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ताजमहल को लेकर तमाम दावे, पढ़ें आखिर किसका हक है इस पर

यह तो स्पष्ट नहीं है कि ताजमहल हिंदू इमारत है या मुस्लिम, पर इतना जरूर है कि यह एक विश्व विरासत है और हमारी साझी संस्कृति का प्रतीक भी।

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 19 Aug 2017 12:04 PM (IST)Updated: Sat, 19 Aug 2017 12:04 PM (IST)
ताजमहल को लेकर तमाम दावे, पढ़ें आखिर किसका हक है इस पर
ताजमहल को लेकर तमाम दावे, पढ़ें आखिर किसका हक है इस पर

अभिषेक कुमार

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केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) ने सवाल उठाया है कि ताजमहल आखिर है क्या? उसने सरकार के केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय से यह स्पष्ट करने को कहा है कि यह ऐतिहासिक इमारत शाहजहां का बनवाया हुआ मकबरा है या यह शिव मंदिर है, जिसे राजपूत राजा मान सिंह ने मुगल बादशाह को उपहार में दिया था? इस सवाल की जड़ में इतिहासकार पीएन ओक का वह दावा है जिसके मुताबिक यह एक हिंदू इमारत है। इसी को आधार बनाकर एक वकील ने यह मामला उठाया है। विभिन्न अदालतों से होता हुआ यह मामला आरटीआइ के माध्यम से सीआइसी के पास आया। अब यह मामला संस्कृति मंत्रालय के दरवाजे पर पहुंच गया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में यह मामला खारिज हो चुका है।

इस विवाद को कई नजरियों से सुलझाने की जरूरत है। यह शानदार इमारत राज्य और केंद्र सरकारों के बीच समय-समय पर विवादों के केंद्र में रही है। साथ ही मुसलमानों में ही शियाओं और सुन्नियों के बीच इसे लेकर विवाद रहा है। जहां तक सरकारों की बात है कि तीन साल पहले वर्ष 2014 में एक खींचतान केंद्र और राज्य सरकार यानी यूपी की तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार के बीच हुई थी। उस वक्त केंद्र सरकार ने ताजमहल देखने के लिए लगने वाले टिकट पर स्वच्छ भारत मिशन का प्रचार शुरू किया था। इससे यूपी की तब की अखिलेश सरकार को ऐसा प्रतीत हुआ था कि कहीं केंद्र सरकार इन कोशिशों के जरिये ताजमहल की कमाई को हथियाने का प्रयास तो नहीं कर रही है। इससे घबराकर अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख डाली थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि ताजमहल पर यूपी सरकार का अधिकार है। राज्य और केंद्र सरकार के बीच यह विवाद चल ही रहा था कि तभी यूपी सरकार के तत्कालीन कद्दावर मंत्री आजम खां ने एक अजीबोगरीब मांग कर डाली थी। आजम खां ने कहा कि ताजमहल सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के हवाले कर देना चाहिए। उनके तर्क का अहम आधार यह था कि ताजमहल में शाहजहां की कब्र है जो कि एक सुन्नी थे।

शिया मुसलमानों का दावा

आजम खां की देखादेखी शिया भी ताजमहल पर अपना दावा करते नजर आए थे। शियाओं की तरफ से यह मांग लखनऊ के इमाम-ए-रजा कमिटी के प्रेसिडेंट फय्यर हैदर ने उठाई थी। उन्होंने दलील दी थी कि मुमताज शिया थीं, इसलिए ताजमहल का असली हक तो शिया वक्फ बोर्ड का बनता है। ताजमहल को ‘शिया इमारत’ साबित करने के लिए उन्होंने ताजमहल के आर्किटेक्ट से जुड़े सबूत भी गिनवाए। उन्होंने कहा कि ताजमहल के पश्चिमी भाग में मस्जिद है। मस्जिद के पास एक हौज (पानी का टैंक) है। परंपरा के तौर पर नमाज से पहले शिया ही हाथ-मुंह धोने की प्रक्रिया (वजू) करते हैं। इस तर्क के आधार पर साबित होता है कि ताजमहल एक शिया इमारत है।

फय्यर हैदर ने सबूतों की बाकायदा एक लिस्ट पेश की, जिसमें दावा किया गया कि ताजमहल के पूर्वी हिस्से में एक हॉल है जहां धार्मिक सभाओं और मुहर्रम के दौरान मातम (शोक मनाने) के लिए लोग इकट्ठा होते हैं। यह परंपरा शिया अपनाते हैं। इसके अलावा हैदर का एक दावा यह भी है कि मुमताज को पहले अस्थाई तौर पर बुराहनपुर में दफनाया गया था। उसके बाद मुमताज का शरीर ताज में लाकर दफनाया गया। हैदर का मत है कि यह एक शिया रिवायत है, जिसे ‘मिट्टी सौंपना’ कहते हैं। इस नजरिये से ताजमहल शियाओं की विरासत कही जा सकती है। इस सारे विवाद में एक छौंक खुद को शाहजहां का वंशज बताने वाले प्रिंस तुसी ने भी लगाया था। अरसे से हैदराबाद में रह रहे शाहजहां के कथित वंशज प्रिंस तुसी ने दावा किया था कि ताजमहल तो हमारा है, इस पर किसी और का हक कैसे हो सकता है।

पर ताजमहल एक हिंदू इमारत है

यह भी एक बड़ा और उल्लेखनीय दावा है। आरटीआइ के जरिये पूछा गया है कि आगरा में स्मारक ताजमहल है या असल में शिव मंदिर के रूप में चर्चित तेजो महालय है। इसके पीछे कई धारणाएं और सबूत हैं। जैसे इसमें बने मकबरे के चारों ओर परिक्रमा पथ है, जो किसी मंदिर में ही संभव है, मकबरे में नहीं। इसके गुंबद के कंगूरे पर नारियल, आम के पत्तों और लोहे से बनी चंद्रमा की आकृति स्थापित है। इसकी दीवारों पर लाल कमल के फूलों की चित्रकारी है। कमल का फूल हिंदू पूजा-दर्शन की मुख्य वस्तु है। कई स्थानों में ओम की आकृति बने होने का दावा किया जाता है। लेकिन सबसे प्रमुख धारणा यह है कि ईरानी या मुगल परंपरा में किसी मकबरे को ‘महल’ नहीं कहा जाता फिर इसे ताज-महल क्यों कहा जा रहा है। असल में यह तेजो महालय नामक शिव मंदिर ही है, जिसका नाम संक्षिप्तीकरण के साथ ‘ताज-महल’ हो गया है।

कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां ने तेजो महालय शिव मंदिर की कुछ जमीन राजा जय सिंह से खरीदी थी। इस तरह ताजमहल जय सिंह के महल का हिस्सा है। शाहजहां ने इसे ताजमहल के रूप में परिवर्तित कर दिया। हालांकि इन सारी धारणाओं और सबूतों के बारे में एएसआइ का कहना है कि उसके पास इस तरह का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। एएसआइ ने हालांकि यह तो साफ नहीं किया है कि यह एक हिंदू इमारत है या मुस्लिम, पर यह जरूर कहा है कि ताजमहल वस्तुत: भारत सरकार की संपत्ति है, जिसे किसी भी बोर्ड को नहीं सौंपा जा सकता। ताज की देखरेख और संरक्षण की पूरी जिम्मेदारी एएसआई पर है। हालांकि इस इमारत से जुड़े जो मजहबी रिवाज हैं, उन्हें निभाने में एएसआइ मौलवियों को सहयोग अवश्य देता है।

इतिहासकारों की यह है राय

इतिहासकारों के मुताबिक अपनी तीसरी बेगम मुमताज महल की याद में ताजमहल को शाहजहां ने बनवाया था। ज्ञात तथ्यों के मुताबिक 1631 से 1653 के बीच 22 वर्ष में करीब 32 करोड़ रुपये के खर्च से बने इस मकबरे में चीन, तिब्बत, अफगानिस्तान, श्रीलंका और अरब मुल्कों से संगमरमर मंगाकर लगाया गया था। करीब 20 हजार मजदूरों और एक हजार हाथियों को इस इमारत के निर्माण में लगाया गया था। दिन और रात में ताजमहल के अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं और चांदनी रातों में इसका रूप और भी निखर जाता है। आज का ताजमहल दुनिया को कई प्रेरणाएं दे रहा है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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