लोकतंत्र की मजबूती का बेसुरा राग, फिर सामने आई पाक की कमजोरी
पाकिस्तान में किसी भी लोकतांत्रिक संस्था से ऊपर सेना काम करती है। कार्यपालिका हो या फिर न्यायपालिका, सेना के नियंत्रण से बाहर कोई नहीं है।
सुशील कुमार सिंह
यह बात भारत कैसे पचा सकता है कि पाकिस्तान से आतंकवाद और चीन से सीमा विवाद को लेकर वह हमेशा आशंकित रहे। देश में ढेरों समस्याएं व्याप्त हैं। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा एवं चिकित्सा समेत लोक कल्याण के अनेकों काज सरकार को करने होते हैं। इन सबके अलावा चीन और पाकिस्तान जैसे कुदृष्टि रखने वाले पड़ोसी देशों से भी निपटना सरकार की जिम्मेदारी है। आज चीन और पाकिस्तान भारत के प्रति अनुत्तरदायी तरीके और निहायत निजी महत्वाकांक्षाओं के चलते मुसीबत के सबब बने हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की आपसी मुलाकात पांच बार हो चुकी है।
नवाज शरीफ जो अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं हैं उनसे भी मुलाकात का सिलसिला दहाई की ओर झुका हुआ है। भारत के साथ हाथ मिलाने की रस्म अदायगी चीन और पाकिस्तान करते रहे और पीठ पीछे वार करने में पीछे भी नहीं रहे। पाकिस्तान सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन प्रति वर्ष सैकड़ों की मात्र में करता है और आतंकियों के सहारे कश्मीर में अस्थिरता पैदा करता है जिसे लेकर आज भी भारत दो-चार हो रहा है, जबकि चीन डोकलाम का ताजा विवाद पैदा करके अपनी मनमानी करने पर उतारू है। जिस तर्ज पर पाकिस्तान आतंकियों के सहारे अपने मंसूबे पूरे करता है उससे भी साफ है कि भारत को अस्थिर करना उसकी नीति में शुमार है और इसमें खाद-पानी देने का काम चीन करता है। मसलन संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद में जब पाक आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की बात होती है तो चीन वीटो करके ऐसा करने से रोक देता है। लखवी से लेकर मसूद अजहर तक इसके उदाहरण हैं।
नवाज पनामा पेपर्स लीक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोग्य करार दिए जाने के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं। फिलहाल अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शाहिद खाकन अब्बासी को नामित कर दिया गया है। बाद में इस पद पर नवाज के भाई शाहबाज शरीफ काबिज होंगे। सभी जानते हैं कि पाकिस्तान के सत्ताधारी राजनीति के प्रतीक नहीं, बल्कि षड्यंत्र, भ्रष्टाचार और आतंकियों को पालने-पोसने वाले होते हैं। पाकिस्तान लोकतंत्र का दम भरता है, पर वहां का लोकतंत्र सेना द्वारा अकसर कुचला जाता रहा है। आइएसआइ और आतंकी संगठन भी वहां सरकार की नीतियों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दखल रखते हैं। उपरोक्त बातें पाकिस्तान की सीमा तक ही सीमित रहें तो हमें कोई तकलीफ नहीं है, पर यही जब भारत पर बुरी नजर डालते हैं तो समस्या बढ़ जाती है। पाकिस्तान का एक इतिहास भ्रष्टाचार का भी है। वहां के सत्ताधारियों पर भ्रष्टाचार के दोष लगते रहे हैं।
नवाज शरीफ ने जब कहा कि क्या पाकिस्तान में सब लोग शरीफ हैं तो मलाल बाहर आ गया। आय से अधिक संपत्ति रखने वाले शरीफ हमेशा भारत से अच्छे संबंध की दुहाई देते रहे। विश्व के मंचों पर आतंकियों से निपटने और भारत के खिलाफ इसके प्रयोग को रोकने को लेकर छाती पीटते रहे, पर किया इसके उलट। जाहिर है शरीफ की शराफत उनके नाम के हिसाब से कभी उनके साथ नहीं रही। अब बदले राजनीतिक घटनाक्रम में सवाल स्वाभाविक हो जाता है कि क्या भारत पर कुदृष्टि रखने वाला पाकिस्तान इससे बाज आएगा। इसकी संभावना भारत न करे तो ही ठीक रहेगा। शरीफ सत्ता से बाहर हैं, पर अभी अब्बासी और बाद में दूसरे शरीफ के माध्यम से खुद की कुरीतियों को आगे नहीं बढ़ाएंगे इसकी क्या गारंटी है।
आशंका तो यह भी जाहिर की जा रही है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का फायदा सीधे वहां की सेना उठा सकती है और इसका सीधा नुकसान भारत को उठाना पड़ सकता है। पाकिस्तान में फिलहाल इन दिनों लोकतंत्र की तस्वीर जो धुंधली हुई है इसके अंधेरे में आतंकवाद का इस्तेमाल और आक्रामक हो सकता है। यह बात इसलिए, क्योंकि कभी भी पाकिस्तान की सेना ने भारत के साथ बेहतर संबंध की कोशिश नहीं की है। ऐसे में जब सत्ता अस्थिरता के दौर में हो तो सेना हावी हो सकती है।
पाकिस्तान के इतिहास में लोकतंत्र और सेना का दबदबा समान रूप से साथ चले हैं और हद तब हुई है जब सेना ने दुस्साहस करते हुए न केवल सत्ता उखाड़ी है, बल्कि सत्ताधारियों को मौत की सजा भी दी है। नवाज शरीफ को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब वर्ष 1999 में परवेज मुशर्रफ ने उन्हें सत्ता से बेदखल किया था तथा जान के लाले पड़े थे, हालांकि राजनीतिक सौदेबाजी के चलते तब उनकी जान बच गई थी, परंतु उन्हें बरसों तक निर्वासित जीवन जीना पड़ा था। शरीफ इस बात से भी बाखूबी वाकिफ हैं। यदि उनके उत्तराधिकारियों ने सेना को मजबूत होने का अवसर दिया तो न सिर्फ पाकिस्तान के अंदर, बल्कि सीमा पर भी हालात गंभीर हो जाएंगे।
भारत में सीमा विवाद उत्पन्न करने वाला दूसरा और सबसे विवादित पड़ोसी इन दिनों चीन भी खूब चुनौती दे रहा है और वाह बता रहा है कि उसकी सेना हर जंग के लिए तैयार है। बीते रविवार को चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 90वें स्थापना दिवस पर परेड का निरीक्षण कर रहे थे तब चीनी सेना को हर जंग के लिए तैयार और सभी हमलावर दुश्मनों को हराने में सक्षम होने की बात कह रहे थे। खुली जीप में सैनिक की वर्दी में मिलिट्री परेड का मुआयना करते चिनफिंग ने 23 लाख चीनी सैनिकों में जो बातें भरीं उससे स्पष्ट है कि चीन भारत को मनोवैज्ञानिक दबाव में लेना चाहता है। हालांकि चिनफिंग के पूरे 10 मिनट के भाषण में मौजूदा विवाद डोकलाम को लेकर कोई चर्चा नहीं थी।
तिब्बत, ताइवान और डोकलाम के रास्ते भूटान पर कुदृष्टि रखने वाले चीन की जबरदस्ती जारी है। सोचने वाली बात यह है कि चीनी विदेश एवं रक्षा मंत्रलय तथा चीन के मीडिया का यह आरोप है कि भारत डोकलाम में अतिक्रमण कर रहा है, जबकि चिनफिंग इस विवाद को अपने भाषण से अलग रख रहे हैं। इसका आशय यह हो सकता है कि चीन की सैन्य अभ्यास और धमकाने के अंदाज में आई बयानबाजियों से भारत का रुख और तीव्र होने से चीन अपनी रणनीति बदल रहा हो। यह चीन की नई चाल भी हो सकती है।
फिलहाल भारत को चैकन्ना रहना होगा। पाक से सटी सीमा और चीन से अटी हजारों किलोमीटर की सीमा इन दोनों देशों के छल का कभी भी शिकार हो सकती है। ऐसे में रणनीतिक तौर पर भारत को ढीला नहीं पड़ना चाहिए। दो टूक यह भी है कि भारत को खुली नीति और कोठरी में बंद कूटनीति को फलक पर लाकर खिलाफ खड़े पड़ोसियों को मजबूती के साथ आईना दिखाना ही होगा।
(लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं)