अनहोनी को दावत: पांच हजार क्षमता वाले फुटओवर ब्रिज पर बीस गुना यात्रियों का दबाव
रेलवे संरक्षा और सुरक्षा के दावे करती है। लेकिन हकीकत ये है कि करीब करीब हर रोज होने वाली दुर्घटना की वजह से रेलवे महकमा सवालों के घेरे में है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । शुक्रवार की सुबह एलफिंस्टन स्टेशन पर जो मंजर था वो दिल दहलाने वाला था। एलफिंस्टन स्टेशन पर बना करीब 100 साल पुराना ओवरब्रिज लोगों के दबाव को नहीं सह सका। ओवरब्रिज पर भगदड़ मची और 23 लोग काल के गाल में समा गये। एक दूसरे को कुचलते हुये लोग दूसरे की परवाह किए बगैर अपनी सलामती के लिए भागते रहे। एलफिंस्टन स्टेशन पर भगदड़ के लिए रेलवे ने सफाई दी कि बारिश की वजह से लोग ओवरब्रिज पर जरूरत से ज्यादा संख्या में आ गए और ब्रिज टूटने या शार्ट सर्किट की अफवाह से भगदड़ के हालात पैदा हो गए।
हालांकि रेल प्रशासन ने इस तथ्य पर अब तक सफाई नहीं दी है कि ओवरब्रिज को लेकर दो सांसद पिछले दो साल से चिट्ठी लिख रहे थे जिस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। भगदड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को 5-5 लाख के मुआवजे का मरहम लगाने का ऐलान कर दिया गया। इन सबके बीच एलफिंस्टन एकलौता उदाहरण नहीं है जहां रेलवे की चरमराती व्यवस्था नजर आती है, बल्कि देश के तमाम बड़े और भीड़भाड़ वाले स्टेशनों का यही हाल है। रेलने संरक्षा और सुरक्षा के वादों के साथ दावे भी करती है। लेकिन मिलियन डॉलर सवाल ये है कि वो समय कब आ आएगा जब यात्री तसल्ली के साथ रेल यात्रा कर सकेंगे। हम आप को सिलसिलेवार ये बताने की कोशिश करेंगे कि एलफिंस्टन जैसे हादसे क्यों होते हैं।
दो दशकों में मिलों का इलाका परेल बन गया आफिस हब
एक जमाने में मिलों का इलाका रहा लोअर परेल बीते दो दशकों आज आफिस हब में बदल चुका है। जहां कभी कपड़े की मिल हुआ करती थी आज वहां गगनचुंबी इमारतें हैं। इन्हीं इमारतों में बैंक, मीडिया, कारपोरेशन, रिटेल कंपनियों के कार्यालय हैं। किराया के लिहाज से यह इलाका नरीमन प्वाइंट जैसे पुराने बिजनेस हब से सस्ता पड़ा। यहां के कार्यालयों में काम करने वाले लाखों कर्मचारी उपनगरीय ट्रेन से यहां आते-जाते हैं। जिस समय इलाके में मिल और उसमें काम करने वाले हजारों कामगारों के रहने के लिए चाल थे। तब स्टेशनों पर उतनी भीड़भाड़ नहीं होती थी। बदलाव के बाद इस क्षेत्र के रेलवे स्टेशन आज मुंबई के अत्यंत व्यस्त स्टेशनों में शामिल हैं।
मुंबई में लोकल व अन्य ट्रेनों में सफर करने के दौरान प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग हादसों का शिकार होते हैं। इसकी पुष्टि आंकड़ों में होती है।
- 2015 में मुंबई लोकल ट्रेन हादसों में 3304 यात्रियों ने जान गंवाई।
- 2015 में हादसों में घायल होने वाले यात्रियों की संख्या 3349 थी
- 2016 में मरने वाले यात्रियों की संख्या 3202 थी।
- 2016 में घायल हुए यात्रियों की संख्या 3363 थी ।
-खचाखच भरे कोचों से गिरकर 981 लोगों की मौत ।
-रेल लाइन पार करने के दौरान 1126 लोग मरे।
-बिजली के संपर्क में आने पर 53 लोगों की मौत ।
-ट्रेन और प्लेटफार्म के बीच फंसकर 21 लोगों की मौत ।
-रेल लाइन के किनारे लगे खंभों से टकराकर 14 लोगों की मौत ।
-ओवरब्रिज के संपर्क में आने पर 10 लोग मरे ।
-1675 लोग अन्य वजहों से काल के गाल में समा गए।
(ये सभी आंकड़े जनवरी से जुलाई 2017 तक के हैं)
कुछ ऐसी ही तस्वीर है दिल्ली की
ये आंकड़े मुंबई से संबंधित है जो डराने के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन मुंबई में लोकल ट्रेन के अलावा यात्रियों के लिए और कोई बेहतर विकल्प नहीं है। लेकिन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन और निजामुद्दीन का हाल भी बेहतर नहीं है। हालात ये है कि ट्रेनों के समय से न आने की वजह से स्टेशनों पर जरूरत से भीड़ इकट्ठा होती है जो हर वक्त दुर्घटना को दावत देते रहते हैं। स्टेशनों पर हाल ये होता है कि किसी गाड़ी के प्रस्थान में देरी की वजह से एक ही प्लेटफार्म पर क्षमता से ज्यादा यात्रियों या उनके शुभचिंतकों की आवक हो जाती है। लेकिन रेलवे की तरफ से कुछ खास इंतजाम नहीं दिखाई देता है।
गाजियाबाद स्टेशन का बुरा हाल
हम आपको दिल्ली से सटे गाजियाबाद रेलवे स्टेशन की तस्वीर से भी रूबरू कराएंगे। गाजियाबाद स्टेशन व्यस्ततम स्टेशनों में से एक है। स्टेशन पर दो ओवरब्रिज बने हुए हैं जिसमें से एक ओवरब्रिज की छमता करीब 5 हजार यात्रियों की है लेकिन हालात ये है कि ये ओवरब्रिज अपनी क्षमता से 20 गुने लोगों यानी एक लाख यात्रियों के दबाव को झेल रहा है। ओवरब्रिज की टूटी हुई रेलिंग, झड़ते हुए प्लास्टर हर वक्त किसी अनहोनी की दावत देते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि इस अव्यवस्था का ये आलम रेल अधिकारियों की नजर में नहीं आता है। लेकिन सुरक्षा के सभी इंतजाम बयानों तक सीमित रह जाते हैं। गाजियाबाद स्टेशन पर एक दूसरा ओवरब्रिज बनाया गया है। लेकिन यात्रियों की शिकायत रहती है कि वो उपयोगी नहीं है, लिहाजा उस ओवरब्रिज का इस्तेमाल कम लोग करते हैं।
जानकार की राय
भारत में रेलवे की हालात पर शोध करने वाले डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय के शोध छात्र संतोष सिंह ने Jagran.Com से खास बातचीत की। उन्होंने कहा कि भारत में रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर अंग्रेजों के समय का है। जिस समय भारत में रेलवे की लाइन बिछाई जा रहीं थी या स्टेशनों की विकास किया जा रहा उस वक्त यात्रियों की संख्या ज्यादा नहीं थी। लेकिन आजादी मिलने के बाद तस्वीर बदली। सभी सरकारों ने रेलवे के जरिए अपने हितों को साधा और रेलवे के स्वास्थ्य की उपेक्षा की। उपेक्षित और बदहाल रेलवे का हाल ये हुआ कि हम हर रोज हादसों की खबरें सुनते हैं। संतोष सिंह कहते हैं कि रेलवे की दशा और दिशा सुधारने के लिए कड़वी दवाई पिलाने की जरूरत है।
भगदड़ लील लेती है जिंदगी
23 जनवरी 2005 - महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधार देवी मंदिर में भगदड़ से 340 लोगों की मौत हुई।
3 अगस्त 2008- हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भगदड़ में 150 लोगों की मौत।
30 सितंबर 2008- जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में भगड़ से 224 लोगों की मौत ।
4 मार्च 2010- उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के एक मंदिर में भगदड़ से 63 लोगों की मौत ।
16 मई 2010- नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के अचानक प्लेटफार्म बदलने से मची भगदड़ में महिला और बच्चे की मौत।
19 नवंबर 2012- पटना में छठ पूजा के दौरान मची भगदड़ में 18 लोगों की मौत।
11 फरवरी 2013- इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर कुंभ मेले से लौट रहे श्रद्धालुओं में मची भगदड़ में 37 लोगों की मौत।
14 जुलाई 2015 - आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के किनारे धार्मिक समारोह में मची भगदड़ में 29 लोगों की मौत।
15 अक्टूबर 2016- वाराणसी में धार्मिक आयोजन में जा रहे श्रद्धालुओं के बीच भगदड़ में 24 लोगों की मौत।
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