे गिरफ्तार नहीं कर सकेगी।
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दहेज कानून के दुरुपयोग संबंधी एक याचिका पर राजेश शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यूपी के मामले में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि दहेज प्रताड़ना में अब पुलिस किसी आरोपी को सीधे गिरफ्तार करने की बजाय केस परिवार कल्याण समिति के पास भेजे। जब तक उस समिति की रिपोर्ट न आ जाए, आरोपी को गिरफ्तार न किया जाए। कहा गया कि आरोपी को शिकायत के फौरन बाद गिरफ्तार करने का निर्देश देने वाली धारा-498ए ने असल में शादी की बुनियाद को हिलाकर रख दिया है। इस धारा के उपयोग (वस्तुत: दुरुपयोग) से लड़की न सिर्फ पति, बल्कि उसके तमाम रिश्तेदारों को ऐसे मामलों फंसा देती है। यह भी माना गया कि देश की राजधानी दिल्ली में ही 2012 से 2016 के बीच दहेज प्रताड़ना वाले मामलों में करीब दोगुना बढ़ोतरी हुई जो 2046 से बढ़कर 3877 हो गए।
दलील यह दी गई कि जबकि इस दौरान बलात्कार, हत्या, लूट, डकैती आदि आपराधिक मामलों में या तो कमी आई या फिर बेहद मामूली वृद्धि हुई, तो आखिर दहेज प्रताड़ना के केस क्यों इतना बढ़ गए हैं। मर्दवादी सोच से संचालित होने वाले समाज को लगता है कि ऐसा दहेज प्रताड़ना संबंधी कानून के दुरुपयोग की वजह से हुआ है क्योंकि लड़कियां पति और ससुराल पक्ष के लोगों को जरा सी बात पर अपराधी साबित करके उन्हें जेल की हवा खिलाना चाहती हैं। हैरानी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट इस दलील से सहमत ही नजर आया और माननीय न्यायाधीशों ने सारे मामलों की पड़ताल के बाद व्यवस्था दी कि खफा पत्नियां धारा 498ए को सुरक्षा के अधिकार की बजाय एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल न कर पाएं।
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अफसोफनाक ढंग से इस संबंध में अदालत का रुख दहेज प्रताड़ित स्त्रियों की व्यथा पर जरा अनभिज्ञ नजर आया है। देश में लगातार घटित हो रही दहेज प्रताड़ना संबंधी घटनाओं को देखने-सुनने के बाद यही लगता है कि जिस एक कानून के तहत महिलाओं को दहेज प्रताड़ना के मामलों में न्याय मिलने की उम्मीद बंधती है, उसमें हुआ हालिया बदलाव उनकी जिंदगी को और मुश्किल बनाएगा। हमारे समाज पर दहेज प्रताड़ना के कानून का जो थोड़ा-बहुत दबाव था, अब वह तकरीबन खत्म ही मान लिया जाएगा। इसमें संदेह नहीं कि इस कानून का कुछेक मामलों में दुरुपयोग हुआ होगा, लेकिन उसे एक सर्वसम्मत नजीर मान लिया जाना दुखद है।
मनीषा सिंह
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