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'राजिम कुंभ कल्प' की चकाचौंध को बढ़ा देगा ढाई लाख दीप और 1500 शंखों का महानाद

देश के प्रसिद्ध 'प्रयाग तीर्थ" की तरह छत्तीसगढ़ के राजिम कुंभ कल्प भी अपनी विशेष पहचान बना चुका है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 04 Feb 2018 01:39 PM (IST)Updated: Tue, 06 Feb 2018 05:22 PM (IST)
'राजिम कुंभ कल्प' की चकाचौंध को बढ़ा देगा ढाई लाख दीप और 1500 शंखों का महानाद
'राजिम कुंभ कल्प' की चकाचौंध को बढ़ा देगा ढाई लाख दीप और 1500 शंखों का महानाद

रायपुर [स्पेशल डेस्क]। देश के प्रसिद्ध 'प्रयाग तीर्थ" की तरह छत्तीसगढ़ के राजिम कुंभ कल्प भी अपनी विशेष पहचान बना चुका है। इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम की जैसी महत्ता है कुछ वैसा ही महत्व राजिम के तीन नदियों 'महानदी, सोंढूर व पैरी नदी" का संगम है। त्रिवेणी संगम तट पर लगने वाले राजिम कुंभ कल्प में 15 दिनों तक लाखों लोग दर्शन, स्नान करने उमड़ते हैं। पिछले 31 जनवरी माघ पूर्णिमा से शुरू हुआ राजिम कुंभ कल्प महाशिवरात्रि तक चलेगा। इस बार मेले में 1500 शंखनाद और ढाई लाख प्रज्ज्वलित दीप आकर्षण का केन्द्र रहेगा।

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2005 में मेले को दिया गया राजिम कुंभ का नाम

भगवान राजीव लोचन की तीर्थस्थली में सैकड़ों साल से माघ पूर्णिमा पर राजिम मेला लगता आ रहा है। प्रदेश के कद्दावर धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने राजिम मेले को 2005 में भव्य रूप से आयोजित करने का निर्णय लिया। मात्र 13 सालों में ही राजिम मेला राजिम कुंभ के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है। राज्य बनने के बाद 2005 में मेले को दिया गया राजिम कुंभ का नाम 

देश-दुनिया को अवगत कराने की आवश्यकता

मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मुताबिक, उन्होंने महसूस किया कि धर्म नगरी राजिम की ऐतिहासिक -धर्मिक महत्ता से देश-दुनिया को अवगत कराने की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ की यह पावन भूमि प्रभु राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि होने के साथ-साथ प्रभु राम का वन गमन मार्ग भी रहा है। धर्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्रीरामचन्द्र और माता सीता ने अपने वनवास के सर्वाधिक 10 वर्ष छत्तीसगढ़ की धरा पर बिताए है। इससे जुड़ी कई किवदंतियां प्रचलित है। प्रमुख रूप से किवदंती है कि राजिम के त्रिवेणी संगम में कुलेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना माता सीता द्वारा वनवास के दौरान किया गया है।

यह भी उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में राजिम की मान्यता प्रयागराज इलाहाबाद की तरह है। यहा संगम में अस्थि विसर्जन, पिंडदान आदि कर्मकांड कराये जाते है। मेरा मानना है कि साधु-संत एक एम्बेसडर की तरह होते है। उनके माध्यम से दुनियां ऐसे धर्मिक स्थलों के महत्व को जान पाती है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ को धर्मिक पर्यटन के नक़्शे में उभारना, सांस्कृतिक विकास आदि सब बातों को लेकर मेरे हृदय में जो विचार पिछले कई वर्षों से चल रहे थे उसके फलित होने का अवसर मुझे मिला था । यह विचार था सदियों से त्रिवेणी संगम राजिम में होते आ रहे वार्षिक राजिम मेले को उसकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बेहतर व्यवस्था और भव्य स्वरूप के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाए।

संतों को सुनने देशभर से आते हैं भक्तगण

राजिम कुंभ कल्प को प्रसिद्धि यहां होने वाले सात दिवसीय 'संत समागम" की वजह से मिली है। देश के बड़े-बड़े संत-महात्मा, महामंडलेश्वर, नागा साधु, हरिद्वार, वाराणसी, ऋषिकेश, अयोध्या समेत सभी धार्मिक स्थलों के आश्रमों व अखाड़ों के साधु-संत यहां आ चुके हैं। अपने गुरुजनों के प्रवचन सुनने व दर्शन लाभ लेने देशभर से भक्त राजिम कुंभ में अवश्य पधारते हैं।

अस्थियां विसर्जन व पिंडदान का महत्व

हरिद्वार में गंगा नदी व इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम की तरह राजिम के त्रिवेणी संगम पर अस्थियों का विसर्जन करने की मान्यता के चलते छत्तीसगढ़ के गांव-गांव से श्रद्धालु आते हैं और पिंडदान की परंपरा भी निभाते हैं।

भगवान श्रीराम ने की थी कुलेश्वर महादेव की पूजा

त्रिवेणी संगम के बीच स्थित प्राचीन कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम ने कुलेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना की थी। प्राचीन काल में इस क्षेत्र को कमल क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। यह भी मान्यता है कि जब सृष्टि की उत्पत्ति हुई थी तब भगवान विष्णु की नाभि से निकला कमल इसी जगह पर था। और ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इसके चलते इस जगह का नाम कमल क्षेत्र पड़ा।

पांचवें कुंभ कल्प के रूप में प्रसिद्ध 

माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक लगने वाला कुंभ भारत के पांचवें कुम्भ कल्प मेला के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है। कुंभ मेले में उज्जैन, हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, ऋषिकेश, द्वारिका, कपूरथला, दिल्ली, मुंबई जैसे धार्मिक स्थलों के साथ देश के प्रमुख धार्मिक सम्प्रदायों के अखाड़ों के महंत, साधु-संत, महात्मा और धर्माचार्यों का आगमन होता है।

नदी बचाने लिया संकल्प

शनिवार को मेला परिसर में हजारों युवाओं ने मैराथन दौड़ में भाग लिया और नदी व प्रकृति को बचाने का संकल्प लिया। पहली बार नदी किनारे आयोजित मैराथन को देखने लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।

नागा साधुओं का शाही स्नान देखने लायक

मेले में जहाँ एक ओर जगतगुरु शंकराचार्य, ज्योतिष पीठाधीश्वर व महामंडलेश्वरों ने अपनी दिव्य वाणी से भक्तों को कृतार्थ किया वहीं महाशिवरात्रि के दिन नागा साधुओं का शाही स्नान देखने लायक रहेगा।

त्रिवेणी संगम की महाआरती

त्रिवेणी संगम में प्रतिदिन शाम को होने वाली महाआरती का दृश्य हरिद्वार के हर की पौड़ी में होने वाली गंगा आरती तरह भव्य होती है। नदी किनारे हजारों श्रद्धालु हाथों में दीप लिए आरती व नदी में दीपदान करते हैं।

31 जनवरी से 13 फरवरी तक कुंभ

माघ पूर्णिमा 31 जनवरी से फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी, महाशिवरात्रि तक चलने वाले कुंभ में 7 फरवरी से 13 फरवरी तक संत समागम होगा। इसमें अनेक संत शिरकत करेंगे। सातों दिन सत्संग और प्रवचन की धारा बहेगी।

महाशिवरात्रि पर शाही स्नान

संगम पर कुंभ मेले के आखिरी दिन महाशिवरात्रि पर्व पर होने वाले शाही स्नान के लिए शाही कुंड बनाया गया है। इसके लिए अखाड़ों के बीच जोर- आजमाइश होती है। महानदी में पानी ठहरता नहीं, इसलिए गंगरेल बांध से पानी छोड़ कर स्नान के लिए पानी का बंदोबस्त किया जाता है।

जगमगाएंगे ढाई लाख दीप 

तेरहवां राजिम कुंभ कल्प मेला इस बार ऐतिहासिक होगा। राजिम मेला क्षेत्र में 7 फरवरी को संत समागम पर संतों के स्वागत में ढाई लाख मिट्टी के दीप प्रज्ज्वलित किए जाएंगे। यह अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड माना जा रहा है।

1500 शंखों का महानाद

कुंभ कल्प में 8 फरवरी को सामूहिक शंखनाद भी आकर्षण का केन्द्र होगा। इसमें 1500 शंख एक साथ गूंजायमान होंगे।  


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