विदेशी गोद में असुरक्षित मासूम, आखिर कब खुलेंगी हमारी आंखें और समझेंगे ये बातें
यदि भारत में ही नि:संतान लोग अनाथालयों से कानूनी प्रक्रिया के जरिये बच्चों को गोद लेने लगे तो ऐसे मासूमों को विदेशियों के हवाले करने की नौबत कम ही आएगी
मनीषा सिंह
अमेरिका स्थित टेक्सास के रिचर्डसन में शिरीन मैथ्यूज नामक तीन साल की बच्ची के साथ हुई रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना ने एक बार फिर गोद दिए जाने वाले भारतीय बच्चों की सुरक्षा की खामियों को उजागर किया है। इस बच्ची को पिछले साल एक भारतीय दंपति ने गोद लिया था। सात अक्टूबर को दूध नहीं पीने के कारण सजा के तौर पर उसके पिता ने बच्ची को रात तीन बजे घर से बाहर खड़े कर दिया था। कुछ देर बाद बच्ची गायब मिली थी। बाद में उसका शव एक सुरंग में मिला और पुलिस जांच व पूछताछ में पिता पर ही बच्ची की हत्या का संदेह है। कहना नहीं मानने पर पिता ने बच्ची को जबरन दूध पिलाने की कोशिश की थी, जिससे शिरीन की सांस रुक गई और कुछ देर में वह मर गई। बाद में पिता ने बच्ची के शव को घर से दूर ले जाकर एक सुरंग में छिपा दिया।
अमेरिकी कानून में पिता के इस जुर्म को घोर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस मामले में भले की कानून के मुताबिक सजा दी जाए लेकिन इससे भारत के उन अनाथ बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीदें खारिज होती हैं, जो विदेशी नागरिकों को गोद दिए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि विदेशों में गोद दिए गए भारतीय बच्चों के साथ होने वाले ऐसे हादसे अक्सर प्रकाश में आते रहते हैं। चार वर्ष पूर्व ऐसी ही जानकारी तब सामने आई थी, जब पता चला था कि इजरायल में बच्चों के यौन उत्पीड़न के दोषी एक व्यक्ति ने कानूनी रूप से चार वर्षीय एक भारतीय बच्ची को गोद ले लिया। इस घटना का रहस्योद्घाटन इजरायल में बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर द चाइल्ड ने किया था। उसी वर्ष जेनिफर एडगेल हायनेस नाम की भारतीय लड़की के साथ अतीत में ऐसी ही घटना घटित होने का पता चला था।
जेनिफर हायनेस को उसकी मां ने गरीबी के कारण पांच साल की उम्र में 1999 में एक अमेरिकी दंपत्ति को गोद दे दिया था। इसके दो साल बाद उस दंपति ने अडॉप्शन एजेंसी की मदद से हायनेस को किसी और परिवार के सुपुर्द कर दिया जहां उसका शोषण किया गया और उसे अमेरिका की गलियों में भटकने के लिए छोड़ दिया गया। 2008 में ड्रग्स मामले में पकड़े जाने पर पता चला कि उसके पास अमेरिकी नागरिकता तक नहीं है। नागरिकता संबंधी दस्तावेज नहीं होने के कारण हायनेस को भारत भेज दिया गया। सवाल तो अमेरिकी पॉप गायिका मैडोना और हॉलीवुड की एंजलीना जोली व ब्रैड पिट जैसी हस्तियों के इरादों को लेकर भी उठे हैं, जिन्होंने ऐसे बच्चे गोद लिए हैं।
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मैडोना ने बच्चे को गोद लेने में ऐसी हड़बड़ी दिखाई, मानो वह किसी शॉपिंग पर निकली हों। मैडोना एक मलावियाई बच्चे डेविड बांडा के अडॉप्शन को लेकर अंतरराष्ट्रीय विवादों में घिरी थीं। आरोप लगाया गया था कि अफ्रीका के गरीब देश मलावी की सरकारी एजेंसियां और लिलोंग्वे हाई कोर्ट हॉलीवुड की सुपर स्टार के दबाव में आ गए और बच्चे को गोद देने की इजाजत देते वक्त कानूनी प्रक्रिया को लागू नहीं किया गया। इसी तरह कंबोडिया और इथियोपिया से एक-एक बच्चा गोद ले चुकी एंजलीना जोली ने एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में भारत आने पर जब एक भारतीय बच्चे को गोद लेने की इच्छा जाहिर की तो ऐसा ही विवाद हुआ था। गरीब मुल्कों से बच्चों को अमीर देशों के मां-बाप को गोद देने की परंपरा ऊपरी तौर पर काफी आकर्षक मालूम होती है।
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लगता है कि इस तरह एक बच्चा गरीबी और जहालत की जिदंगी से निजात पा जाता है और उसकी जिंदगी संवर जाती है। ऐसे में हर कोई ऐसे अडॉप्शन के पक्ष में होना चाहेगा और इस मामले में अगर कोई कानूनी अड़चन सामने आ रही हो तो उसे फौरन दूर किया जाए। मगर इसका जो दूसरा पहलू है, वही असली समस्या बना हुआ है। असल में, अफ्रीका या एशिया के भारत व बांग्लादेश जैसे गरीब मुल्कों के अनाथ व बेघरबार बच्चों में सबकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं होती कि उन्हें गोद लेने वाले लोग उनके साथ सलीके से ही पेश आएंगे। 2005 में भारत में बच्चों की सौदेबाजी के एक बड़े रैकेट का पता चला था। तब यह तथ्य सामने आया है कि दुनिया में जिन दस देशों से इंटर कंट्री अडॉप्शन (यानी देश से बाहर किसी अन्य मुल्क के नागरिक को) सबसे ज्यादा होते हैं, उनमें एक भारत भी है। अमेरिका से बच्चों की भारी मांग रहती है और इसकी आड़ में जबर्दस्त रैकेट चलता है।
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बच्चे चुरा लिए जाते हैं या खरीदे जाते हैं, उन्हें भारी दाम पर विदेशियों को बेचा जाता है और कोई कानून नहीं होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट ने जो थोड़े-बहुत दिशा-निर्देश दे रखे हैं, उनका भी उल्लंघन होता है। इन नियमों के मुताबिक व्यवस्था यह है कि किसी भी बच्चे को पहले घरेलू अडॉप्शन के लिए पेश किया जाएगा और उसके बाद ही उसका इंटर कंट्री अडॉप्शन होगा। एक अनुमान के अनुसार देश में हर साल दो-ढाई हजार बच्चे ही गोद लिए जा रहे हैं, पर चूंकि बाहर से गोद लेने के इच्छुक दंपतियों के आवेदन काफी ज्यादा संख्या में होते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट और भारत की सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्सेज एजेंसी (कारा) के दिशा-निर्देशों की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा जाता होगा, खास तौर से विदेशी मां-बाप को बच्चा गोद देने के मामले में क्योंकि विदेशी दंपति गोद लिए जाने बच्चे के बदले मोटी रकम अनाथालयों और गरीब मां-बाप को चुकाते हैं।
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इन सारे वाकयों का यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि विदेशी मां-बाप को भारतीय बच्चे गोद देने की प्रक्रिया रोक दी जाए। रोक इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि कुछ मामलों में असली दोष हमारे समाज, गोद देने वाले मां-बाप और संबंधित एजेंसी का होता है। भारतीय समाज का दोष यह है कि यहां अभी भी लोग नि:संतान रहने को प्राथमिकता देते हैं, बजाय किसी गरीब के बच्चे को गोद लेने के। हिचक इतनी ज्यादा है कि अपनी कोई संतान नहीं होने पर भी लोगों को यह विचार नहीं भाता कि अनाथालय से वैध तरीके से कोई बच्चा गोद ले लिया जाए। यदि अपने देश में ही नि:संतान लोग अनाथालयों से कानूनी रूप से बच्चों को गोद लेने लगे तो बच्चों को विदेशियों के हवाले करने की नौबत कम ही आएगी।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)