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...और अपने परिक्रमा पथ से हटकर सूर्य से टकरा जाएगी हमारी धरती

इतिहास गवाह है कि जब कभी वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड को देखने का नया नजरिया खोजा है, उन्होंने न सिर्फ बदलाव की नई खोज की है, बल्कि समाज को नया तकनीकी विस्तार दिया है1

By Digpal SinghEdited By: Published: Mon, 23 Oct 2017 09:30 AM (IST)Updated: Mon, 23 Oct 2017 12:02 PM (IST)
...और अपने परिक्रमा पथ से हटकर सूर्य से टकरा जाएगी हमारी धरती
...और अपने परिक्रमा पथ से हटकर सूर्य से टकरा जाएगी हमारी धरती

निरंकार सिंह। इस बार भौतिकी का नोबल पुरस्कार गुरुत्वीय तरंगों की खोज के लिए अमेरिकी खगोल वैज्ञानिकों बैरी बैरिश, किप थोर्ने और रेनर बेस को देने की घोषणा की गई है। उनकी यह खोज ब्रह्मांड के झरोखे खोलती है। अलबर्ट आइंस्टीन ने करीब एक सदी पहले अपने सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत के तहत गुरुत्वीव तरंगों का अनुमान लगाया था। मगर 2015 में ही इस बात का पता लगा कि ये तरंगें अंतरिक्ष-समय में विद्यमान हैं। ब्लैक होल्स के टकराने या तारों के केंद्र के विखंडन से यह तरंग पैदा होती हैं।

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नोबल पुरस्कार विजेताओं का चयन करने वाली स्वीडिश रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेस के प्रमुख जी.के. हनसॉन ने कहा कि उनकी खोज ने दुनिया को हिला दिया। उन्होंने सितंबर 2015 में यह खोज की थी और फरवरी 2016 में इसकी घोषणा की थी। दशकों से वैज्ञानिक अनुसंधान के बाद यह ऐतिहासिक खोज हुई है और तभी से तीनों वैज्ञानिक खगोलशास्त्र के क्षेत्र में मिलने वाले सभी बड़े पुरस्कार अपने नाम करते आ रहे हैं।

थोर्ने और वेस ने प्रतिष्ठित कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में संयुक्त रूप से लेजर इंटरफियरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेब-ऑब्सर्वेटरी (लीगो) बनाया था। इसके बाद बैरिश ने परियोजना को अंतिम रूप प्रदान किया। करीब 1.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर हुए घटनाक्रम के चलते पहली बार गुरुत्व तरंगों का प्रत्यक्ष प्रमाण मिला था। अकादमी ने कहा कि पृथ्वी पर जब सिग्नल पहुंचा तो बहुत कमजोर था, लेकिन खगोल विज्ञान में यह बहुत महत्वपूर्ण क्रांति है। गुरुत्वीय तरंगें अंतरिक्ष में सबसे प्रचंड घटनाक्रमों पर नजर रखने और हमारे ज्ञान की सीमाओं को परखने का पूरी तरह नया तरीका हैं। ब्लैक होल से कोई प्रकाश नहीं निकलता, इसलिए उनका पता केवल गुरुत्व तरंगों से लगता है।

आइंस्टीन का सामान्य सापेक्षिता का सिद्धांत

आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षिता का सिद्धांत यह भविष्यवाणी करता है कि गतिशील भारी पिंड गुरुत्वीय तरंगों के रूप में आकाश की वक्रता में प्रकाश के वेग से चलने वाली ऊर्मियों के उत्सर्जन को प्रेरित करेंगे। ये प्रकाश तरंगों के समान ही होती हैं जो चुंबकीय क्षेत्र की ऊर्मियां हैं। परन्तु इनका पता लगाना कठिन होता है। इनका अवलोकन उस पृथक्करण में थोड़े से परिवर्तन द्वारा किया जा सकता है, जिसे वे पड़ोस के स्वतंत्र रूप से गतिशील पिंडों के बीच पैदा करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और जापान में बहुत सारे लोग ऐसे संसूचक बनाने का प्रयास कर रहे थे जो एक हजार मिलियन के एक हिस्से का या दस मील की दूरी से परमाणु के नाभिक से भी कम विस्थापन मापांकित कर सकें, लेकिन इस क्षेत्र में सफलता मिली बैरी बैरिश, किम थोर्ने और रेनर वेश को, जिसके लिए उन्हें नोबल पुरस्कार मिला।

सूर्य से टकरा जाएगी पृथ्वी

प्रकाश के समान ही गुरुत्वीय तरंगें स्वयं को उत्सर्जित करने वाले पिंडों से ऊर्जा ले जाती हैं। इसलिए एक ऐसी प्रणाली की अपेक्षा की जा सकती है जिसमें महाकाय स्थूल पिंड अंतत: एक स्थिर अवस्था में बने रहेंगे। क्योंकि किसी भी प्रकार की गति की अवस्था में ऊर्जा गुरुत्वीय तरंगों के उत्सर्जन द्वारा ले जाई जाएगी। यह तर्क पानी में डाट (कॉक) गिराने के समान है। पहले तो ये बहुत डूबती-उतराती है, परंतु जैसे ही विक्षोभ में उत्पन्न ऊर्मियां इसकी ऊर्जा को ले चलती हैं, तो यह अंतत: एक स्थिर अवस्था में आ जाता है। उदाहरण के लिए सूर्य के चारों ओर अपने परिक्रमा पथ में पृथ्वी की गति गुरुत्वीय तरंगे पैदा करती है। इस ऊर्जा-हानि का प्रभाव यह होगा कि पृथ्वी का परिक्रमा पथ बदल जाएगा जिससे धीरे-धीरे यह सूर्य के निकट आती जाएगी और आखिर में इससे टकरा जाएगी और एक स्थिर अवस्था में आ जाएगी। पृथ्वी और सूर्य के मामले में ऊर्जा-हानि की दर बहुत कम है। एक छोटा सा बिजली का हीटर जलाने लायक, बस। इसका अर्थ यह हुआ कि पृथ्वी सूर्य से टकराए इसमें लगभग एक हजार मिलियन मिलियन मिलियन मिलियन (1 के बाद 27 शून्य) वर्ष लगेंगे, अत: फिलहाल चिंता की कोई बात नहीं।

पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन इतना धीमा है कि इसका प्रेक्षण नहीं किया जा सकता, लेकिन यही प्रभाव पल्सर तारे में घटित होते हुए पिछले कुछ वर्षों से देखा गया है। पल्सर तारा एक विशेष प्रकार का न्यूट्रोन तारा होता है जो रेडियो तरंगों के नियमित स्पंदन उत्सर्जित करता है। इस प्रणाली में एक दूसरे की परिक्रमा करते हुए दो न्यूट्रोन तारे हैं और गुरुत्वीय तरंगों के उत्सर्जन से हो रही ऊर्जा की हानि उन्हें सर्पिल गति से एक-दूसरे की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है। सामान्य सापेक्षता की इस पुष्टि के लिए जेएच टेलर और आरए हुल्स को 1993 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन न्यूट्रोन तारों को टकराने में लगभग तीस करोड़ वर्ष लगेंगे। टकराने से पहले वे इतनी तीव्र गति से परिक्रमा कर रहे होंगे कि वे लीगो जैसे सूचकांकों के द्वारा संकेत ग्रहण करने के लिए पर्याप्त मात्रा में गुरुत्वीय तरंगे उत्सर्जित करेंगे।

ब्रह्मांड को देखने की नई खिड़की खुली

उन्नत लीगो ने गुरुत्वीय तरंगों के सीधे प्रेक्षण से मानवता के एक नए युग की शुरुआत की है, जिसे ब्रह्मांड को एक नई नजर से देखने का और अत्याधुनिक तकनीकी दक्षता का प्रयोग सामान्य लोगों के लिए करने की क्षमता का अवसर मिलेगा। परंपरागत रूप से खगोल विज्ञान एक दृश्य प्रतिष्ठान रहा है- एक विज्ञान जो रेडियो से गामा किरणों तक प्रकाश के विभिन्न रूपों को शामिल करता रहा है। मगर गुरुत्वीय तरंगों के प्रेक्षण के बाद ब्रह्मांड को देखने की एक नई खिड़की खुल गई है, जो हमें उसके बारे में अत्यन्त समृद्ध सूचनाएं दे सकती है। भविष्य की गुरुत्वीय तरंग वेधशाला ब्लैक होल्स की आकर्षक विशेषताओं को जांच परख सकती हैं, जिसमें संभवत: आंकाशगंगाओं, सितारों और गुरुत्व के बनने-विकसित होने की प्रक्रिया पर जानकारी मिल सकती है। इसके अतिरिक्त ये बिग बैंग के समय उत्सर्जित गुरुत्वीय तरंग का प्रेक्षण लेने में सक्षम हो सकती है जो अंतत: हमें अपने ब्रह्मांड की शुरुआत के बारे में, और अन्य ब्रह्मांडों के संभावित अस्तित्व के बारे में और अधिक जानकारी दे सकती है। जैसा कि अब वैज्ञानिकों ने कहना शुरू कर दिया है, लीगो की सफलता के बाद हम ब्रह्मांड को न सिर्फ देख सकेंगे बल्कि उसे सुन भी सकेंगे।

(लेखक हिंदी विश्वकोश के सहायक संपादक रह चुके हैं)


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