जिया उल हक ने पाकिस्तान में आज लगाया था मार्शल लॉ, भुट्टो को दी थी मौत
पाकिस्तान के इतिहास में आज का दिन बेहद खास है। खास इसलिए है क्योंकि आज ही के दिन वहां की लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर इमरजेंसी लगा दी गई थी।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। पाकिस्तान की बात जब भी किसी की जुबां पर आती है तब वहां पर लोकतांत्रिक सरकारों से ज्यादा सैन्य शासन का जिक्र जरूर होता है। इसकी वजह भी बेहद साफ है। पाकिस्तान की सत्ता के शीर्ष पर बैठने की चाहत यहां के राजनेताओं से ज्यादा यहां की सेना के प्रमुखों पर ज्यादा भारी दिखाई देती है। पाकिस्तान के इतिहास में जितने वर्ष लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार नहीं रही है उससे कहीं ज्यादा समय सैन्य शासन रहा है। पाकिस्तान के इतिहास पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि 1958 में जनरल अयूब खान ने सत्ता हथियाई थी।
सत्ता हथियाने वाले पहले जनरल
अयूब खान पाकिस्तान के इतिहास में पहले सेना के कमांडर थे, जिन्होंने सरकार के खिलाफ सैन्य विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा किया और वे पाकिस्तान के पहले स्वंयभू फील्ड मार्शल भी थे। अयूब खान पाकिस्तान के पहले सबसे युवा जनरल थे। इसके बाद 1968-69 में जनरल याहिया खान ने भी ऐसा ही कदम उठाया और सत्ता छीन ली थी। 1971 में जनरल टिक्का खान और फिर 1977 में जनरल जिया उल हक ने भी लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सत्ता हथियाई थी। यह सिलसिला इसके बाद भी जारी रहा और फिर 1999 में तत्कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ ने सत्ता हथियाकर देश में मार्शल लॉ लगाया था।
सबसे लंबे समय तक किया राज
इन सभी में जनरल जिया उल हक ऐसे सैन्य शासक थे जिन्होंने पाकिस्तान में सबसे लंबे समय तक शासन किया था। आज ही के दिन 5 जुलाई 1977 को तत्कालिन जनरल जिया-उल-हक ने प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टाे का तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथों में ली थी। इतना ही नहीं हक ने उन्हें सत्ता से हटाते ही जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया था। इसको पाकिस्तान के इतिहास की विडंबना ही कहा जाएगा कि भुट्टो ने ही हक को 1 मार्च 1976 को तीन स्टार से बढ़ाकर चार स्टार का रैंक मतलब सेना प्रमुख बनाया था। जनरल बनने के एक साल के बाद 5 जुलाई 1977 को उन्होंने देश की सत्ता को अपने हाथों में लेकर मार्शल लॉ लागू कर दिया था। इसके दो वर्ष के अंदर ही उन्होंने जुल्फीकार अली भुट्टाे को हत्या की साजिश रचने के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया था। ऐसा करने के लिए उन्होंने सभी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की अपील को भी ठुकरा दिया था। जिस वक्त जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी दी गई थी तब बेनेजीर भुट्टो 26 साल की थीं। हकीकत यह भी है कि देश में मार्शल लॉ लगाने और राष्ट्रपति भुट्टो को कैद करने के साथ ही उन्होंने उनकी सजा भी तय कर ली थी।
सेंट स्टीफंस से हुई थी हक की पढ़ाई
जनरल हक का जन्म और पढ़ाई दोनों ही भारत में हुई थी। उनका जन्म 12 अगस्त 1924 को पंजाब के जालंधर में हुआ था जबकि पढ़ाई दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में हुई थी। देश के बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान चले गए। उन्होंने भारत के खिलाफ दो जंग भी लड़ी थीं। वह पाकिस्तान के चौथे फौजी तानाशाह और छठे राष्ट्रपति थे। पाकिस्तान पर उनका शासन जुलाई 1977 से अगस्त 1988 में हवाई जहाज दुर्घटना में हुई उनकी मृत्यु के बाद खत्म हुआ था। जनरल हक शरिया कानून के कट्टर समर्थक थे, लिहाजा उन्होंने सत्ता संभालते ही संविधान को दरकिनार करते हुए शरिया कानून को लागू किया था। उन्हें अफगानिस्तान में छिड़े युद्ध सोवियत रूस को वहां से बाहर खदेड़ने के लिए भी जाना जाता है। यह सब उन्होंने अमेरिका के सहयोग से बेहद गुपचुप तरीके से किया था। लेकिन इसके साथ ही पाकिस्तान और उसके पड़ोसी इलाकों में कट्टरवादी आतंकवाद भी बढ़ गया जो बाद में तालिबान कहलाया।
हर तरफ था अंकुश
हक के सत्ता हाथ में लेते ही हर तरफ अंकुश लगा दिया गया था। मीडिया पर इतना प्रतिबंध था कि हर मीडिया के आॅफिस में सैन्य अधिकारी हर खबर को पढ़कर उसको छपाई के लिए भेजते थे। इसके अलावा टीवी और रेडियो प्रसारण पर भी पूरी तरह से पाबंदी थी। सभी चीजें सेना के नियंत्रण में थी। सभी नेताओं को या तो गिरफ्तार कर लिया गया था या फिर नजरबंद कर कैद कर दिया गया था। सैन्य शासन के खिलाफ बात करने पर भी पाबंदी थी।