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ये जानना दिलचस्प है कि 1969 में प्रणब दा के दिल में क्या था

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सरकारों को अध्यादेश के जरिए शासन करने से बचना चाहिए।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 24 Jul 2017 02:36 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jul 2017 12:06 PM (IST)
ये जानना दिलचस्प है कि 1969 में प्रणब दा के दिल में क्या था
ये जानना दिलचस्प है कि 1969 में प्रणब दा के दिल में क्या था

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । रविवार को संसद के सेंट्रल हाल में जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को विदाई जा रही थी तो वो अपने जज्बातों पर काबू न रख सके। दरअसल वो पल प्रणब दा के मिजाज से बिल्कुल उल्टा था। कड़क मिजाज के लिए जाने वाले प्रणब दा ने सरकार को नसीहत देने के साथ विपक्षी दलों से संसद में मर्यादित और अनुशासित व्यवहार की सीख दी। अपने विदाई भाषण में प्रणब दा ने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर (संसद) से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि संसद में जिस तरह से संवाद की जगह हंगामा होता रहता है, वो लोकतंत्र के लिए बेहतर नहीं है। आइए आप को बताने की कोशिश करते हैं कि भारत के 13वें राष्ट्रपति प्रणब दा किस तरह से न केवल आम लोगों बल्कि अलग-अलग राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे। 

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राष्ट्रपति बनते वक्त प्रणब दा का बयान

25 जुलाई 2012 को भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद देश के प्रथम नागरिक ने कहा था कि बंगाल के एक छोटे से गांव में दीपक की रोशनी से दिल्ली की जगमगाती रोशनी तक की इस यात्रा में मैंने विशाल और कुछ हद अविश्वसनीय बदलाव देखे हैं। उन्होंने कहा था कि उस समय मैं बच्चा था, जब बंगाल में लाखों लोगों को अकाल ने मार डाला था। उस पीड़ा और दुख को मैं भूला नहीं हूं। 

प्रणब दा का सियासी सफर

प्रणब दा पहली बार 1969 में राज्यसभा के लिए चुने गए। उन्होंने लंबा अरसा यानी 35 साल तक संसद के उच्च सदन (राज्यसभा) में बिताए। राजनीति के हर एक अनसुलझे बिंदुओं को गहराई से समझने वाले प्रणब दा ने इतने सालों तक जनता के बीच जाकर चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन 35 वर्ष बाद 2004 में पहली बार पश्चिम बंगाल के जंगीपुर संसदीय क्षेत्र से चुने गए और लोकसभा में पहुंचे।

आपातकाल के दौर में वो तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के करीब थे। प्रणब दा पर आरोप लगे कि आपातकाल के दौरान वो सरकार की दमनकारियों नीतियों में हिस्सेदार रहे। लेकिन वो विरोधी दलों में खासे लोकप्रिय बने रहे। बताया जाता है कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वो देश का पीएम बनना चाहते थे। लेकिन राजीव गांधी के समर्थकों की वजह से वो कामयाब न हो सके। कहा जाता है कि इस प्रकरण के बाद उनके राजीव गांधी से संबंध खराब हो गए और उन्होंने राष्ट्रवादी समाजवादी कांग्रेस का गठन किया। लेकिन राजीव गांधी से सुलह के बाद 1989 में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया।

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई तो पीवी नरसिम्हाराव देश के पीएम बने। नरसिम्हाराव ने प्रणब दा के राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाने में मदद की। विदेश मंत्री के साथ-साथ उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। 2004 से 2012 तक मनमोहन सिंह सरकार में वो रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और वित्त मंत्री के पदों पर रहे।

प्रणब दा को कुछ ऐसे दी गई विदाई

प्रणब मुखर्जी को उपहार में एक मोमेंटो और कॉफी टेबल बुक दी गई। कॉफी टेबल बुक में पीएम के अलावा सोनिया गांधी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, लोकसभा उपाध्यक्ष थंबी दुरई और राज्यसभा के उपसभापति पी जे कुरियन और संसद के सदस्यों के दस्तखत हैं। इनमें प्रणब दा की उन तस्वीरों को जगह दी गई है जो अलग अलग मौकों पर संसद भवन में ली गई थीं।


मोमेंटो पर सिर्फ लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी के दस्तखत थे।सुमित्रा महाजन का स्वागत भाषण सिल्क के कपड़े पर लिखा हुआ था। यह प्रणब दा को भेंट कर दिया गया। इस पर पश्चिम बंगाल की कला की छाप है।

13 वें राष्ट्रपति इसलिए रहे खास

राष्ट्रपति के रूप में प्रणब दा ने 32 दया याचिकाओं पर फैसला किया। इनमें से कुछ याचिकाएं 17 वर्ष से लंबित थीं। प्रणब दा ने अफजल गुरु, अजमल कसाब, याकूब मेमन समेत 28 दोषियों की दया याचिका खारिज की। मुंबई हमलों के दोषी कसाब को 2012, अफजल गुरु को 2013 और याकूब मेमन को 2015 में फांसी दी गई।

प्रणब दा से जुड़ी अनसुनी कहानियां

सुकांत भट्टाचार्य का लिखा ‘अबक पृथ्वी उनका पसंदीदा गीत है। बीरभूम जिले में जन्में अब्दुल सत्तार 1981 से 1982 तक बांग्लादेश के राष्ट्रपति रहे। भारत के राष्ट्रपति रहे प्रणब दा का भी जन्म इसी जिले हुआ था। अब्दुल सत्तार विभाजन के बाद ढाका चले गए थे। प्रणब मुखर्जी के जो तेवर आप देखते हैं वो पहले भी थे। अपनी जिद्द के चलते उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के दौरान डबल प्रमोशन पाया।

1969 में प्रणब दा राज्यसभा के सदस्य बने तो उस वक्त उनका आधिकारिक घर राष्ट्रपति संपदा के पास ही था। एक दिन उन्होंने राष्ट्रपति वाली बग्गी देखकर अपनी बहन से कहा कि इस आलीशान राष्ट्रपति भवन का आनंद उठाने के लिए वो अगले जन्म में घोड़ा बनना पसंद करेंगे। लेकिन उनकी बहन ने कहा कि इसके लिए तुम्हें अगले जन्म रुकना नहीं पड़ेगा, बल्कि इसी जन्म में इसमें रहने का मौका मिलेगा।

प्रणब दा का जीवन परिचय

प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिरती नामक स्थान पर एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रहे। 1952 से 1964 तक पश्चिम बंगाल विधान परिषद् के सदस्य रहे। वे ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी थे। प्रणब की मां का नाम राजलक्ष्मी था। उन्होंने बीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज (कोलकाता विश्वविद्यालय से संबद्ध) में पढ़ाई की और बाद में राजनीति शाष्त्र और इतिहास विषय में एम.ए. किया। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की।


प्रणब मुखर्जी ने डिप्टी अकाउंटेंट जनरल (पोस्ट और टेलीग्राफ) के कोलकाता कार्यालय में प्रवर लिपिक की नौकरी की। 1963 में उन्होंने दक्षिण 24 परगना जिले के विद्यानगर कॉलेज में राजनीति शास्त्र पढ़ाना प्रारंभ किया। इसके साथ ही ‘देशेर डाक’ नामक पत्र के साथ जुड़कर पत्रकार भी बन गए।


प्रणब मुखर्जी का विवाह 13 जुलाई 1957 को शुभ्रा मुखर्जी के साथ हुआ था। उनके दो बेटे और एक बेटी – कुल तीन बच्चे हैं। उनकी पत्नी शुभ्रा मुख़र्जी का निधन 18 अगस्त 2015 को बीमारी की वजह से हुआ। प्रणब मुखर्जी ने कई किताबें भी लिखी हैं, जिनमें मिड टर्म पोल, बियॉंड सरवाइवल, ऑफ द ट्रैक- सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस, इमर्जिंग डाइमेंशन्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी, तथा चैलेंज बिफोर द नेशन शामिल हैं।

उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। भारत सरकार ने भी उन्हें पद्म विभूषण (देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान) से सम्मानित किया है। बूल्वर हैम्पटन और असम विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया है।

अब प्रणब दा को मिलेंगी ये सुविधाएं

- अब प्रणब दा के साथ 200 के बजाय सिर्फ पांच लोगों को स्टॉफ रहेगा।

- बुलेटप्रूफ मर्सिडीज कार की सुविधा मिलेगी। 

- स्टॉफ पर खर्च के लिए 60 हजार रुपये महीने मिलेंगे।

- दो टेलीफोन की सुविधा होगी। इनमें एक इंटरनेट से जुड़ा होगा। दूसरा रोमिंग फ्री मोबाइल होगा। पूर्व राष्ट्रपति होने की वजह से उन्हें जीवन भर मुफ्त इलाज की सुविधा होगी।

राष्ट्रपति भवन की खासियत

राष्ट्रपति भवन देश का सबसे अहम पता है, जो भारत के प्रथम नागरिक से जुड़ा होता है। देश के आलीशान भवन की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चार मंजिला इस भवन में 340 कमरे हैं। और सभी कमरों का उपयोग किसी न किसी रूप में होता है। करीब दो लाख वर्गफुट में बना राष्ट्रपति भवन आजादी से पहले ब्रिटिश वायसराय का सरकारी आवास होता था। माल्चा और रायसिनी गांव की जमीन पर बने इस भव्य इमारत में करीब 70 करोड़ ईटों और 30 लाख घनफुट पत्थरों का इस्तेमाल हुआ और उस वक्त 140 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
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