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नेताओं के बड़बोले बयान, आखिर कैसे बचेंगी ऐतिहासिक इमारतें

विश्व धरोहर पर टिप्पणी को लेकर केंद्र और यूपी में सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी पर सवाल खड़े होते हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 26 Oct 2017 09:36 AM (IST)Updated: Thu, 26 Oct 2017 12:19 PM (IST)
नेताओं के बड़बोले बयान, आखिर कैसे बचेंगी ऐतिहासिक इमारतें
नेताओं के बड़बोले बयान, आखिर कैसे बचेंगी ऐतिहासिक इमारतें

ज्ञानेंद्र रावत

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आज भारतीय कला संस्कृति और इतिहास की अनमोल विरासत, विश्व धरोहर और दुनिया के महान आश्चर्यो में से एक ताजमहल का अस्तित्व संकट में है। पांचवें मुगल शासक शाहजहां ने 17वीं शताब्दी में अपनी प्रिय बेगम मुमताजमहल की याद में संगेमरमर की इस बेहतरीन इमारत को बनवाई थी। उस ताजमहल को जिसे देख 1942 में भारत आने पर मैडम च्यांग काई शेक ने कहा था, ‘मेरे विचार में यह एक सुंदर इमारत है, उससे भी अधिक सुंदर आत्मा का प्रतिबिंब है। क्योंकि इससे प्रतीत होता है कि हमारा शरीर समाप्त हो जाता है, फिर भी असल में हम मरते नहीं हैं।..’ इसके निर्माण के महज 50 बरस बाद भारत आए फ्रांसीसी विद्वान-पर्यटक बरनियर ने कहा था, ‘ताजमहल को देखने के बाद मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि कला-कौशल से परिपूर्ण इस बेहतरीन इमारत की गणना विश्व की आश्चर्यजनक वस्तुओं में होनी चाहिए।’ लार्ड रॉबर्ट अपनी पुस्तक ‘भारत में 41 वर्ष’ में लिखते हैं, मैं ऐसी वस्तु का वर्णन नहीं कर सकता जो अकथनीय है। जिन्होंने अभी तक इसे नहीं देखा है मैं उनसे कहूंगा कि वे भारत जरूर जाएं। केवल ताज देखने से ही उनकी यात्र सफल होगी।’ अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का मानना है, ‘इसे देखकर मुझे ऐसा आभास होता है कि सौंदर्य और कलात्मकता से परिपूर्ण विश्व के इस महान आश्चर्य को मैं बार-बार देखूं। वास्तव में यह बेमिसाल है।’ भारत के पहले राष्ट्रपति प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 1962 में शरद पूर्णिमा के अवसर पर चांदनी रात में इसकी धवलता और चमकी देख ‘लाजवाब ताज’ कह उठे थे। यही नहीं श्रीलंका के राष्ट्रपति जे.आर. जयवर्धने 1980 में ताजमहल की धवलता देख खो गए थे।

आज दुनिया के इसी अजूबे पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। कभी मसला ताजमहल को चिताओं से निकलने वाले धुएं से बचाने के लिए उसके पास से श्मशान घाट हटाने का हो, उसके पास नगर निगम द्वारा ठोस कचरा जलाए जाने का हो, जिससे वह दिनोंदिन पीला पड़ रहा है, से ताज पर मंडराते अस्तित्व के संकट को नकारा नहीं जा सकता। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह राष्ट्रीय गौरव और आत्म-सम्मान के प्रतीक दुनिया के इस अजूबे जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि दुनिया में ऐसी कोई कब्र नहीं, जिस पर इतनी चहल-पहल रहती हो, के प्रति बरती जाने वाली सरकारी उदासीनता है जिसने इसे इस हाल तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। शाहजहां और मुमताज महल की कब्र के मुख्य गुंबद के पूर्वी ओर कई जगह से पच्चीकारी पत्थरों का साथ छोड़ गई है। मुख्य गुंबद में धुएं के रंग के एजिट, गहरे लाल रंग के कोरनेलियन, सफेद रंग के सीप, गहरे हरे रंग के इंडियन जेड, तोतई रंग के मेलाकाइट, आसमानी रंग के टरकोल और गहरे नीले रंग के लेटिस पत्थरों पर उकेरे गए लाल, हरे, नीले, सफेद फूल अब पहले की तरह चमकते नहीं।

सच कहा जाए तो अब उनका नूर खत्म हो गया है। कारण कई पत्थरों पर जड़े दिखने वाले फूल और पत्तियां अब वहां हैं ही नहीं। ताजमहल के फोर कोर्ट के निकट बना शाही द्वार जिसे रॉयल गेट भी कहते है, पर लगे बेशकीमती पत्थर अब गायब हो चुके हैं। हरे, नीले, मैरून, बैंगनी, काले, लाल आदि रंग के ये पत्थर राजस्थान के अलावा बेल्जियम, फ्रांस आदि देशों से मंगाए गए थे। जान लें कि इस शाही द्वार से ही सैलानी को सबसे पहले ताजमहल का दीदार होता है। यहां पर पर्यटक पहुंचते ही खुद को धन्य समझता है। क्योंकि यहां से फोटोग्राफी का आनंद ही निराला होता है। इस द्वार की बदहाली के पीछे बढ़ते तापमान और तेज चलने वाली गर्म हवाओं की अहम भूमिका है।

वर्ष 2015 में तो ताज के करीब यमुना में लगातार कूड़ा-कचरा डाले जाने पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण की जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने ताजमहल के प्रति लापरवाह आगरा नगर निगम को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि आपने देखा है कि विश्व धरोहर ताज के पास कितनी गंदगी पड़ी है। आपको शर्म नहीं आती। आप एक विश्व विख्यात स्मारक को साफ नहीं रख सकते। हमने कितने आदेश जारी किए, लेकिन आपने आजतक कोई कदम नहीं उठाया। इन हालात में तो ताजमहल दुनिया में अजूबा नहीं रह पाएगा। दरअसल ताज को सबसे बड़ा खतरा अपने देश में धार्मिक कट्टरपंथियों से है जो ताज को शिवमंदिर सिद्ध करने पर तुले हैं। अयोध्या का उदाहरण इसका सबूत है कि देश में धार्मिक कट्टरता कितनी पैठ बना चुकी है। यह बात दीगर है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और सरकार साफ कर चुकी है कि इसका कोई सबूत नहीं है कि 17वीं सदी का मुगल स्मारक ताजमहल कभी शिव मंदिर था।

केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री भी संसद में इस बारे में सरकार का मत साफ कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यह मानते हैं कि हमें अपने देश की धरोहरों पर गर्व करना होगा। कोई भी देश तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक कि वह अपने इतिहास और विरासत पर गर्व करना नहीं जानता। अपनी विरासत को छोड़ आगे बढ़ने वाले देशों की पहचान मिट जाती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्पष्ट कर चुके हैं कि ताज हमारी धरोहर है। यह हमारे भारतीय मजदूरों के खून-पसीने से बना है। यह अपनी वास्तुकला के लिए दुनियाभर में विख्यात है। यह ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसका संरक्षण और संर्वधन सरकार का दायित्व है। इसके लिए 370 करोड़ की परियोजना बनाई गई है जिसकी घोषणा वह खुद 26 अक्टूबर को आगरा में करेंगे।

इसके बावजूद भाजपा के ही फायर ब्रांड कहे जाने वाले कई नेता, विधायक, सांसद ताजमहल को भारतीय संस्कृति पर धब्बा और मुगल शासक शाहजहां पर सवाल उठाने व समाज में तनाव बढ़ाने वाले बयान देने में गर्व का अनुभव करते नहीं थकते। विडंबना यह कि ताजमहल के संरक्षण के नाम पर अब तक हर साल पुरातत्व विभाग द्वारा करोड़ो की धनराशि खर्च की जा चुकी है। यह राशि जाती कहां थी। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। ताजमहल कब अपने पुराने स्वरूप में आ पाएगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है।

(लेखक राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष हैं)

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