गुजरात: 22 साल की एंटी इनकंबैंसी को नहीं भुना पायी कांग्रेस, इसलिए ये बड़ी हार है
इस चुनाव और चुनावी नतीजे का सबसे बड़ा संकेत यह है कि 22 साल की एंटी इनकंबेंसी का कांग्रेस फायदा उठाने में नाकाम रही, इसलिए यह बड़ी हार है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। हाल में हुए विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर गुजरात में भगवा लहरा रहा है। भाजपा ने गुजरात में लगातार पांचवीं बार जीत दर्ज की है। इसके साथ ही यह भी तय हो गया है कि पिछले 22 साल से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा अगले 5 साल और गुजरात में सरकार चलाएगी। लेकिन इस चुनाव और चुनावी नतीजे का सबसे बड़ा संकेत यह है कि 22 साल की एंटी इनकंबेंसी का कांग्रेस फायदा उठाने में नाकाम रही।
कोई भी सरकार जो काफी लंबे वक्त से चल रही हो, उसके खिलाफ जनता में रोष भी धीरे-धीरे पनपने लगता है और यह एक आम धारणा है। लेकिन कांग्रेस, भाजपा सरकार की ऐसी किसी कमी को उजागर नहीं कर पाई। जाहिर है इतने लंबे समय से सरकार चल रही है, तो वह समाज के हर वर्ग को खुश नहीं रख सकती। इसके बावजूद चुनाव दर चुनाव जिस तरह से भाजपा जीत दर्ज कर रही है उसने कांग्रेस को राज्य में कमजोर ही किया। हालांकि कांग्रेस इस बात से खुश हो सकती है कि चुनाव दर चुनाव उसकी सीटें बढ़ रही हैं और इस बार उसने भाजपा को कड़ी टक्कर भी दी है।
गुजरात में पिछली बार कांग्रेस ने 1980 के दशक में सरकार बनाई थी। उस समय कांग्रेस नेता माधव सिंह सोलंकी ने खाम (KHAM - क्षत्रीय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) फैक्टर को भुनाते हुए राज्य की 149 सीटों पर कब्जा जमाया था। शायद यही कारण है कि इस बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के लिए 150 प्लस का टार्गेट रखा था। हालांकि भाजपा अपने उस टार्गेट से काफी पीछे दिख रही है और पिछले विधानसभा चुनाव के 115 सीटों से भी कम सीटें लाने का अनुमान है।
1985 से 1995 तक गुजरात में लगातार अस्थिर सरकारें चलीं। इस दौरान 1994 से 1995 तक करीब 400 दिन कांग्रेस के मुख्यमंत्री छविदास मेहता ने गुजरात में कांग्रेस की सरकार चलाई। इसके बाद 1995 में केशुभाई पटेल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी और उसके बाद भाजपा ने कभी भी कांग्रेस को सत्ता के करीब नहीं पहुंचने दिया। इस बीच 1996 से 1998 तक करीब 500 दिन राज्य में राष्ट्रीय जनता पार्टी की भी सरकार रही, लेकिन कांग्रेस को जनता नकार चुकी थी। खासकर 2001 में नरेंद्र मोदी ने जब से मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली तब से कांग्रेस कभी भी भाजपा को टक्कर देती नजर नहीं आयी। हालांकि साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को अच्छी टक्कर दी।
कांग्रेस इस बार जीत के तमाम दावे कर रही थी। पटेल आरक्षण आंदोलन को भी कांग्रेस ने भुनाने की खूब कशिश की। लेकिन जमीनी स्तर पर कांग्रेस उस तरह से भाजपा सरकार की खामियों को सामने नहीं रख पायी। कांग्रेस ने आंदोलन से निकले हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसे युना नेताओं के सहारे चुनाव जीतने की रणनीति बनाई। अल्पेश ने कांग्रेस का दामन भी थाम लिया, जबकि निर्दलीय चुनाव लड़ रहे जिग्नेश मेवाणी को कांग्रेस का समर्थन हासिल है। हार्दिक पटेल ने खुद को चुनाव से अलग जरूर रखा, लेकिन उन्होंने भी भाजपा को हराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा था। 22 साल की एंटी इनकंबेंसी और इन तीन युवाओं के जोश के बावजूद कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव की अपनी 61 सीटों में सिर्फ 10 का इजाफा करती दिख रही है, जो भाजपा के 105 से काफी पीछे है।