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चीन और पाकिस्तान से मिलने वाली चुनौती से अब ऐसे निपटेगा भारत

भारत को चीन व पाकिस्तानी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए चाबहार बंदरगाह मचान के रूप में मिल गया है

By Digpal SinghEdited By: Published: Wed, 06 Dec 2017 10:56 AM (IST)Updated: Wed, 06 Dec 2017 10:58 AM (IST)
चीन और पाकिस्तान से मिलने वाली चुनौती से अब ऐसे निपटेगा भारत
चीन और पाकिस्तान से मिलने वाली चुनौती से अब ऐसे निपटेगा भारत

प्रमोद भार्गव। पाकिस्तान और चीन की कूटनीतिक चाल को दरकिनार करते हुए भारत ईरान के रास्ते पहुंचने वाले वैकल्पिक मार्ग यानी चाबहार बंदरगाह को शुरू करने में सफल हो गया है। ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित इस बंदरगाह की भौगोलिक स्थिति बेहद अहम है। यहां से महज 72 किलोमीटर दूर पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह है। इसे चीन ने विकसित किया है।

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दरअसल पाकिस्तान ने कूटनीतिक चाल चलते हुए अपने क्षेत्र से भारतीय जहाजों को अफगानिस्तान ले जाने से मना कर दिया था। नतीजतन भारत को वैकल्पिक मार्ग की तलाश थी और ईरान के साथ हुए द्विपक्षीय समझौते के बाद चाबहार बंदरगाह अस्तित्व में आया। यह रास्ता इसलिए बेहद अहम है, क्योंकि पाक और चीन की मिली-जुली रणनीति के तहत भारत को दक्षिण एशिया में हाशिये पर डालने की कुटिल चाल अपनाई हुई थी। चीन ने दक्षिण एशिया में बड़ा पूंजी निवेश करते हुए पाक, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल आदि देशों से मजबूत आर्थिक व सामरिक संबंध बना लिए हैं। इनके जरिए चीन एवं पाक ने भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार को प्रतिबंधित करने की कोशिश की थी, जो अब नाकाम हो गई है।

बंदरगाह की बुनियाद 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और ईरानी राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद खातमी ने डाली थी। ईरान से भारत के संबंध अमूमन सामान्य रहे हैं। ईरान-ईराक युद्ध और फिर गोपनीय परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की वजह से ईरान दुनिया से अलग-थलग पड़ने लग गया था। अहमदीनेजाद के राष्ट्रपति रहते ईरान-अमेरिका के संबंधों में तनाव आ गया था। ईरान के परमाणु कार्यक्रम के चलते संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाने के साथ 100 अरब डॉलर की संपत्ति भी जब्त कर ली थी। तेल और गैस बेचने पर भी रोक लगा दी थी। गोया, जब ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी बने तो हालात बदलने शुरू हुए। दूसरी तरफ पश्चिम एशिया की बदल रही राजनीति ने भी ईरान और अमेरिका को निकट लाने का काम किया। नतीजतन अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से ईरान के संबंध सुधरने लगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में ईरान की यात्रा कर द्विपक्षीय 12 समझौते किए थे, जिनसे ईरान की वैश्विक साख मजबूत हुई। विवादित परमाणु कार्यक्रम और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां अनुकूल नहीं होने के कारण भारत इन कार्यक्रमों में रुचि होने के बावजूद कुछ नहीं कर पाया था। इस समय भारत को परमाणु शक्ति के रूप में उभरने व स्थापित होने के लिए अमेरिकी सहयोग व समर्थन की जरूरत थी। भारत राजस्थान के रेगिस्तान में परमाणु परीक्षण के लिए तैयार था। परमाणु परीक्षण अप्रत्यक्ष तौर से परमाणु बम बना लेने की पुष्टि होती है। इसके तत्काल बाद पाकिस्तान और उत्तर कोरिया ने भी परमाणु बम बना लेने की तस्दीक कर दी थी। इसी समय भारत परमाणु निरस्त्रीकरण की कोशिश में लगा था। इस नाते भारत यह कतई नहीं चाहता था कि ईरान परमाणु शक्ति संपन्न देश बन जाए। गोया, भारत को परमाणु अप्रसार संधि के मुद्दे पर अमेरिकी दबाव में ईरान के खिलाफ दो मर्तबा वोट देने पड़े थे।

दरअसल चीन अपनी पूंजी से ग्वादर बंदरगाह का विकास अपने दूरगामी हितों को ध्यान में रखते हुए किया है। चीन इसी क्रम में काशगर से लेकर ग्वादर तक 3000 किलोमीटर लंबा आर्थिक गलियारा बनाने में भी लगा है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए चीन पाकिस्तान में 46 लाख अरब डॉलर निवेश कर रहा है। इससे यह आशंका उत्पन्न हुई थी कि चीन इस बंदरगाह से भारत की सामरिक गतिविधियों पर खुफिया नजर रखेगा। अलबत्ता अब भारत को ग्वादर के इर्दगिर्द चीन व पाकिस्तानी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए मचान मिल गया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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