देश की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना पर 56 सालों तक किसने लगाया ब्रेक
साल 1959 में इस परियोजना का प्रस्ताव पास किया गया और 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने नींव रखी थी।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। नर्मदा नदी पर बना सरदार सरोवर बांध देश की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। इस परियोजना के पूरा होने में 56 साल लग गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 67वें जन्मदिवस के मौके पर नर्मदी नदी पर बने बांध का रविवार को लोकार्पण किया। इस बांध को बनाने में अब तक करीब 56 हजार करोड़ रुपये की लागत आयी है।
सरदार सरोवर बांध की परिकल्पना देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने की। साल 1959 में इस परियोजना का प्रस्ताव पास किया गया और 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने नींव रखी थी। लेकिन, इस पर काम की शुरुआत 1987 में ही हो पायी।
विस्थापन, पर्यावरण रहा बड़ा मुद्दा
दैनिक जागरण की फेसबुक चर्चा में जागरण के एसोसिएट एडिटर राजीव सचान ने बताया कि इस परियोजना में लंबा वक्त लगा उसकी बड़ी वजह थी विस्थापन और पर्यावरण। इस परियोजना में इन दो बातों को ध्यान में नहीं रखा गया। उन्होंने बताया कि ये परियोजना बताती है कि भारत में विकास योजना को साकार करना कितना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि ये अपवाद नहीं है कि सरदार सरोवर बांध को पूरा होने में 56 साल लग गए बल्कि कई और परियाजनाएं ऐसी है जो दशकों से लंबित पड़ी हैं।
उन्होंने कहा कि जब भी कोई परियोजना में देरी होती है तो ना सिर्फ लागत बढ़ जाती है बल्कि उसकी उपयोगिता पर भी सवाल उठती है। ऐस में कहीं ना कही ऐसी योजना में देरी के लिए उन्होंने सरकार को भी जिम्मेदार माना जा है।
सरकार ने सही कदम सही समय नहीं उठाया
जबकि, ऑनलाइन एडिटर कमलेश रघुवंशी ने बताया कि आंकड़ों के तौर पर मानें तो बड़ी उपलब्धि है लेकिन जिस तरह से लंबा वक्त लगा है उसमें कहीं ना कहीं एक बड़ी नाकामी भी है। उन्होंने कहा कि मेधा पाटकर जैसे कई लोगों है जो इसके खिलाफ चलाए गए आंदोलन की उपज है। कमलेश रघुवंशी ने आगे बताया कि इस परियोजना से गुजरात के साथ ही मध्यप्रदेश की एक बड़ी आबादी प्रभावित होगी। ऐसे में अगर इन चीजों को ध्यान में नहीं रखा गया तो सवाल इस पर उठना लाजिमी है।
परियोजनाओं पर होती है खूब राजनीति
जबकि, समाचार संपादक मनोज झा ने बताया कि नीतियों को लागू करने की जो जड़ता है उसको ये परियोजना जाहिर करती है। इससे यह जाहिर होता है कि कैसे किसी चीज पर राजनीति होती है। मनोज झा ने आगे बताया कि चूंकि ये परियोजना काफी पहले बनाई गई थी उस वक्त इतनी दूरदर्शिता का ध्यान नहीं रखा गया था। लेकिन ऐसा लग रहा है कि आगे जो भी सरकार कोई परियोजना बनाएगी उसमें पर्यावरण के साथ-साथ विस्थापन और पनर्स्थापन को भी जरुर ध्यान में रखा जाएगा।
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