वसुंधरा सरकार के अध्यादेश को क्यों कहा जा रहा है काला कानून
क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 के इस संशोधन का विपक्षी दलों ने काफी विरोध किया है और इसे काले कानून करार दिया।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। वसुंधरा सरकार एक ऐसा अध्यादेश लेकर आयी है जिसके सदन से पास कराने के बाद नौकरशाहों और जजों के खिलाफ बिना सरकारी अनुमति के एफआईआर तक दर्ज नहीं की जा सकेगी और ना ही उसकी रिपोर्टिंग हो पाएगी। अगर कोई उसकी रिपोर्टिंग करेगा तो उसे दो साल तक की कैद हो सकती है। क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 के इस संशोधन का विपक्षी दलों ने काफी विरोध किया है और इसे काला कानून करार दिया।
अध्यादेश को बताया गया काला कानून
इस बीच क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में भी जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में इस अध्यादेश को 'मनमाना और दुर्भावनापूर्ण' बताते हुए इसे 'समानता के साथ-साथ निष्पक्ष जांच के अधिकार' के खिलाफ बताया गया है। जबकि, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस विवादित कानून का विरोध किया है। एडिटर्स गिल्ड ने इसे 'पत्रकारों को परेशान करने, सरकारी अधिकारियों के काले कारनामे छिपाने और भारतीय संविधान की तरफ से सुनिश्चित प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाला एक घातक कानून' बताया है।
दमनकारी बनेगा कानून
फेसबुक चर्चा में दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर राजीव सचान ने बताया कि वसुंधरा सरकार का यह तर्क है कि वह जजों और लोकसेवकों को झूठी शिकायतों से बचाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि लेकिन उनके संरक्षण देने के नाम पर इतना सख्त कानून लाना जिसके बाद किसी पूर्व या मौजूदा नौकरशाह या जज के खिलाफ रिपोर्टिंग नहीं हो सकती ये सारे दमनकारी कानून में तब्दील करते हैं।
जबकि, उर्दू इनकलाब के संपादक शकील हसन शमसी ने बताया कि इससे सबसे ज्यादा तरस जनता पर आ रही है क्योंकि इसके बाद सरकारी अफसरों के खिलाफ वो कुछ नहीं बोल पाएंगे। इस तरह के संरक्षण मिलने से जनता पर सीधा असर पड़ेगा। इसलिए उन्होंने कहा कि जब पीए ने खुद को प्रधान सेवक कहा है ऐसे में इन लोगों को अपने आपको सेवक की तरफ प्रस्तुत करना चाहिए ना कि राजाओं और महाराजाओं की तरह।