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कुछ ऐसे थे सुभाष चंद्र बोस, जानें कैसे सबके चहेते बन गए 'नेताजी'

नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जब कभी जिक्र होता है, उनकी संघर्ष की गाथा याद आती है कि कैसे उन्होंने अंग्रेजी राज के खिलाफ लड़ाई लड़कर और देश को आजादी दिलाई।

By Lalit RaiEdited By: Published: Tue, 23 Jan 2018 12:24 PM (IST)Updated: Tue, 23 Jan 2018 02:24 PM (IST)
कुछ ऐसे थे सुभाष चंद्र बोस, जानें कैसे सबके चहेते बन गए 'नेताजी'
कुछ ऐसे थे सुभाष चंद्र बोस, जानें कैसे सबके चहेते बन गए 'नेताजी'

नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क ] ।  स्वतंत्रता संग्राम को जब हम याद करते हैं तो न जानें कितने ऐसे चेहरे हैं जो दिल और दिमाग को झकझोर देते हैं। देश की आजादी के लिए उन वीर सपूतों ने अपनी खुद की इच्छाओं को दमन कर दिया। उनके त्याग, समर्पण और बलिदान का नतीजा था कि अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश होना पड़ा। देश का हर कोने में उन वीर सपूतों की वीर गाथा गाई जाती है। उन्हीं वीर सपूतों में से एक थे सुभाष चंद्र बोस जिन्हें लोग प्यार से नेताजी के नाम से याद करते हैं। 

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'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा' का नारा देने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस का आज जन्मदिन है। आजाद हिंद फौज के संस्थापक और अंग्रेजों से देश को मुक्त कराने में अपना बहुमुल्य योगदान देने वाले नेताजी का जन्म 23 जनवरी साल 1897 में हुआ था। नेताजी का जन्म उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। कटक में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने रेवेनशा कॉलिजियेट स्कूल में दाखिला लिया। जिसके बाद उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। 1919 में बीए की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी से पास की और विश्वविद्यालय में उन्हें दूसरा स्थान मिला था।

...जब महात्मा गांधी से मिले नेताजी

20 जुलाई 1921 में सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात पहली बार महात्मा गांधी जी हुई। गांधी जी की सलाह पर वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए काम करने लगे। भारत की आजादी के साथ-साथ उनका जुड़ाव सामाजिक कार्यों में भी बना रहा। बंगाल की भयंकर बाढ़ में घिरे लोगों को उन्होंने भोजन, वस्त्र और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का साहसपूर्ण काम किया था। समाज सेवा का काम नियमित रूप से चलता रहे इसके लिए उन्होंने 'युवक-दल' की स्थापना की।

नेताजी को 11 बार कारावास

सार्वजनिक जीवन में नेताजी को कुल 11 बार कारावास की सजा दी गई थी। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 को छह महीने का कारावास दिया गया था। 1941 में एक मुकदमे के सिलसिले में उन्हें कोलकाता (कलकत्ता) की अदालत में पेश होना था तभी वे अपना घर छोड़कर चले गए और जर्मनी पहुंच गए। जर्मनी में उन्होंने हिटलर से मुलाकात की। अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के लिए उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया और युवाओं को 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा भी दिया।

नेताजी और मौत पर रहस्य

नेताजी की मौत पर रहस्य बरकरार है। 18 अगस्त 1945 को वे हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे थे। इस सफर के दौरान ताइहोकू हवाई अड्डे पर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। सुभाष चंद्र बोस का निधन भारत के इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य है। उनकी रहस्यमयी मौत पर समय-समय पर कई तरह की अटकलें सामने आती रही हैं।भारत सरकार ने आरटीआइ के जवाब में ये बात साफ तौर पर कही है कि उनकी मौत एक विमान हादसे में हुई थी। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक खुद जापान सरकार ने इस बात की पुष्टि की थी कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान हादसा नहीं हुआ था। इसलिए आज भी नेताजी की मौत का रहस्य खुल नहीं पाया है। 

नेताजी और गुमनामी बाबा

1985 में एक ऐसे शख्स का निधन हुआ जो चर्चा में आ गई थी। यूपी के फैजाबाद में गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की मृत्यु हो गई थी। कई लोगों का कहना था कि ये गुमनामी बाबा और कोई नहीं बल्कि खुद सुभाषचंद्र बोस थे। इस बात पर लोगों का कौतूहल तब और ज्यादा बढ़ गया जब उनकी मृत्यु के बाद उनके सामान की जांच हुई। उनके सामान से कई सारी ऐसी चीजें बरामद हुई जिनका संबंध सीधे-सीधे गुमनामी बाबा का तार सुभाषचंद्र बोस से जोड़ सकता था। 

गुमनामी बाबा सुभाषचंद्र बोस है या नहीं इस बात की चर्चा में कई तथ्य खंगाले गए। इन तथ्यों में दोनों के चेहरों का काफी हद तक मिलना भी शामिल था। पता नहीं कि ये मात्र एक इत्तेफाक है या नहीं कि गुमनामी बाबा और सुभाषचंद्र बोस का चेहरा एक दूसरे से इस हद तक मिलता है। इसी तरह के कुछ तर्क देकर इस बात को सिद्ध करने की कोशिश की गई कि गुमनामी बाबा ही सुभाषचंद्र बोस हैं।

गुमनामी बाबा सुभाषचंद्र बोस है या नहीं इस बात की चर्चा में कई तथ्य खंगाले गए। इन तथ्यों में दोनों के चेहरों का काफी हद तक मिलना भी शामिल था। ये मात्र एक इत्तेफाक है या नहीं कि गुमनामी बाबा और सुभाषचंद्र बोस का चेहरा एक दूसरे से इस हद तक मिलता है। इसी तरह के कुछ तर्क देकर इस बात को सिद्ध करने की कोशिश की गई कि गुमनामी बाबा ही सुभाषचंद्र बोस हैं।

इस कड़ी में बात गुमनामी बाबा के पास से बरामद सिगार और घड़ियों की भी चली। गुमनामी बाबा के पास ठीक उसी ब्रांड की घड़ियां और सिगार थी जिसका इस्तेमाल बोस करते थे।सुभाषचंद्र बोस के 67वें जन्मदिन पर जारी हुए ये स्टैंप भी गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी के पास से बरामद हुए थे।

इसके अलावा उनके पास से टाइपराइटर और कई किताबें भी बरामद हुई। ये वैसी चीजें थी जिनका इस्तेमाल सुभाषचंद्र बोस किया करते थे।गुमनामी बाबा सुभाषचंद्र बोस थे कि नहीं इस बात की पुष्टि तो नहीं हो पाई पर उस समय के कई अखबारों ने तो गुमनामी बाबा की मौत को सीधे-सीधे सुभाषचंद्र बोस की मौत ही बता दिया था।

जब जयगुरुदेव ने खुद को बताया था नेताजी

ये किस्सा 1975 का है जब कानपूर के फूलबाग के नानाराव पार्क में रैली शुरू होने वाली थी. इस रैली की तैयारियां महीनों से चल रही थी। हजारों की तादाद में लोग जमा हुए थे। इस भीड़ की एक अहम वजह थी, वो वजह थी सुभाषचंद्र बोस। दरअसल लोगों से कहा गया था कि इस रैली में सुभाषचंद्र बोस आने वाले हैं। लोग मान बैठे थे कि नेता जी की मौत तो प्लेन क्रैश में हो चुकी है।  ऐसे में इस तरह के ऐलान से लोगों का चौंकना लाजमी था।

फूलबाग में रैली शुरू हुई और जयगुरुदेव मंच पर आए। सभी लोग टकटकी लगाए देख रहे थे कि अब सुभाष बाबू आएंगे। इतने में बाबा ने दोनों हाथ उठाकर कहा कि मैं ही हूं सुभाष चंद्र बोस’। ये सुनते ही मंच पर चप्पल, अंडों और टमाटरों की बरसात शुरू हो गई। गुस्साई भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। जयगुरुदेव वहां से जान बचाकर निकल गए।  


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