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अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव 2018: हम पतंग ही नहीं उड़ाते, पेंच लड़ाने का भी लुत्फ लेते हैं

अहमदाबाद में वर्ष 1989 से ही हर साल अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव मनाया जा रहा है। इस वर्ष यहां 44 देशों के तकरीबन 180 पतंगबाजों ने इस उत्सव में भाग लेकर इसे खास बनाया है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 13 Jan 2018 03:41 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jan 2018 07:03 PM (IST)
अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव 2018: हम पतंग ही नहीं उड़ाते, पेंच लड़ाने का भी लुत्फ लेते हैं
अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव 2018: हम पतंग ही नहीं उड़ाते, पेंच लड़ाने का भी लुत्फ लेते हैं

अहमदाबाद, [सीमा झा]। मकर संक्राति पर रोमांच के शौकीनों को सबसे ज्यादा इंतजार रहता है पतंगबाजी का। वैसे तो पतंग दुनियाभर में उड़ाई जाती है, पर हमारे देश में पतंग उड़ाने से ज्यादा ‘पेंच लड़ाने’ का रोमांच होता है। इन दिनों हेरिटेज सिटी अहमदाबाद में चल रहा है अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव (7 जनवरी-15 जनवरी)। इस मौके पर जानते हैं पतंगों के इस अजब-गजब संसार के बारे में...

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तरह-तरह की रंगों और आकृतियों वाले पतंग, छोटे-बड़े, भीमकाय। कुछ जमीन पर बिछे तो कुछ उड़ान भरने को तैयार। कुछ लंबी पूंछ वाले तो कुछ महीन कपड़ों पर बने भडक़ीली आकृतियों वाले। मछली, कैक्टस, मगरमच्छ, ड्रैगन, तितली आदि की आकृतियों वाले पतंग। यहां कुछ खास संदेशों से सजी पतंगों की बड़ी फौज भी देख सकते हैं। अशोक चक्र के डिजाइन वाली पतंगें तो कहीं ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ मुहिम से जुड़े संदेशों वाली पतंगें। कहीं टायरनुमा सतरंगी पतंग उड़ा रहे लोग। इन सबकी तादाद इतनी ज्यादा कि आसमान भी छोटा लगता है। खुले नीले आसमान के नीचे पतंगबाजों ने जैसे ठान लिया कि इतनी ऊंची उड़ान भरनी है कि आसमान छोटा पड़ जाए! मन पतंगों की तरह उड़ान भरते हुए दूर निकल जाना चाहता है। इस सालाना महोत्सव में हर साल दुनिया के कई देश हिस्सा लेते हैं। इस बार यहां 44 देशों के 180 से ज्यादा और भारत के 18 राज्यों के 200 से अधिक पतंगबाजों और पतंग से जुड़े कारोबारी शिरकत कर रहे हैं। 

रोमांच के साथ एंटरटेनमेंट

हजारों साल पुरानी पतंगबाजी की परंपरा एक समय वैज्ञानिकों के लिए बड़ी सुविधा बन गई। शायद आपको मालूम हो कि पहले पतंगों का उपयोग दूरस्थ स्थानों को संकेत देने, लैम्पों व झंडों को ले जाने में किया जाता था। आज के ड्रोन की तरह पहले आकाश मार्ग से पतंग पर कैमरा लगाकर चित्र खींचने के लिए भी पतंगों का प्रयोग किया जाता था। बहरहाल, आज जुनून में डूबे लोगों के लिए पतंगबाजी है एक बड़ा मनोरंजन का साधन। कनाडा से आए पतंगबाज फ्रेड टेलर कहते हैं, ‘मैं रिटायर हो गया हूं पर लोग कहते हैं हरफनमौला हूं। ऊर्जा से भरा हुआ। इसका कारण एक ही है पतंगबाजी। मेरे एंटरटेनमेंट का बड़ा जरिया है। मैं तीसरी बार पतंगोत्सव में शिरकत रहा हूं।’

उड़ाते ही नहीं, लड़ाते भी हैं!

काटा, वो काटा, काइ-पो-चे..., पेंच लड़ा लो...अरे देखो, कट गई उसकी पतंग, ...अरे मेरा पतंग है मेरा प्यादा, मैं हूं सेना, जमके लडऩा है, आज न छोडऩा है, उसकी पतंग...। ये जुमले पतंगबाजी करने वाले खूब बोलते-सुनते हैं। दोस्तो, यही है भारतीय पतंगबाजी की सबसे बड़ी पहचान। दरअसल, पतंगबाजी की परंपरा तो पूरी दुनिया में है लेकिन भारत में पतंगबाजी की कला दुनिया के दूसरे देशों से कुछ अलग है। बाकी दुनिया जहां सिर्फ पतंग उड़ाने का आनंद लेती है वहीं हम उस आनंद को और ऊंची उड़ान देते हैं। रोमांच में डूबकर हम पेंच लड़ाते हैं, एक-दूसरे की पतंग काटते हैं। प्रतिस्पर्धा का यह मौका अक्सर हर्षोल्लास मिश्रित कोलाहलपूर्ण युद्ध सरीखे माहौल में बदल जाता है।

जैसाकि गुजरात के जाने-माने पतंगबाज मेहुल पाठक कहते हैं, ‘मैं दुनिया के कई देशों में बड़ी पतंगबाजी प्रतियोगिताओं में भाग लेता रहता हूं। हर बार मुझे अपनी इस परंपरा पर गर्व होता है। पेंच लड़ाने वाली खासियत कहीं और नहीं देखी। वे बस मनोरंजन के लिए पतंग उड़ाते हैं, जबकि हम इससे भरपूर रोमांच हासिल करते हैं।’ गुजरात के राज्यपाल ओमप्रकाश कोहली का कहना है, ‘पतंगबाजी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करना सिखाती है, आप न केवल पतंग काटने का आनंद लेते हैं बल्कि इसमें तो उन्हें भी मजा आता है जिनकी कट जाती है पतंग!’

पतंगबाजी से सीखें गणित!

कहां पतंगबाजी और कहां गणित..., हैरान हो गए न आप। पर यह सच है। अंक आपको भी डराते हैं, आड़ी-तिरछी रेखाएं उलझा देती हैं लेकिन पतंगबाजी पसंद है तो नो टेंशन। आप पतंगबाजी कला के जरिए गणित को आसानी से सीख सकते हैं। इस बारे में पतंगबाजी से गणित सिखाने वाले मेहुल पाठक कहते हैं, 'बिना गणित के आप पतंग नहीं बना सकते और बिना विज्ञान के पतंग उड़ाना संभव नहीं। पतंग को हवा में बनाए रखने के लिए डोरी के खिंचाव और गुरुत्व बल के बीच सामंजस्य होना जरूरी है। स्कूलों में इसी बहाने मैं गणित सिखाने पहुंच जाता हूं।'

पतंग का विज्ञान 

पतंग उड़ाना एक कला है। इसका एक विज्ञान है। इसे समझकर ही इसे उड़ाया जा सकता है। पतंग के सामने और पीछे वाली सतह के बीच उत्पन्न वायु के दाब का अंतर पतंग को ऊंचा उठाता है। इसे ‘लिफ्ट’ कहते हैं। पतंग की निचली सतह पर लगने वाले दबाव से पतंग आगे बढ़ती है, जिसे ‘थ्रस्ट’ कहा जाता है। सामने वाली सतह पर पड़ने वाले वायु के दबाव को ‘ड्रैग’ कहते हैं।

जोश भरती है यह फाइटिंग स्प्रिट

कनाडाई पतंगबाज फ्रेड टेलर कहते हैं, मुझे बड़ी पतंगें पसंद आती हैं पर जिस तरह से लोगों ने छोटे-छोटे पतंगों को भी यहां कलात्मक रूप से पेश किया है, वह मुझे चौंकाती है। शायद यह फाइटिंग स्प्रिट का ही कमाल है कि हम बड़ी से बड़ी चीज मैनेज कर लेते हैं।

29वां अंतरराष्ट्रीय पतंगोत्सव

अहमदाबाद में वर्ष 1989 से ही हर साल अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव मनाया जा रहा है। यह आयोजन उत्तरायण उत्सव का एक हिस्सा है, जिसमें बड़ी संख्या में देश-दुनिया के जाने-माने पतंगबाज और निर्माता हिस्सा लेते हैं। इस वर्ष 44 देशों के तकरीबन 180 पतंगबाजों ने इस उत्सव में भाग लेकर इसे खास बनाया है।

दुनिया में पतंगोत्सव

जापान: यहां चिहिन्दा बीच पर प्रत्येक वर्ष मई के शुरुआती हफ्ते में पतंगोत्सव होता है। 

चीन: वेफन्ग इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल प्रत्येक वर्ष 20-25 अप्रैल को मनाया जाता है।

इंडोनेशिया: जकार्ता काइट फेस्टिवल पानगनदारन शहर में 1985 से आयोजित हो रहा है।

वाशिंगटन: ब्लॉसम काइट फेस्टिवल वाशिंगटन के नेशनल मॉल में मनाया जाता है। यह उत्सव पहले ‘स्मिथसोनियन काइट फेस्टिवल’ के नाम से चर्चित था। 

लंदन: यहां ब्रिस्टॉल काइट फेस्टिवल ब्रिटेन में वर्ष 1986 से आयोजित हो रहा है। इसे एयर क्रिएशन फेस्टिवल के नाम से भी जानते हैं।

पतंग से जुड़ी रोचक बातें

- ग्रीक इतिहासकारों के अनुसार पतंगबाजी 2500 वर्ष पुरानी है, जबकि चीन में पतंगबाजी का इतिहास दो हजार साल पुराना माना गया है। 

- चीन के सेनापति हानसीन ने कई रंगों की पतंगें बनाईं और उन्हें उड़ाकर अपने सैनिकों को संदेश भेजे। इतिहासकार पतंगों का जन्म चीन में ही मानते हैं।

- न्यूजीलैंड में पतंगोत्सव को धार्मिक मान्यता मिली हुई है। वहां लोग भजन गाकर और धार्मिक वाक्य लिखकर पतंग उड़ाते हैं।

- लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम एवं अमेरिका के स्मिथ सोनिअन म्यूजियम में सैकड़ों वर्षों पूर्व की पतंगें सुरक्षित हैं।

- वर्ष 1752 में बेंजामिन फ्रैंकलिन ने पतंग को लेकर अपना विश्वविख्यात ऐतिहासिक प्रयोग किया था, जिससे आकाश में चमकने वाली रोशनी यानी तड़ित में विद्युत आवेश होने की पुष्टि की थी।


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