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यहां पर सरकार का रवैया है लापरवाही वाला

तमाम मामलों को देखकर लग रहा है कि सरकार नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम को लागू करने में लापरवाह रवैया अपना रही है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 05 Jul 2017 03:52 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jul 2017 03:52 PM (IST)
यहां पर सरकार का रवैया है लापरवाही वाला
यहां पर सरकार का रवैया है लापरवाही वाला

संदीप पाण्डेय

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तमाम मामलों को देखकर लग रहा है कि सरकार नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम को लागू करने में लापरवाह रवैया अपना रही है। 2009 में बने इस कानून को 1 अप्रैल 2010 को लागू किया गया था। स्थानीय प्राधिकारी यानी नगर निगम के कर्तव्यों में बताया गया है कि वह प्रत्येक बालक या बालिका को आस-पास के किसी विद्यालय में नि:शुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएगा। वह सुनिश्चित करेगा कि दुर्बल वर्ग व अलाभित समूह के बालक या बालिका के साथ पक्षपात न हो और इन्हें किसी आधार पर शिक्षा प्राप्त करने से वंचित न किया जाए।

मगर लखनऊ में ही अभी-अभी समाप्त हुए शैक्षणिक सत्र में सिटी मांटेसरी स्कूल, नवयुग रेडियंस, सिटी इंटरनेशनल, सेंट मेरी इंटर कॉलेज, विरेंद्र स्वरूप पब्लिक स्कूल ने उपयरुक्त अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत 105 बच्चों को दाखिला नहीं दिया। इनमें से 14 बच्चे, जिनका सिटी मांटेसरी स्कूल की विभिन्न शाखाओं में दाखिला हुआ था, न्यायालय भी गए किंतु न्यायालय ने भी इनके दाखिले का स्पष्ट आदेश नहीं दिया। क्या ये बच्चे यदि अमीर परिवारों से होते तब भी इनके साथ ऐसी ही लापरवाही बरती जाती?

नगर निगम का यह भी कर्तव्य है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में निवास करने वाले चौदह वर्ष तक की आयु के बच्चों का अभिलेख तैयार करेगा ताकि वह अपने अधिकार क्षेत्र में निवास करने वाले प्रत्येक बच्चे का प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश, उपस्थिति व अनुवीक्षण सुनिश्चित कर सके। मगर नगर निगम को अभी यह जानकारी ही नहीं है कि नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत उसकी कोई जिम्मेदारी भी है। राज्य सरकार और नगर निगम का कर्तव्य था कि उपयरुक्त अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए तीन वर्ष के भीतर जहां विद्यालय न हों वहां विद्यालय स्थापित किए जाएं। लखनऊ में सेक्टर पी, बी.एस.यू.पी., वसंत कुंज योजना, दुबग्गा जैसे कई रिहायशी इलाके हैं जहां अभी कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं हैं।

नगर निगम का यह भी कर्तव्य है कि वह प्रवासी परिवारों के बच्चों का विद्यालयों में प्रवेश सुनिश्चित करेगा। कानपुर शहर में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता एवं भूतपूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन की पुत्री विजया रामचंद्रन की कई शिकायतों के बावजूद कानपुर के कई ईंट भट्ठांे पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चों के नाम विद्यालयों में नहीं लिखे जा रहे हैं।1मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसी बीच ‘खूब पढ़ो, आगे बढ़ो’ अभियान की शुरुआत की है और भव्य कार्यक्रम में बच्चों को स्कूल बैग, किताबें, ड्रेस, जूते व मोजे बांटे।

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कोई भी बच्चा स्कूल जाने से छूटने न पाए किंतु यह कैसे होगा यह नहीं बताया। लखनऊ में हाल में न्यायमूर्ति सुधर अग्रवाल के फैसले कि सरकारी वेतन पाने वालों के बच्चों का निजी विद्यालय में पढ़ना अनिवार्य हो को लागू कराने के लिए एक अनशन किया गया। सरकार ने इसे नजरअंदाज किया।से जूस पीकर अनशन समाप्त किया गया जो अभी वि़द्यालय जाने से वंचित हैं अथवा शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के अंतर्गत जिलाधिकारी के आदेश से शहर के जाने माने विद्यालयों में प्रवेश पाए लेकिन विद्यालयों ने उन्हें दाखिला नहीं दिया।

क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बताएंगे कि पिछले शैक्षणिक सत्र में जिन 105 बच्चों के दाखिले के आदेश के बावजूद उपयरुक्त विद्यालयों ने दाखिला लिया ही नहीं, वे दाखिले मुख्यमंत्री कैसे कराएंगे? इस शैक्षणिक सत्र में भी जिन बच्चों के दाखिले का आदेश अभी तक सिटी मांटेसरी स्कूल में हुआ है विद्यालय उनके खिलाफ यह कहते हुए न्यायालय चला गया है कि ये बच्चे पात्र नहीं हैं। इस विद्यालय द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम की खुलेआम जो धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। उसके खिलाफ शासन-प्रशासन की कोई कार्यवाही करने की हिम्मत है? सभी के लिए समान रूप से शिक्षा तभी संभव हो पाएगा जब सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, जन प्रतिनिधियों और न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाएंगे।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)


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