अमरनाथ यात्रियों पर हमले से उठे बड़े सवाल, आखिर सुरक्षा के मोर्चे पर कहां हुई चूक
जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रियों पर हमला कहीं न कहीं सुरक्षा चूक की तरफ इशारा करता है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है।
अवधेश कुमार
पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों पर किए गए हमले की जिम्मेदारी ले ली है। इसका मास्टमाइंड पाकिस्तान स्थित लश्कर का कमांडर इस्माइल है। सुरक्षा एजेंसियां मान रहीं हैं कि लश्कर और हिज्बुल ने मिलकर यह हमला किया। हालांकि जिस ढंग के हमले की सूचना मिल रही है उसमें सहसा यह विश्वास नहीं होता कि 60 यात्रियों वाले बस में केवल पांच महिलाओं समेत सात यात्रियों की मौत हुई और शेष घायल हुए। बस में सवार एक यात्री योगेश का जो बयान मीडिया में आ रहा है उसके अनुसार श्रीनगर से बस शाम को पांच बजे निकली थी। दो घंटे के सफर के बाद अनंतनाग से दो किलोमीटर पहले बस खराब हो गई थी। इसके बाद जैसे ही बस चलने को तैयार हुई तो बस की खिड़कियों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसने लगीं लेकिन ड्राइवर सलीम ने बस नहीं रोकी।
आतंकवादी सैनिक कैंप पहुंचने तक बस में गोलियां दागते रहे। योगेश के अनुसार यह एक चमत्कार ही है कि 60 लोगों में से बाकी लोग जिंदा हैं। जाहिर है, सभी यात्री केवल अपनी नियति से बचे। सवाल है कि यह नौबत आई क्यों? आखिर अमरनाथ यात्र हर वर्ष पूरी सुरक्षा व्यवस्था में कराई जाती है। यात्रियों के अमरनाथ जी के दर्शन करने जाने से लेकर वहां से वापसी तक पूरी सुरक्षा मुहैया कराई जाती है। इस बार सुरक्षा एजेंसियों ने अमरनाथ यात्र के आतंकवादियों के निशाने पर होने की बात कही थी और अलर्ट भी जारी किया था। बुरहान वानी की बरसी 8 जुलाई से पहले कश्मीरी रेंज के पुलिस महानिरीक्षक मुनीर खान ने सेना और सीआरपीएफ को चिट्ठी लिखी थी कि आतंकवादी हमले की साजिश रच रहे हैं।
जाहिर है, इसके बाद सुरक्षा व्यवस्था और तगड़ी हुई होगी। वैसे भी बुरहान वानी की बरसी के आसपास आतंकवाद बड़ी वारदातें करने की कोशिश करेंगे यह बिल्कुल स्पष्ट था। हमारे पास जो सूचना है उनके अनुसार यात्र पहलगाम और बालटाल- इन दो रूटों से 29 जून को बेहद कड़े सुरक्षा प्रबंधों के बीच शुरू की गई थी। सुरक्षा प्रबंधों को पुख्ता बनाने के लिए केंद्र ने राज्य सरकार को 40 हजार अर्धसैनिक बल और प्रदान किए थे। इसके अलावा जम्मू कश्मीर पुलिस है, सेना है। यात्रियों से सवार गाड़ियों के आगे पीछे बीच में सुरखा बल एकदम सतर्क अवस्था में साथ चलते हैं। इतनी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद यदि आतंकवादी सफल हो गए तो इसे हमारी विफलता के रूप में स्वीकार करना ही होगा। न तो यह कहने से काम चलेगा कि अमरनाथ यात्रियों पर पहले भी हमले हुए हैं और न यह कहने से कि गुजरात की वह बस सुरक्षा का हिस्सा नहीं थी। ध्यान रखिए 2000 के बाद से यह इस तीर्थयात्र पर दूसरा सबसे घातक हमला है।
2000 में यात्रियों को पहलगाम में निशाना बनाया गया था। उस हमले में 17 यात्रियों समेत 27 लोगों की मौत हुई थी तथा 36 घायल हो गए थे। 2002 में दो हमलों में 10 यात्री मारे गए थे तथा 25 घायल हुए थे। हमारे पास 1993 से लेकर 2015 तक अमरनाथ यात्र पर हमले की 10 घटनाओं की सूचियां हैं। किंतु इसके आधार पर हम इस हमले को कमतर नहीं आंक सकते। एक भी हमला होना हमारी पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। आतंकवादी किसी सूरत में देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करना चाहते हैं। इसलिए सुरक्षा व्यवस्था को और ज्यादा चुस्त और सतर्क होना चाहिए था। हम यह नहीं कहते कि सुरक्षा एजेंसियां वहां सतर्क और चुस्त नहीं है किंतु अगर ऐसा घातक हमला हो गया तो इसका कारण क्या माना जाएगा? बस बालटाल से मीर बाजार जा रही थी। कहा जा रहा है कि उसका अमरनाथ श्रइन बोर्ड में रजिस्ट्रेशन नहीं था। पुलिस का आरंभिक बयान है कि बस उस यात्र काफिले का हिस्सा नहीं थी जिसे पुख्ता सुरक्षा प्रदान की जा रही है।
सामान्यत: अमरनाथ यात्र में आने-जाने वाली गाड़ियों को सुरक्षा की वजह से रात में चलने नहीं दिया जाता। सभी बसों को शाम 7 बजे बेस कैम्प पर पहुंचना होता है लेकिन यह साफ है कि बस खराब होने की वजह से देर हुई। वह बस सुरक्षा घेरे से पूरी तरह अलग नहीं थी। अगर बस खराब हुई तो वहां लगे सुरक्षा के जवानों को इस पर ध्यान देना चाहिए था। जाहिर है चूक तो हुई है जो महंगी पड़ी। आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्र को निशाना बनाने की चुनौती दी और उन्होंने उसे पूरा कर दिया। इससे आतंकवादियों का मनोबल बढ़ता है। हमले की भी जो खबर आई है उसको भी देखिए। आतंकवादियों ने पहले बोटेंगू में पुलिस के बुलेटप्रूफ बंकर पर हमला किया जिस पर जवाबी कावाई की गई। इस हमले में कोई हताहत नहीं हुआ। पुलिस ने कहा कि इसके बाद आतंकवादियों ने खानाबल के पास पुलिस टुकड़ी पर गोलियां चलाईं। जब पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की तो आतंकवादी भागे और उन्होंने यत्रियों को लेकर जा रही बस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं।
इसका मतलब यह हुआ कि बस बिल्कुल सुरक्षित नहीं थी। पुलिस बल से आतंकवादियों का मुठभेड़ हो चुका था। हालांकि हम यहां इसमें ज्यादा विस्तार से नहीं जाएंगे। केंद्र सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। हमले की सूचना के साथ ही साउथ ब्लॉक में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई। प्रधानमंत्री सीधे उच्चाधिकारियों से लेकर जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री से संपर्क में रहे। सुरक्षा और दुरुस्त किया गया है। दूसरे राज्यों में भी इसकी कोई सांप्रदायिक प्रतिध्वनि न हो इसके लिए भी प्रबंध किए गए हैं। गुजरात की बस थी तो वहां प्रतिक्रिया हो सकती है। इसका ध्यान रखते हुए सुरक्षा के सारे पूर्व उपाय किए गए हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भारत का कोई व्यक्ति इस हमले पर सांप्रदायिक तनाव पैदा करके आतंकवादियों के लक्ष्य को पूरा नहीं होने देगा।
वास्वत में ऐसे हमले के समय ही हमारी परिपक्वता का परीक्षण होता है। आतंकवादियों के सामने यदि झुकना नहीं है तो उनके हमले से गुस्से में आकर आपस में संघर्ष भी नहीं करना है। सरकार ने यात्र कायम रखने का जो निर्णय किया है वह बिल्कुल उचित है। यात्रियों ने भी जो निर्भयता प्रदर्शित की है और हर हाल में अमरनाथ जी के दर्शन करने की इच्छा जाहिर की है वह आतंकवादियों को मंहतोड़ जवाब है। यानी कोई आपके आतंक से डरने वाला नहीं है। अगर यात्रियों ने इतना जज्बा दिखाया है तो फिर सरकार की जिम्मेवारी कहीं ज्यादा बढ़ जाती है। जो चूक हो गई सो हो गई। अब आगे आतंकवादियों को किसी सूरत में मौका न मिले, हमले के पहले उनका काम तमाम किया जाए पूरे रास्ते को सैनिटाइज कर दिया जाए..यह सब जिम्मेवारी सुरक्षा बलों की है। उम्मीद करनी चाहिए आगे आतंकवादी अपने हर प्रयास में परास्त होंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)