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चीन-पाक गठजोड़ को तोड़ने की जरूरत, ड्रैगन को उसके अंदाज में जवाब देने का आया समय

चीन, पाकिस्तान को यह समझाने में कामयाब हो गया है कि विश्व की बदलती राजनीति में अमेरिका अब भारत के बहुत करीब आ गया है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 27 Nov 2017 10:48 AM (IST)Updated: Mon, 27 Nov 2017 12:17 PM (IST)
चीन-पाक गठजोड़ को तोड़ने की जरूरत, ड्रैगन को उसके अंदाज में जवाब देने का आया समय
चीन-पाक गठजोड़ को तोड़ने की जरूरत, ड्रैगन को उसके अंदाज में जवाब देने का आया समय

नई दिल्ली [सतीश कुमार]। भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा को लेकर चीन ने नाराजगी जताई है। चीन का आरोप है कि भारत सीमावर्ती इलाके में विवाद को पेचीदा बना रहा है। इससे पहले चीन ने भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की अरुणाचल प्रदेश की यात्र पर टिप्पणी की थी। इसके जवाब में भारत ने कहा था कि अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग है और चीन को उसमें टांग अड़ाने की जरूरत नहीं है। मौजूदा सरकार की कार्यशैली को समझने वाले जानते हैं कि भारत की विदेश नीति अब पहले की तरह ढुलमुल नहीं रही।

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चीन के दंभ को कुचलने की जरूरत

बहरहाल, चीन को हतोत्साहित करने का सबसे आसान तरीका है कि उसी के मैदान पर खेला जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी सूत्र पर काम करना शुरू किया है। गत दिनों आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान जिस तरीके अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चीन को उसी घरौंदे में घेरने की कोशिश की, वह अत्यंत रोचक है। उल्लेखनीय है कि डोकलाम विवाद को लेकर भारत और चीन के बीच तकरीबन 70 दिनों तक तनाव बना रहा। आखिरकार दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर मामले को सुलझाया गया। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार जानते हैं कि इसमें किस पक्ष की हार हुई और किस पक्ष की जीत, लेकिन इस विवाद को जिस तरीके से निपटाया गया उससे साफ हो गया कि पहली बार भारत ने चीन के साथ सीधे तौर पर जोर आजमाइश की कोशिश की।

दक्षिण चीन सागर और चीन की बदनीयती

अब दूसरे दौर में संघर्ष समुद्र के मोर्चे पर है। हमें भारत और चीन के बीच समुद्री समीकरण का जायजा लेना चाहिए। चीन दक्षिण चीन सागर पर कब्जा जमाने की नीयत से काम कर रहा है। चीन के इसी रुख के कारण उसके पड़ोसी देश मसलन दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई, मलेशिया और इंडोनेशिया उससे खफा हैं। चीन दक्षिण सागर पर हवाई पट्टी बना रहा है, जहां वह सैनिक ठिकाना स्थापित करेगा। इंडोनेशिया नटुना द्वीप को लेकर अंतरराष्ट्रीय टिब्यूनल में जाने को लेकर विचार कर रहा है। चीन अपनी सैनिक क्षमता को हिंद महासागर तक विस्तार दे चुका है। चीन की नजर में हिंद महासागर भारत का नहीं है। अगर हिंद महासागर भारत का नहीं है तो सवाल उठता है कि दक्षिणी चीन सागर पर वह दावा कैसे कर सकता है। इसी बात को सिद्ध करने के लिए एक नया समीकरण बना है, जिसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। हरतीये समुद्री नीति के तहत अदन से लेकर मल्लका द्वीप तक भारत की सुरक्षा और व्यापार जुड़ा हुआ है। 70 प्रतिशत से ज्यादा व्यापार इसी समुद्री मुहानेस से होता है। 

आसियन समिट से भारत का इशारा

भारतीय प्रधानमंत्री ने आसियान शिखर सम्मेलन में कुछ ऐसी बातें कही जो एक नए संघर्ष और विश्व व्यवस्था की ओर इशारा करता है। मोदी ने पूर्वी एशिया में नियम परक समुद्री व्यापार और अधिकार की बात कही। प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद इस क्षेत्र और दुनिया के लिए दुश्मन है। उनका स्पष्ट संकेत चीन की तरफ था। चीन ने ही अंतराष्ट्रीय समुद्री कानून को ठेंगा दिखाया था, जब सयुंक्त राष्ट्र संघ की समुद्री कानून ने चीन को दोषी माना था, लेकिन चीन ने कहा था कि वह जैसे भी चलना होगा, वह अपनी मर्जी से चलेगा।

चीन मसूद अजहर को आतंकवादी नहीं मानता है। इसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ का 1267 अनुदेश लागू नहीं हो रहा है। इसलिए आसियान की बैठक काफी महत्वपूर्ण थी। इस बैठक के जरिये भारत आतंकवाद को लेकर अपना रुख एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर रखने में कामयाब रहा। बहरहाल अमेरिका महसूस कर रहा है कि न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि पूर्वी एशिया में भी भारत की जरूरत है। यह जरूरत महज व्यापार तक सीमित नहीं बल्कि सैनिक शक्ति के रूप में भी आवश्यक है।

(लेखक हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख हैं)
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