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किंतु-परंतु से मिल जाए छुटकारा तो खिलखिलाती है 'ये जिंदगी भी'

बिहार में मुजफ्फरपुर के बैरिया निवासी अजय (काल्पनिक नाम) की 10 साल की बेटी को स्कूल से निकाल दिया गया। पड़ोसी भी अपने बच्चों को उसके साथ नहीं खेलने देते।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 01 Dec 2017 03:14 PM (IST)Updated: Fri, 01 Dec 2017 03:34 PM (IST)
किंतु-परंतु से मिल जाए छुटकारा तो खिलखिलाती है 'ये जिंदगी भी'
किंतु-परंतु से मिल जाए छुटकारा तो खिलखिलाती है 'ये जिंदगी भी'

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। बिहार में मुजफ्फरपुर के बैरिया निवासी अजय (काल्पनिक नाम) की 10 साल की बेटी को स्कूल से निकाल दिया गया। पड़ोसी भी अपने बच्चों को उसके साथ नहीं खेलने देते। लिहाजा 10 साल की यह मासूम एकाकी जीवन जीने को मजबूर है। पूर्वी चंपारण की रागिनी कहती हैं, ‘भगवान ऐसी मौत किसी को न दे, जिसमें कंधा देने वाले रहेंगे या नहीं, इसे लेकर भी संशय हो।’ आप सोच रहे होंगे आखिर इन दोनों को हुआ क्या है? दरअसल यह दोनों ही एचआईवी-एड्स से पीड़ित हैं।

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दुत्कारें नहीं, इन्हें आपके प्यार की जरूरत है

अगर आप भी किसी एचआईवी-एड्स पीड़ित के साथ ऐसा भेदभावपूर्ण व्यवहार होते देखें तो एक पल को ठहरें और सोचें अगर आपका कोई बेहद करीब ऐसी बीमारी से ग्रसित होता तो आप क्या करते। एचआईवी-एड्स ऐसी बीमारी नहीं है जो छूने, साथ खाने जैसे सहज मानवीय भावनाओं से फैल जाए। छूने और साथ खाने से प्यार फैलता है एड्स नहीं। एड्स एक ऐसी बीमारी है जो धीरे-धीरे इंसान को अंदर से खोखला कर देती है, इसलिए ऐसे मरीजों को दुत्कारें नहीं बल्कि प्यार दें। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति का उपहास उड़ाने की कोशिश भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह असुरक्षित यौन संबंधों के अलावा यह संक्रमित सुई, खून और अजन्मे बच्चे को उसके मां से भी हो सकता है।

सरकारी अस्पतालों में इलाज तो मुफ्त है, लेकिन देखरेख न के बराबर। ऐसे में मरीज के परिजन प्राइवेट अस्पतालों में लाखों खर्च कर देते हैं। जबकि उन्हें भी पता है कि इस बीमारी के होने का मतलब है निश्चित मौत। इलाज के लिए दर-दर भटकने के अलावा मरीज और उसके परिजनों के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं रह जाता। या फिर चुपचाप मौत का इंतजार करें।

बीमारी से ज्यादा भेदभाव मार रहा

एड्स से बचाव संभव है, लेकिन एक बार किसी व्यक्ति को यह रोग लग गया तो देर-सबेर उसकी मौत निश्चित है। एड्स की बीमारी धीरे-धीरे इंसान को मौत के आगोश में ले जाती है, लेकिन सामाजिक भेदभाव पीड़ित को तिल-तिल मरने पर मजबूर कर देता है। इसकी सजा पीड़ित के परिवार को भी भुगतनी पड़ती है। इससे बुरी बात क्या होगी कि यह जानते हुए भी कि एड्स संक्रामक बीमारी नहीं है आज भी अस्पतालों, दफ्तरों और स्कूलों से इस बीमारी से ग्रसित मरीज को निकाल बाहर कर दिया जाता है। 

एड्स और टीबी

क्योंकि एड्स मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है। इसलिए मरीज को तरह-तरह की बीमारिया घेर लेती हैं। साधारण सर्दी-जुकाम भी मरीज के लिए घातक साबित हो सकता है। दुनियाभर में एड्स की वजह से होने वाली मौतों में टीबी का बड़ा हाथ है। जिन लोगों में एचआइवी संक्रमण हो, उनमें टीबी की आशंका 30 गुना अधिक होती है। 

डॉक्टरों में भी जानकारी का आभाव

समाज की तो छोड़ें, डॉक्टर भी ऐसे मरीजों से भेदभाव करते हैं। हाल में पटना के एक बड़े सरकारी अस्पताल में एक एचआइवी संक्रमित महिला को बेड से बाहर फेंक देने की खबर सुर्खियों में छा गई थी।

एड्स पर लंबे समय से काम कर रहे पटना के डॉक्टर दिवाकर तेजस्वी भी मानते हैं कि एड्स के मरीजों के साथ सामाजिक भेदभाव होता है। वे कहते हैं कि यह छूत की बीमारी नहीं है, इसे बताने के लिए उन्होंने सार्वजनिक तौर पर एड्स मरीज के जूठे बिस्किट को भी खाकर दिखाया था। लेकिन बीमारी को लेकर पूर्वाग्रह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे।

पीड़ितों का दर्द

बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में केसरिया की रहने वाली रागिनी (काल्पनिक नाम) को लुधियाना में मजदूरी कर लौटे उसके पति से यह रोग मिला। संक्रमण की जानकारी होने के बाद परिवार व समाज ने दंपती से किनारा कर लिया है। निराश रागिनी कहती है, ‘भगवान ऐसी मौत किसी को न दे, जिसमें कंधा देने वाले रहेंगे या नहीं, इसे लेकर भी संशय हो।’

पंजाब के शहीद भगत सिंह नगर की रहने वाली सोना रानी (बदला हुआ नाम) एड्स का दर्द झेल रही हैं। इसके साथ एक साल पहले पित्त की पत्थरी का भी दर्द उठा तो इलाज के लिए नवांशहर व जालंधर के सिविल अस्पतालों में भटकती रही। वह तीन दिन पीजीआई में दाखिल रही, लेकिन दर्द से निजात नहीं मिली। इस साल सितंबर में नवांशहर के निजी अस्पताल से 25 हजार रुपये खर्च कर इलाज करवाया, इसके लिए दो मरले जमीन भी उन्हें बेचनी पड़ी। 

पटना के असलम (काल्पनिक नाम) को एक निजी अस्पताल में सर्जरी के दौरान खून की जरूरत पड़ी। परिजनों ने किसी दलाल के जड़ी खून का जुगाड़ किया, लेकिन खून एचआईवी संक्रमित था। शुरुआती दौर में एचआइवी संक्रमण का पता नहीं चला। अब एड्स की अंतिम स्टेज में मौत के दिन गिन रहे असलम को अपनी नहीं, उनके कारण समाज में 'अछूत' बन गए परिवार की चिंता है।

इलाज और प्यार, पूरा जीवन जी सकता है बीमार

डॉ. तेजस्वी बताते हैं कि अगर एचआइवी संक्रमण का समय रहते पता चल जाए, सामाजिक सहयोग मिले तथा उचित इलाज हो तो 20 साल का युवा और 50 साल आराम से जी सकता है। अर्थात् एचआइवी संक्रमण में जीवन प्रत्याशा सामान्य रह सकती है। इस दौरान उसकी कार्यक्षमता भी सामान्य रह सकती है। यहां तक कि अगर सही इलाज हो तो संक्रमित मां भी स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है।

- नेशनल एड्स कंट्रोल सोसायटी के अनुमान के अनुसार बिहार में 1.60 लाख एचआइवी संक्रमित

- बिहार में 90 हजार एचआईवी-एड्स पीड़ित चिन्हित, 70 हजार का पता नहीं

- करीब 34 हजार का इलाज एआरटी (एंटी रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट) सेंटरों में चल रहा है

- बिहार में एचआइवी से सालाना करीब सात हजार लोग संक्रमित हो रहे हैं

- उत्तराखंड राज्य एड्स नियंत्रण समिति के आंकड़ों के अनुसार पौड़ी और पिथौरागढ़ में बढ़ रहे मरीज

- देहरादून, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार जिलों में एड्स पीड़ितों की बड़ी संख्या

- उत्तराखंड में एड्स संक्रमण दर 0.12 फीसद है

- पंजाब में 1993 से अक्टूबर 2017 एचआईवी मरीज की संख्या - 61014

- पिछले एक साल में नए मरीजों की संख्या - 6402

- एचआइवी पॉजिटिव पति से गर्भधारण करने पर स्वस्थ बच्चे की संभावना 95 फीसद होती है। 

ताकि मां से बच्चे में न पहुंचे संक्रमण

एचआइवी पॉजिटिव गर्भवती महिला से शिशु में संक्रमण न फैले, इसके लिए गर्भवती महिला की एआरटी शुरू की जाती है। प्रसव के तुरंत बाद शिशु को नेविरेपिन सीरप .2 एमएल प्रति किलोग्राम वजन के हिसाब से दिया जाता है। एआरटी ले रही गर्भवती महिलाओं के शिशु को 45 दिन तक सीरप दिया जाता है। 

एड्स से आगे भी है जिंदगी

एड्स व्यक्ति को धीरे-धीरे मौत के करीब ले जाता है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि व्यक्ति जीना छोड़ दे। एड्स के बावजूद एक मरीज अपनी सामान्य जिंदगी को पूरी जिंदादिली से जी सकता है। इसके कई उदाहरण भी हैं। आगरा के राहुल (बदला हुआ नाम) को बता चला कि वह एचआईवी पॉजिटिव है। बीमारी का पता चलते ही पूरा परिवार सदमे में आ गया, लेकिन उसकी पत्नी ने हिम्मत दिखाई। पति की काउंसिलिंग कराई गई, दंपती ने टेस्ट ट्यूब बेबी प्लान किया। उनके घर बेटी ने जन्म लिया और वे अब अपनी बेटी के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।

ऐसा ही मामला इलाहाबाद के सुमीत (बदला हुआ नाम) की भी है। उसकी शादी एचआईवी पॉजिटिव युवती से तीन साल पहले शादी हुई। उन्होंने एसएन के प्रिवेंशन ऑफ पैरेंट टु चाइल्ड ट्रांसमिशन (पीपीटीसीटी) सेंटर से काउंसिलिंग के बाद गर्भधारण किया। आज उनके 18 महीने का बेटा है और वह इस बीमारी से दूर है।

एड्स के सामान्य लक्षण 

एचआइवी संक्रमण के लक्षणों पर नजर डालें तो यह बेहद सामान्य से हैं, जिन्हें लोग आसानी से लोग नजरअंदाज कर देते हैं। इसमें लगातार तेज बुखार, हमेशा थकान व नींद आना, भूख में कमी, रात में सोते समय पसीना आना, दस्त लगना व वजन में कमी एचआइवी संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं। इस संक्रमण की स्थिति में त्वचा पर चकते भी पड़ सकते हैं तथा ग्रंथियों में सूजन आ सकती है। किसी व्यक्ति को अगर खुद के एचआइवी संक्रमित होने का शक हो और ऐसे लक्षण भी दिखें तो उसे एचआइवी संक्रमण की जांच जरूर करा लेनी चाहिए।

साथ में पटना से अमित आलोक, जालंधर से जगदीश कुमार, आगरा से अजय दुबे और उत्तराखंड ब्यूरो


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