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सऊदी अरब में सिनेमाघर खोले जाने के फैसले से कश्मीर के कट्टरपंथी हैरान

सऊदी अरब के शासक सदियों पुरानी कट्टर इस्लामी मान्यताओं से पार पाने में लगे हुए हैं। लेकिन इधर कश्मीर में धर्म और मान्यताओं के आधार पर अब भी ऐसी पुरानी चीजों को ढोया जा रहा है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 15 Dec 2017 03:36 PM (IST)Updated: Fri, 15 Dec 2017 04:26 PM (IST)
सऊदी अरब में सिनेमाघर खोले जाने के फैसले से कश्मीर के कट्टरपंथी हैरान
सऊदी अरब में सिनेमाघर खोले जाने के फैसले से कश्मीर के कट्टरपंथी हैरान

नई दिल्ली, [जागरण न्यूज नेटवर्क]। सदियों पुरानी कट्टर इस्लामी मान्यताओं पर सख्ती से अमल करने वाले देश वाला सऊदी अरब के शासकों के हाल के कुछ फैसलों ने दुनिया भर के मुसलमानों पर असर डाला है। पहले यहां के शासकों ने महिलाओं को कार चलाने की इजाजत देकर मुस्लिम कट्टरपंथियों को हैरान किया और फिर अपने इस फैसले से कि अगले साल मार्च से सिनेमाघर खुल जाएंगे। ध्यान रहे कि कट्टर इस्लामी मान्यताओं के तहत सिनेमा-संगीत हराम है।

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सऊदी अरब से शासकों ने सिनेमाघरों को खोलने की अनुमति देने के साथ यह भी कहा है कि देश में 2030 तक 300 मल्टीप्लेक्स खोले जाएंगे। सऊदी अरब सरकार के इस फैसले ने दुनिया के तमाम हिस्सों के साथ-साथ कश्मीर में भी हलचल पैदा की है। कश्मीर के कट्टरपंथी संगठनों और तत्वों को यह नहीं समझ आ रहा है कि वे सऊदी अरब के इस फैसले की आलोचना कैसे करें और साथ ही कश्मीर के बंद पड़े सिनेमाघरों को खोले जाने की पहल के खिलाफ कैसे खड़े हों? सऊदी अरब सरकार के फैसले के बाद जहां आम कश्मीरी घाटी के बंद पड़े सिनेमाघर खोले जाने की मांग कर रहे हैं वहीं जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी एक ट्वीट के जरिए सऊदी अरब के फैसले का स्वागत किया।

उनकी राय सामने आने के बाद नेशनल कांफ्रेंस के नेता जुनैद अजीम मट्टू ने मुख्यमंत्री के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि वे मुख्यमंत्री की राय से सहमत हैं और कश्मीर में भी सिनेमा हॉल खुलने चाहिए।

ज्ञात हो कि कश्मीर घाटी के सिनेमाघर बीते कई सालों से बंद पड़े हुए हैं...

ज्ञात हो कि कभी फिल्मों की शूटिंग करने वालों की पहली पसंद रहे कश्मीर के बंद पड़े सिनेमाघर बीते कई सालों से बंद पड़े हुए हैं। करीब तीन दशकों से जारी आतंकवाद के दौर में कश्मीर के सिनेमाघरों में ताले लग गए। कई सिनेमाघर खस्ताहाल हो गए तो मजबूरी में कई इमारतों में नए धंधे चल निकले। 

कश्मीर में नब्बे के दशक में आतंकवाद शुरू होने के बाद कट्टरपंथियों के प्रभाव में थियेटर बंद हो गए। न कश्मीर के हालात बदले और न ही थियेटर ही खुल पाए। कश्मीर में इन फिल्मों में टिकटों के लिए मारामारी करने वाले बुजुर्ग हो गए व नई पीढ़ी अब जम्मू जाने पर ही वहां फिल्में देखने का लुत्फ उठाती है। आज कश्मीर के मशहूर पिकेडली, ब्राडवे, नाज, शाह, शीराज, प्लेडियम, नीलम, रीगल, फिरदौस, हीवन, समद सिनेमाघर बीतें जमाने की यादें बनकर रह गए हैं। कश्मीर में इन सिनेमाघरों को कट्टरपंथी तत्वों के प्रभाव को देखते हुए बंद किया गया था। इन्हें खोलना कट्टरपंथियों को चुनौती देना है, आतंकवाद के चलते कोई भी यह जोखिम उठाने को तैयार नही है। लिहाजा सरकार भी इसमें दखल नही दे रही हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने बड़ी कोशिश से कश्मीर में वर्ष 1996 के बाद 3 थियेटर खुलवाए थे, लेकिन आतंकवादियों के दवाब में वे फिर बंद हो गए। दो थियेटरों पर आतंकवादियों ने ग्रेनेड हमले किए थे तो वहीं श्रीनगर के नीलम थियेटर पर आतंकवादियों ने फिदायीन हमला किया था। पचास वर्षीय जुबेर अहमद ने जागरण को बताया कि जवानी के दिनों में इन थिएटरों में टिकट लेना कोई आसान काम नहीं था। स्थानीय निवासियों के साथ पर्यटक भी फिल्म देखने के लिए कतार में होते थे, अब नई पीढ़ी को इन सिनेमाघरों का कोई अंदाजा नही है। बदले हालात में बंद किए गए थियेटरों के  भवनों का इस्तेमाल भी अलग-अलग तरीकों से हो रहा है। कईयों में शापिंग मॉल, एक में बार, एक में अस्पताल तो कईयों का इस्तेमाल सुरक्षा बल भी कर रहे हैं।

तीन दशक पहले तक बॉलीबुड की फिल्म में कश्मीर में फिल्माया गाना न होने पर इसे अधूरा माना जाता था। पहले कश्मीरी शूटिंग देखते थे व फिर थियेटर में जाकर देखते थे कि कहानी क्या है। अब बस यादें ही बाकी हैं। कश्मीर के फिल्ममेकर मुश्ताक अली अहमद खान का कहना है कि सरकार को सिनेमाघर खुलवाने चाहिए। फिल्में ज्ञान, अनुभव भी देती हैं। अब युवा घर में टीवी पर फिल्में देखते हैं व उन्हें उस आनंद का अंदाजा ही नहीं हैं, जो बड़े पर्दे पर फिल्म देखने से होता है। सिनेमाघर बंद होने से कश्मीर में कलाकार तो हतोत्साहित हुए ही, इससे होटल व शिकारा वालों के उद्योग पर भी प्रभाव पड़ा। तीन दशक पहले तक तब कश्मीर में फिल्मी सितारे आते हैं हर तरह रौनक हो जाती थी, अब ऐसा नही है।


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