सऊदी अरब में सिनेमाघर खोले जाने के फैसले से कश्मीर के कट्टरपंथी हैरान
सऊदी अरब के शासक सदियों पुरानी कट्टर इस्लामी मान्यताओं से पार पाने में लगे हुए हैं। लेकिन इधर कश्मीर में धर्म और मान्यताओं के आधार पर अब भी ऐसी पुरानी चीजों को ढोया जा रहा है।
नई दिल्ली, [जागरण न्यूज नेटवर्क]। सदियों पुरानी कट्टर इस्लामी मान्यताओं पर सख्ती से अमल करने वाले देश वाला सऊदी अरब के शासकों के हाल के कुछ फैसलों ने दुनिया भर के मुसलमानों पर असर डाला है। पहले यहां के शासकों ने महिलाओं को कार चलाने की इजाजत देकर मुस्लिम कट्टरपंथियों को हैरान किया और फिर अपने इस फैसले से कि अगले साल मार्च से सिनेमाघर खुल जाएंगे। ध्यान रहे कि कट्टर इस्लामी मान्यताओं के तहत सिनेमा-संगीत हराम है।
सऊदी अरब से शासकों ने सिनेमाघरों को खोलने की अनुमति देने के साथ यह भी कहा है कि देश में 2030 तक 300 मल्टीप्लेक्स खोले जाएंगे। सऊदी अरब सरकार के इस फैसले ने दुनिया के तमाम हिस्सों के साथ-साथ कश्मीर में भी हलचल पैदा की है। कश्मीर के कट्टरपंथी संगठनों और तत्वों को यह नहीं समझ आ रहा है कि वे सऊदी अरब के इस फैसले की आलोचना कैसे करें और साथ ही कश्मीर के बंद पड़े सिनेमाघरों को खोले जाने की पहल के खिलाफ कैसे खड़े हों? सऊदी अरब सरकार के फैसले के बाद जहां आम कश्मीरी घाटी के बंद पड़े सिनेमाघर खोले जाने की मांग कर रहे हैं वहीं जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी एक ट्वीट के जरिए सऊदी अरब के फैसले का स्वागत किया।
I welcome the decision by Saudi Arabia to lift a decade-long ban on cinemas as part of a series of social reforms by the crown prince. Introspection & self reform are marks of a progressive society.— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) December 12, 2017
उनकी राय सामने आने के बाद नेशनल कांफ्रेंस के नेता जुनैद अजीम मट्टू ने मुख्यमंत्री के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि वे मुख्यमंत्री की राय से सहमत हैं और कश्मीर में भी सिनेमा हॉल खुलने चाहिए।
Hope @MehboobaMufti is not awaiting restrictions to be lifted in Saudi Arabia first ???— RomeshNadir (@RomeshNadir) December 12, 2017
Cinema should also be welcomed in Kashmir whole hardheartedly. Hon'ble CM Mam, akhir kab tak ye pabandi from Islamists ???— Shayar Dev (@ShayarDev) December 12, 2017
Better lift Ban on Cinemas in Kashmir. Why to watch movies on smart phone with small screens.— Imran Ali Mir (@JKALERTS) December 12, 2017
ज्ञात हो कि कश्मीर घाटी के सिनेमाघर बीते कई सालों से बंद पड़े हुए हैं...
Cinema halls must be re-open because:
It will boost our economy
It will Enhance Happiness
It will create peace
It will give us employment
So Say Yes! to Re-open Cinema in #Kashmir.#ReOpenCinema #EnhanceHappiness pic.twitter.com/9Ixovupshz— Kashmir Pride (@kashmirPride) December 15, 2017
Cinema halls are not Anti- Islamic ! They must be re-open in Kashmir.
The Saudi Government said that the opening of cinemas would contribute more than 90 billion riyals ($32 billion) to the economy and create more than 30,000 jobs by 2030.#ReOpenCinema#KashmirWantsCimema pic.twitter.com/aLL81dP9dj— Wajahat Farooq Bhat (@iamwajahatBhat) December 14, 2017
ज्ञात हो कि कभी फिल्मों की शूटिंग करने वालों की पहली पसंद रहे कश्मीर के बंद पड़े सिनेमाघर बीते कई सालों से बंद पड़े हुए हैं। करीब तीन दशकों से जारी आतंकवाद के दौर में कश्मीर के सिनेमाघरों में ताले लग गए। कई सिनेमाघर खस्ताहाल हो गए तो मजबूरी में कई इमारतों में नए धंधे चल निकले।
It's time to reclaim the space for entertainment and give youth what they aspire.
Bring back cinema halls in Kashmir #KashmirWantsCimema pic.twitter.com/YbQethLBXP— Kaisar Qureshi (@Kaisar012) December 14, 2017
कश्मीर में नब्बे के दशक में आतंकवाद शुरू होने के बाद कट्टरपंथियों के प्रभाव में थियेटर बंद हो गए। न कश्मीर के हालात बदले और न ही थियेटर ही खुल पाए। कश्मीर में इन फिल्मों में टिकटों के लिए मारामारी करने वाले बुजुर्ग हो गए व नई पीढ़ी अब जम्मू जाने पर ही वहां फिल्में देखने का लुत्फ उठाती है। आज कश्मीर के मशहूर पिकेडली, ब्राडवे, नाज, शाह, शीराज, प्लेडियम, नीलम, रीगल, फिरदौस, हीवन, समद सिनेमाघर बीतें जमाने की यादें बनकर रह गए हैं। कश्मीर में इन सिनेमाघरों को कट्टरपंथी तत्वों के प्रभाव को देखते हुए बंद किया गया था। इन्हें खोलना कट्टरपंथियों को चुनौती देना है, आतंकवाद के चलते कोई भी यह जोखिम उठाने को तैयार नही है। लिहाजा सरकार भी इसमें दखल नही दे रही हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने बड़ी कोशिश से कश्मीर में वर्ष 1996 के बाद 3 थियेटर खुलवाए थे, लेकिन आतंकवादियों के दवाब में वे फिर बंद हो गए। दो थियेटरों पर आतंकवादियों ने ग्रेनेड हमले किए थे तो वहीं श्रीनगर के नीलम थियेटर पर आतंकवादियों ने फिदायीन हमला किया था। पचास वर्षीय जुबेर अहमद ने जागरण को बताया कि जवानी के दिनों में इन थिएटरों में टिकट लेना कोई आसान काम नहीं था। स्थानीय निवासियों के साथ पर्यटक भी फिल्म देखने के लिए कतार में होते थे, अब नई पीढ़ी को इन सिनेमाघरों का कोई अंदाजा नही है। बदले हालात में बंद किए गए थियेटरों के भवनों का इस्तेमाल भी अलग-अलग तरीकों से हो रहा है। कईयों में शापिंग मॉल, एक में बार, एक में अस्पताल तो कईयों का इस्तेमाल सुरक्षा बल भी कर रहे हैं।
तीन दशक पहले तक बॉलीबुड की फिल्म में कश्मीर में फिल्माया गाना न होने पर इसे अधूरा माना जाता था। पहले कश्मीरी शूटिंग देखते थे व फिर थियेटर में जाकर देखते थे कि कहानी क्या है। अब बस यादें ही बाकी हैं। कश्मीर के फिल्ममेकर मुश्ताक अली अहमद खान का कहना है कि सरकार को सिनेमाघर खुलवाने चाहिए। फिल्में ज्ञान, अनुभव भी देती हैं। अब युवा घर में टीवी पर फिल्में देखते हैं व उन्हें उस आनंद का अंदाजा ही नहीं हैं, जो बड़े पर्दे पर फिल्म देखने से होता है। सिनेमाघर बंद होने से कश्मीर में कलाकार तो हतोत्साहित हुए ही, इससे होटल व शिकारा वालों के उद्योग पर भी प्रभाव पड़ा। तीन दशक पहले तक तब कश्मीर में फिल्मी सितारे आते हैं हर तरह रौनक हो जाती थी, अब ऐसा नही है।