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'न्यूटन' भी नहीं वसूल पायी 'लगान', ऑस्कर का इंतजार और बढ़ा

हमारा सिनेमा जज्बाती है, जिसमें नाचना-गाना और लार्जर दैन लाइफ कैरेक्टर होते हैं। वेस्टर्न सिनेमा को ये बातें न कभी समझ में आई हैं और न ही आंएगी।

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 16 Dec 2017 12:40 PM (IST)Updated: Sat, 16 Dec 2017 12:46 PM (IST)
'न्यूटन' भी नहीं वसूल पायी 'लगान', ऑस्कर का इंतजार और बढ़ा
'न्यूटन' भी नहीं वसूल पायी 'लगान', ऑस्कर का इंतजार और बढ़ा

मुंबई, [अनुज अलंकार]। आमिर खान की लगान के बाद आस्कर की दौड़ में जाने वाली भारतीय फिल्मों के पहले राउंड में ही बाहर हो जाने वाली फिल्मों में अब राजकुमार राव की फिल्म न्यूटन का नाम भी जुड़ गया है। इस साल बॉक्स आफिस पर इस फिल्म को बेहतर रेस्पॉन्स मिला था और उसी वक्त इसे भारतीय एंट्री के तौर पर ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था।

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सोशल मीडिया पर जरूर न्यूटन के ऑस्कर की रेस से बाहर होने को लेकर मायूसी का माहौल हो, लेकिन बॉलीवुड के अंदर ऐसा कुछ नहीं है। बॉलीवुड मान बैठा था कि ऑस्कर की रेस में इस फिल्म के जीतने की संभावना न के बराबर है और ये धारणा ही सही साबित हुई।

आमिर खान की लगान जरूर अंतिम चरण तक पंहुची थी, लेकिन इसके बाद हर साल ऑस्कर जाने वाली फिल्में पहले ही राउंड में क्यों बाहर हो जाती हैं, इस सवाल पर निर्देशक केतन मेहता कहते हैं, 'मैं न तो हैरान होता हूं और न ही निराश होता हूं। मुझे निजी तौर पर ये फिल्म अच्छी लगी, लेकिन जहां तक ऑस्कर की बात है, तो मैं समझता हूं कि ऑस्कर की चयन समिति का पैमाना वो नहीं है, जिस पर हम किसी फिल्म का चयन करते हैं।'

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केतन मेहता से जब पूछा गया कि क्या कोई और फिल्म न्यूटन से बेहतर कर सकती थी, तो उन्होंने कहा कि कम से कम हिंदी में कोई ऐसी फिल्म नहीं थी। क्यों हर साल ऑस्कर को लेकर निराशा होती है, तो वे कहते हैं, क्योंकि हम हर साल उम्मीदें बहुत बढ़ा लेते हैं। उन्होंने कहा कि ऑस्कर हमारी फिल्मों का पैमाना कभी नहीं बन सकता।

केतन मेहता ऑस्कर को लेकर निराश नजर आते हैं, लेकिन हर कोई ऐसा नहीं सोचता। निर्देशक सुधीर मिश्रा इस बात को लेकर ज्यादा खुश हैं कि ये फिल्म ऑस्कर की दौड़ तक पंहुची। वे कहते हैं कि ऑस्कर आना आसान नहीं, लेकिन इसकी दौड़ में शामिल होना भी बड़ी बात है और इसके लिए न्यूटन की टीम बधाई की पात्र है।

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उनका कहना है कि हमारा सिनेमा जज्बाती है, जिसमें नाचना-गाना और लार्जर दैन लाइफ कैरेक्टर होते हैं। वेस्टर्न सिनेमा को ये बातें न कभी समझ में आई हैं और न ही आंएगी। वे कहते हैं, मैं निराश नहीं होता। हमारा सिनेमा लगातार बदल रहा है। हमारे युवा फिल्मकार लगातार अच्छी फिल्में बना रहे हैं और हिंदी सिनेमा जिस तरह से रियल्टी की तरफ मुड़ रहा है, उससे लगता है कि आने वाले तीन-चार साल में हमारी फिल्म ऑस्कर के मंच तक पंहुचने में कामयाब हो जाएगी।

बॉलीवुड के एक फिल्मकार निजी बातचीत में एक दिलचस्प बात कहते हैं, आमिर खान जैसा मार्केटिंग का चैंपियन स्टार सारी कोशिशों के बाद भी लगान को लेकर आखिरी जंग नहीं जीत पाया, उसके बाद जो भी फिल्में जाती हैं, उनके लिए तो कोई सीरियस होकर कोशिश भी नहीं करता, क्योंकि सब पहले ही मान लेते हैं, कि कुछ नहीं होने वाला। जब तक हम पेशेवर रवैया नहीं अपनाएंगे, तब तक लगान हो या न्यूटन, नतीजा यही रहेगा।

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