World Cancer Day: सही समय पर पहचान और इलाज है कैंसर से बचाव
रोज की दिनचर्या में हम कई तरह के शारीरिक कार्य करते हैं, जिनका प्रभाव शरीर पर पड़ता है। लेकिन कुछ प्रभाव लंबे समय तक बने रहते हैं, जिन्हें हम अनदेखा कर जाते हैं।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। कैंसर एक जानलेवा बीमारी है। कैंसर किसी को भी हो सकता है। इसकी कोई उम्र नहीं होती। दर्द, खून बहना, वजन का अचानक कम और बढ़ना, सांस लेने में दिक्कत होना,ब्लड क्लाट्स इसके मुख्य लक्षण हैं। ज्यादातर लोग कैंसर के शुरूआती लक्षणों की अनदेखी करते हैं। यही कारण है कि मरीज जल्दी ठीक नहीं होते। कैंसर के विभिन्न प्रकार, सर्वाइकल कैंसर, ब्लैकडर कैंसर, कोलोरेक्ट ल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, एसोफैगल कैंसर, पैंक्रियाटिक कैंसर, बोन कैंसर ब्ल ड कैंसर आदि हैं। वर्ल्ड कैंसर डे के अवसर पर हम आपको कैंसर से जुड़े कुछ भयावह आंकड़े बता रहे हैं, जिन्हें आपको जानना बहुत जरूरी है।
राष्ट्रीय कैंसर निवारण और अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 तक भारत में 17 लाख और नए मरीज कैंसर की गिरफ्त में आ सकते हैं। इनमें 8 लाख से ज्यादा लोगों की मौत भी हो सकती है। साल 2016 में ये आंकड़ा 14 लाख से ऊपर था जो साल 2020 में बढ़कर 17 लाख 30 हजार हो सकता है। अगर कैंसर से मौत की बात करें तो साल 2016 में ये आंकड़ा 7.36 लाख था। इस शोध में पता चला है कि महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर और पुरुषों में मुंह के कैंसर के मामले सबसे ज्यादा सामने आते हैं।
ये आंकड़े हैं चौंका देने वाले
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार, भारत में हर साल कैंसर से जुड़े 1.4 करोड़ मामले सामने आ रहे हैं और इस रफ्तार से साल 2020 तक कैंसर से प्रभावित लोगों की संख्याा 25 फीसदी बढ़ सकती है। यानी उस समय तक 1.7 लाख लोग कैंसर से प्रभावित होंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अुनसार, भारत में हर साल पांच लाख लोग कैंसर से अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं।
आपको जानकार हैरानी होगी कि देश में 700 प्रभावित लोगों में से सिर्फ 1 ओंकोलॉजिस्टो मौजूद है।
देश में सिर्फ 12.5 फीसदी लोगों में कैंसर की पहचान जल्द होने से इलाज जल्द शुरू हो पाता है।वर्ष 2016 में अब तक कैंसर से मरने वाले मरीजों की कुल संख्या 736,000 हो चुकी है।
मुंह और फेफड़े का कैंसर भारतीय पुरुषों में सबसे ज्यादा पाया जाता है। जबकि महिलाओं में सर्वाइकल और स्तन का कैंसर ज्यादा पाया जाता है।
भारत में हर साल ग्रीवा कैंसर के लगभग 1,22,000 नए मामले सामने आते हैं, जिसमें लगभग 67,500 महिलाएं होती हैं। कैंसर से संबंधित कुल मौतों का 11.1 फीसदी कारण सर्वाइकल कैंसर ही है।
पॉपुलेशन बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) के अनुसार, भारत में एक साल में करीब 1,44,000 नए स्तन कैंसर के रोगी सामने आ रहे हैं।
यूनाइटेड नेशन के मुताबिक दुनियाभर में हर साल तंबाकू की वजह से 50 लाख लोग अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं।
कैंसर मतलब मानसिक और आर्थिक परेशानी
कैंसर की वजह से लोगों को अपनी जिंदगी में मानसिक, सामाजिक और आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ती है। इस बीमारी में सिर्फ मौत का ही आंकड़ा बहुत ज्यादा नहीं है बल्कि कैंसर के मरीजों को शारीरिक रूप से भी काफी कष्ट झेलना पड़ता है जिसमें जहरीली कीमोथेरपी और इमोश्नल ट्रॉमा भी शामिल है।
कोई ऐसा डायग्नोस्टिक टेस्ट जिससे कैंसर का पता लगाया जा सके या फिर कोई कैंसर वैक्सीन जिससे कैंसर होने से बचा जा सके....इस तरह की चीजों की खोज में अनुसंधानकर्ता लगे हैं लेकिन उन्हें अब तक सफलता नहीं मिली है। हालांकि डॉक्टरों ने क्या करें और क्या न करें एक लिस्ट तैयार की है जिससे कैंसर से जुड़े स्ट्रेस को कम किया जा सकता है।
क्या कैंसर को हराया जा सकता है?
एक सवाल जो भारतीयों के मन में होता है- क्या नियमित चेकअप के जरिए कैंसर को हराया जा सकता है? इस सवाल का जवाब ये है कि स्क्रीनिंग और नियमित चेकअप के जरिए कुछ हद तक मदद मिल सकती है लेकिन यह कैंसर जैसी बीमारी का पता लगाने का फुलप्रूफ तरीका नहीं है।
डॉक्टर्स कहते हैं कि भारत के लोग चाहें तो बेहतर लाइफस्टाइल को चुनकर कैंसर को हरा सकते हैं। दुनियाभर के करीब दो तिहाई कैंसर के केस लाइफस्टाइल से जुड़े होते हैं। इसका मतलब है कि इसकी रोकथाम की जा सकती है। तंबाकू और ऐल्कॉहॉल के बारे में जागरूकता फैलानी जरूरी है ताकि लोगों को पता हो कि ये ऐसी चीजें हैं जिनसे टीशूज़ में कैंसर उत्पन्न हो सकता है। इसके अलावा मोटापा भी कैंसर का एक बड़ा रिस्क फैक्टर है।
सरकार उठाए अग्रिम भूमिका
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सरकार को भी कैंसर की रोकथाम में आगे आकर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। कैंसर की रोकथाम के लिए स्वस्थ लाइफ स्टाइल सबसे अहम है। भारत जैसा देश अपने सभी कैंसर के मरीजों के इलाज का खर्च नहीं उठा सकता लेकिन जागरूकता फैलाकर कैंसर के लक्षणों और इसकी जल्द पहचान को संभव किया जा सकता है।
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