हवा में फैले जहर के लिए सब जिम्मेदार, करने होंगे ठोस उपाय
पराली जलाने की खातिर किसानों को जिम्मेदार बताने से कुछ हासिल नहीं होगा, उनको विकल्प देना होगा भारत में हर साल वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है।
रवि शंकर
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन सांस लेना मुश्किल होता जा रहा है। प्रदूषण का स्तर अब हानिकारक स्तर को पार कर बेहद खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। दिल्ली में प्रदूषण सुरक्षित से 10 से 15 गुना ज्यादा बढ़ गया है। दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती लाखों गाड़ियों से निकलता धुआं, कारखानों से निकलता काला जहर और मौसम में बढ़ती धुंध की परत सब मिलकर प्रदूषण का एक ऐसा कॉकटेल तैयार कर रहे हैं, जिससे दिल्ली का दम घुट रहा है। इस तरह दिनोंदिन बिगड़ती आबोहवा की वजह से उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता स्वाभाविक है। हवा में रासायनिक कणों के घुलने की वजहें छिपी हुई नहीं हैं। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में हर रोज 80 लोगों की मौत प्रदूषण की वजह से हो रही है। ऐसा नहीं है कि इस मामले में अदालत गंभीर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कई बार फटकार लगा चुकी है।
वहीं नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) भी समय-समय पर वायु प्रदूषण की हालत को लेकर चिंता प्रकट करता रहता है। फिर भी हम प्रदूषण से निपटने में असफल हो रहे हैं। यही वजह है कि दिल्ली में सेहत की चिंता में लोग या तो घरों में बंद हैं या मास्क लगा कर एलियन बने घूम रहे हैं। ऐसा नहीं है कि दिल्ली में हवा की गुणवत्ता तभी बिगड़ती है, जब पराली जलाई जाती है। दिल्ली में हवा की गुणवत्ता साल भर खराब रहती है। इसका कारण वाहनों का प्रदूषण है तो बाहर से आने वाली गाड़ियां, शहर के बीच से गुजरने वाले हाईवे, प्रदूषण फैलाने वाले औद्योगिक संयंत्र और दिल्ली में बढ़ता एसी का इस्तेमाल भी है। सब इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। हवा इतनी प्रदूषित हो गई है कि एक आकलन के मुताबिक हर व्यक्ति 50 सिगरेट पीने जितना धुआं अपने फेफड़े में भर रहा है।
पहले कुछ लोग दिल्ली में प्रदूषण के लिए दीपावली पर आतिशबाजी को भी जिम्मेदार ठहराते थे, लेकिन इस बार पटाखों की बिक्री पर रोक के बावजूद दिल्ली को धुंध से निजात नहीं मिल पाई। स्मॉग का सबसे ज्यादा प्रभाव दिल्ली के लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। अस्थमा के मरीजों के लिए ऐसे समय में बाहर निकलना किसी खतरे से कम नहीं। दिल्ली की स्थिति किस कदर खराब हो चुकी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजधानी में कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 के पार पहुंच गया। यह ठीक है कि इस स्थिति से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने कई फैसले जरूर लिए हैं, लेकिन सचमुच व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो सिर्फ इस एक कदम से दिल्ली में प्रदूषण के स्तर पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है। अहम सवाल यह है कि अगर समस्या का स्थायी इलाज ढूंढना हो तो भारत कई दूसरे देशों से सबक ले सकता है।
दरअसल, कई अन्य देश भी तमात तरीके के प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। इन देशों में प्रदूषण से निपटने के कई तौर तरीके अपनाए गए हैं, जिनसे उन्हें कुछ सफलता भी हासिल हुई है। मसलन, एक उदाहरण चीन का है। बीते सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन की यात्र पर गए थे। तब ये खबर आई कि ट्रंप के आगमन के मौके पर बीजिंग को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए चीन सरकार ने खास उपाय किए और अपने यहां के वातावरण को स्वच्छ बनाने में सफल रही। इसके पहले 2014 में चीन के कई शहरों में धुंध छा गई थी। तब बीजिंग को प्रदूषण की राजधानी कहा जाने लगा था। तब चीन ने प्रदूषण से निपटने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास शुरू किए।
दिल्ली में पिछले साल नवंबर में भी यही स्थिति थी। तब भी अदालत के आदेश से निर्माण कार्य रोक दिए गए थे, बड़ी गाड़ियों पर पाबंदी लगा दी गई थी और सम विषम नंबर वाली गाड़ियों को अलग अलग दिन चलाने का फैसला हुआ था। पर ये सिर्फ तात्कालिक उपाय है। हवा को साफ सुथरा बनाने का स्थायी उपाय नहीं किया जा रहा है और न तो सार्वजनिक परिवहन की स्थिति सुधारी जा रही है। न पड़ोसी राज्यों को पुआल जलाने से रोका जा रहा है और न प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयां बंद हो रही हैं जबकि निजी गाड़ियों पर रोक भी नहीं लग रही है। बहरहाल 21वीं सदी में जिस प्रकार से हम औद्योगिक विकास और भौतिक समृद्धि की ओर बढ़े चले जा रहे हैं, वह पर्यावरण संतुलन को समाप्त करता जा रहा है। अनेक उद्योग-धंधों, वाहनों तथा अन्य मशीनी उपकरणों द्वारा हम हर घड़ी जल और वायु को प्रदूषित करते रहते हैं।
वहीं धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है जिसके कारण पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। यह सब खतरे की घंटी है। हकीकत तो यह है कि स्वच्छ वायु जीवन का आधार है और वायु प्रदूषण जीवन के अस्तित्व के सम्मुख प्रश्नचिह्न् लगा देता है। वायु जीवन के प्रत्येक पक्ष से जुड़ा हुआ है। इसीलिए यह अति आवश्यक हो जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने वायु के प्रति जागरूक रहे और इस प्रकार वायु का स्थान जीवन की प्राथमिकताओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यो में होना चाहिए, लेकिन अफसोस की बात है कि हम सचेत नहीं हो रहे हैं।1साल दर साल बीत जाने के बाद भी भारत में वायु प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। चाहे केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकारें, कोई भी प्रदूषण से लड़ने के लिए गंभीर नहीं दिखता।
दअरसल वायु प्रदूषण एक ऐसा मुद्दा है जो पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है और इसे बिना आपसी सहमति एवं ईमानदार प्रयास के हल नहीं किया जा सकता है। वायु प्रदूषण का मतलब केवल पेड़-पौधे लगाना ही नहीं है बल्कि, भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण को भी रोकना है। वायु प्रदूषण संरक्षण सिर्फ भाषणों, फिल्मों, किताबों और लेखों से ही नहीं हो सकता, बल्कि हर इंसान को धरती के अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, तभी कुछ ठोस नजर आ सकेगा। वक्त कुछ करने का है न कि सोचने का। यह भी सत्य है कि दिल्ली में अकेले सरकार के भरोसे बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाना कठिन है। इसके लिए लोगों को भी जागरूकता का परिचय देना होगा। यह ठीक है कि राजधानी में बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने एक अहम फैसला लिया है।
(लेखक टेलीविजन पत्रकार हैं)