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लॉर्ड्स के मैदान में हार कर भी जीत गई बेटियां

क्रिकेट ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि उसे महान अनिश्चितताओं का खेल क्यों कहा जाता है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Tue, 25 Jul 2017 01:16 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jul 2017 01:19 PM (IST)
लॉर्ड्स के मैदान में हार कर भी जीत गई बेटियां
लॉर्ड्स के मैदान में हार कर भी जीत गई बेटियां

(पीयूष द्विवेदी)

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रविवार को इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में खेले गए महिला क्रिकेट विश्व कप का फाइनल मैच भारतीय टीम जीतते-जीतते हार गई। यह दूसरी बार था, जब विश्व कप के फाइनल में भारतीय टीम पहुंची थी। इससे पहले 2005 में भारत महिला विश्व कप के फाइनल में पहुंचा था, मगर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से पार नहीं पा सका। लिहाजा इस बार उम्मीदें थीं कि महिला क्रिकेट में विश्व कप का सूखा समाप्त होगा, मगर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका। क्रिकेट ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि उसे महान अनिश्चितताओं का खेल क्यों कहा जाता है। 229 रन का लक्ष्य जो कि भारतीय बल्लेबाजी के 41वें ओवर तक भारत के 182 रन पर तीन विकेट देखते हुए काफी आसान लग रहा था, उसके बाद इतना मुश्किल होता चला गया कि 218 रन पर ही पूरी भारतीय टीम पवेलियन लौट गई।

यदि ऐसी हार पुरुष टीम की हुई होती तो ये निश्चित था कि देश में उनके खिलाफ भयंकर आक्रोश पैदा हो उठता, मगर अबकी ऐसा नहीं हुआ। सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा का मीडिया तक में इस हार के बावजूद महिला क्रिकेटरों के लिए बधाई और प्रशंसा के ही शब्द सुनाई पड़े। ऐसा कह सकते हैं कि देशवासियों को हार का दुख था, मगर वे निराश नहीं थे। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी खराब हार के बावजूद भी महिला क्रिकेटरों के प्रति लोगों में आक्रोश के बजाय प्रशंसा के भाव क्यों थे? इस सवाल के जवाब में कई बातें हैं, जिन्हें समझना होगा।

दरअसल इस बार इस टीम ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से लोगों को महिला क्रिकेट को महत्व देने पर मजबूर कर दिया। टीम इस पूरे विश्व कप टूर्नामेंट के दौरान ऐसे दमखम के साथ खेली कि भारत जैसे देश जहां क्रिकेट का मतलब पुरुषों के क्रिकेट तक ही समझा जाता रहा है, को उतनी ही तवज्जो इस महिला विश्व कप को भी देनी पड़ी। यह भी गौर करने लायक है कि ऐसे कम ही लोग होंगे जिन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम के ग्यारह खिलाड़ियों के नाम मालूम हों, लेकिन फाइनल वाले दिन मुकाबले से पहले जब खुद प्रधानमंत्री ने एक-एक कर टीम की सभी ग्यारह महिला खिलाड़ियों के नाम शुभकामना संदेश ट्विटर पर साझा किया तो यह सबके लिए चौंकाने वाला था। पुरुष क्रिकेट में भी कितना भी बड़ा मुकाबला हो कभी प्रत्येक खिलाड़ी का अलग-अलग जिक्र करते हुए शुभकामना संदेश प्रधानमंत्री की तरफ से नहीं दिए गए थे। इस तरह का शुभकामना संदेश पहली बार था।

हमें प्रधानमंत्री के इस संदेश के निहितार्थो को समझना होगा। दरअसल राजनीति प्राय: जनभावनाओं का ही अनुसरण करती है। देश में इस पूरे विश्व कप टूर्नामेंट के दौरान महिला टीम के प्रति जो सम्मान की भावना उपजी थी, प्रधानमंत्री ने प्रत्येक खिलाड़ी के लिए व्यक्तिगत शुभकामना संदेशवाले ट्वीट करके कहीं न कहीं देश की उसी भावना से जुड़ने का प्रयास किया। इसके अलावा महिला क्रिकेट टीम इस नाते भी बधाई की हकदार है, क्योंकि पुरुष टीम की तुलना में उन्हें हर तरह से बेहद कम सुविधा और संसाधन प्राप्त होते हैं, मगर बावजूद इसके उन्होंने अपने श्रम और कौशल से विदेशी धरती पर जाकर भी बेहतरीन खेल दिखाया और फाइनल तक का सफर तय किया। इन्हीं कारणों से हार के बाद भी महिला क्रिकेट टीम की आलोचना के बजाय प्रशंसा हो रही है।

यह अच्छी बात है कि देश में महिला क्रिकेट को लेकर मानसिकता में बदलाव आ रहा है, लेकिन इतने के बावजूद भी लगता नहीं कि बीसीसीआइ को कोई फर्क पड़ा है। पुरुष और महिला क्रिकेट के बीच बीसीसीआइ की भेदभाव की भावना में जरा-सा भी बदलाव आने का कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहा। मैच फीस, बड़े-बड़े टूर्नामेंट्स पर मिलने वाले विशेष इनामों समेत अन्य सुविधाओं के मामले में पुरुष और महिला क्रिकेट टीम के बीच काफी भेदभाव किया जाता है। अधिक विस्तार में न जाते हुए यहां सिर्फ इतना समझ लेना पर्याप्त होगा कि पुरुष क्रिकेट टीम के ग्रेड-सी के खिलाड़ी की फीस महिला टीम की ग्रेड-ए के खिलाड़ी से अधिक है। खैर उम्मीद करते हैं कि जैसे देश में महिला क्रिकेट को लेकर लोगों के दृष्टिकोण में इस विश्व कप के बाद बदलाव नजर आया है, क्रिकेट बोर्ड भी उस बदलाव का हिस्सा बनते हुए महिला क्रिकेटरों से भेदभाव करना बंद करेगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) 


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