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अपने फायदे के लिए राजनीतिक पार्टियां भूल जाती हैं भ्रष्टाचार, लिहाजा राजनीति पहले

राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से लड़ने की बात भले करें, लेकिन व्यवहार में उनके लिए सियासी प्राथमिकता ज्यादा जरूरी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 10 Jan 2018 09:57 AM (IST)Updated: Wed, 10 Jan 2018 09:57 AM (IST)
अपने फायदे के लिए राजनीतिक पार्टियां भूल जाती हैं भ्रष्टाचार, लिहाजा राजनीति पहले
अपने फायदे के लिए राजनीतिक पार्टियां भूल जाती हैं भ्रष्टाचार, लिहाजा राजनीति पहले

नई दिल्ली [अनंत मित्तल]। राजद अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में साढ़े तीन साल कैद की सजा सुनाए जाते ही सेक्युलरवाद पर भ्रष्टाचार का ग्रहण, ग्रास बनता दिख रहा है। हालांकि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में सभी आरोपियों के सीबीआइ अदालत से निद्रोष बरी होने पर यह ग्रहण सिमटने लगा था। सीधे प्रधानमंत्री के नीचे आ रही सीबीआइ, टूजी घोटाले में एक भी पक्का सबूत पेश नहीं कर पाई जबकि नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस का दावा करते नहीं अघाते। लालू यादव को चारा घोटाले में यह सजा दूसरे मामले में सुनाई गई है। इसी के अन्य मामले में वह अब तक जमानत पर बाहर थे। इसी तरह हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर भी आय से ज्यादा संपत्ति जोड़ने का मुकदमा चल रहा है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके पूर्व सांसद पुत्र अजय चौटाला भी भ्रष्टाचार में सजायाफ्ता हैं।

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जयललिता-शशिकला को सजा 

तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता और उनकी राजदार सेविका शशिकला को सुप्रीम कोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार की कड़ी सजा सुनाई जा चुकी है। ये सब नेता सेक्युलरवाद के नाम पर जीतने के बावजूद सत्ता के दुरुपयोग से काली कमाई करते पकड़े गए हैं। साथ ही सेक्युलरवाद जमात के अनेक नेताओं और दलों का यह तर्क बेमानी सिद्ध हो गया कि सांप्रदायिक तत्वों को सत्ता से दूर रखने के लिए उसे पटखनी देने वाले सेक्युलर नेताओं के भ्रष्टाचार को मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। इस का खोखलापन तो उनके भ्रष्टाचार की अनदेखी के बावजूद भाजपा के केंद्र सहित दो-तिहाई भारत में विस्तार करने तथा सेक्युलरवादी दलों की चुनावी जमीन खिसकने से सिद्ध हो चुका। भाजपा ने अपनी साख भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद व कथित अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को मुद्दा बना ही बढ़ाई है।

बंगारू लक्ष्मण रिश्वत लेते टीवी पर सभी ने देखा

तथ्य यह भी है कि सरेआम रिश्वत लेते तो भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को भी पूरा देश टेलीविजन पर देख चुका है। इसी तरह छत्तीसगढ़ से भाजपा के राज्यसभा सांसद दिलीप सिंह जूदेव भी रिश्वत लेते फंस चुके हैं। उन्हें भी देश भर ने एक हाथ में जाम और दूसरे हाथ से नोटों की गड्डी थामते हुए लोगों ने टीवी पर सरेआम देखा था। उनका यह जुमला भी बच्चे-बच्चे की जुबान पर था,‘पैसा खुदा तो नहीं, मगर खुदा से कम भी नहीं।’ जूदेव को अपनी इसी गुस्ताखी के कारण छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोने पड़े थे और इसी वजह से डॉ. रमन सिंह की लाटरी लग गई और तब से वही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं।

सांसदों द्वारा रिश्वत लेने का स्टिंग

हालांकि अब अपने सांसद पुत्र अभिषेक के कुछ ऐसे ही आपत्तिजनक कौतुकों के कारण उन पर भी उंगलियां उठने लगी हैं। छत्तीसगढ़ के 2003 के उसी विवादास्पद चुनाव के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी की बस्तर के कुछ नवनिर्वाचित विधायकों की खरीद-फरोख्त संबंधी बातचीत को भी देश ने बहुत गुस्से और आश्चर्य से सुना। यह बात दीगर है कि अब उन्हीं अजीत जोगी और मुख्यमंत्री रमन सिंह के बीच कांग्रेस को सत्ता से महरूम रखने के लिए सांठगांठ के आरोप लग रहे हैं। उसी से बौखला कर जब कांग्रेस आलाकमान ने जोगी को पार्टी से निलंबित किया तो उनके विधायक बेटे अमित ने विता जोगी को साथ लेकर नई पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बना ली और राज्य भर में खासे सक्रिय हैं। संसद में सवाल के बदले सांसदों द्वारा रिश्वत लेने का स्टिंग भी टीवी पर नमूदार हो चुका।

सारधा चिटफंड घोटाला

सारधा चिटफंड घोटाले में भी पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा के सांसदों सहित अनेक नेताओं पर शिकंजा कसते भी जनता ने देखा। उसके बाद नारद स्टिंग कांड में पश्चिम बंगाल के अनेक सांसद और विधायकों की गर्दन फंसी हुई है। उसी से जुड़े तृणमूल कांग्रेस नेता मुकुल रॉय अब बंगाल में भाजपा के लिए सत्ता की कुंजी बने हुए हैं। इतना ही नहीं भाजपा ने उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस व बसपा सहित तमाम दलों के भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं को गले लगाकर सत्ता हासिल की है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अंग्रेजी हिज्जे एनसीपी के लिए ‘नेचुरली करप्ट पार्टी’ का जुमला उछालने वाले प्रधानमंत्री मोदी खुद एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को सम्मानित कर उन्हें सुलझा हुआ और काबिल नेता बता चुके हैं।

भाजपा में जाते ही पवित्र गाय हो गए मुकुल रॉय

इस तरह देखें तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही भ्रष्टाचार से लड़ने की बात भले करें, लेकिन व्यवहार में उनके लिए राजनीतिक प्राथमिकता ज्यादा जरूरी है। मुकुल रॉय भाजपा में जाते ही पवित्र गाय हो गए और लालू यादव के साथ बिहार में चुनाव लड़ते समय राहुल गांधी उनके चारा घोटाले को भूल गए। हालांकि इन्हीं राहुल गांधी ने 2013 में भ्रष्टाचारी नेताओं को सजा होने पर चुनाव के अयोग्य होने से बचाने संबंधी अध्यादेश को लागू करने से अपनी ही संप्रग-दो सरकार को रोक दिया था। उसकी प्रति को प्रेस कांफ्रेंस में कूड़े के हवाले करके उन्होंने इसकी बड़ी पहल की थी, लेकिन अब लालू और तेजस्वी यादव से उनकी गलबहियां जगजाहिर हैं। यह गठजोड़ सेक्युलरवाद के नाम पर किया जा रहा है। इसीलिए भाजपा सेक्युलरवाद को भ्रष्टाचार के दलदल में डुबोने पर उतारू है।

सरकार से विशेष अदालत बनाने की अपील

राजनैतिक प्रतिष्ठान में भ्रष्टाचार के विस्तार से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने निगम पार्षदों से लेकर विधायकों, सांसदों और अन्य नेताओं के भ्रष्टाचार की सुनवाई के लिए सरकार से विशेष अदालत बनाने को कहा है। सरकार ने भी 12 विशेष अदालत बनाने का वायदा कर दिया, लेकिन 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन जैसे सनसनीखेज मामले में जब सीबीआइ अदालत सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी करने पर मजबूर हो गई तब नई विशेष अदालतों से क्या उम्मीद की जाए? दरअसल अदालतों का काम तो जांच एजंसियों के सबूतों की कानूनी समीक्षा के आधार पर सजा सुनाना है। अदालत खुद जांच नहीं कर सकतीं और जब सीबीआइ जैसी सर्वोच्च जांच एजेंसी ही सबूत नहीं जुटा पाती तो आरोपियों को अदालत सजा किस बिनाह पर सुनाएंगी? अन्ना का लोकपाल बनाने का सपना उन्हीं के शिष्य अरविंद केजरीवाल ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। 2014 में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर केंद्र की सत्ता पाई मोदी सरकार भी लोकपाल के लिए कोई ठोस पहल करने से चूक गई।1
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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