डोकलाम पर चीन को शानदार पटखनी देकर भारत का बढ़ा अंतरराष्ट्रीय मंच पर कद
इसमें कोई शक नहीं है कि डोकलाम में भारत फ्रंटफुट पर थ। लेकिन इस मसले को भारत ने जिस कामयाबी से सुलझाया और चीन को पटखनी दी है उससे पूरी दुनिया में भारत का कद काफी बढ़ गया है।
रवि शंकर
भारत और चीन के बीच करीब ढाई महीने से चल रहा भूटान के दावे वाले डोकलाम विवाद आखिरकार शांतिपूर्वक बातचीत से खत्म हो गया। दोनों देश डोकलाम से अपनी-अपनी सेनाएं हटाने पर सहमत हो गए। जहां वे एक-दूसरे के खिलाफ 16 जून से जमे हुए थे। इसे भारत की एक बड़ी जीत माना जा रहा है। हालांकि चीन भी अपनी जीत के दावे करते हुए कह रहा है कि वह सीमा पर गश्त जारी रखेगा। मगर भारत ने जिस तरह आक्रामक चीन का सामना किया और अपने रुख पर अडिग रहा, उससे भारत की साख और बढ़ी है। चीन के लिए भी संदेश साफ हो गया है कि उसकी दादागीरी भारत जैसे देश पर नहीं चलेगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत फ्रंटफुट पर था। गौरतलब है कि भारत चीन के बीच करीब ढाई महीने से डोकलाम में विवाद चल रहा था और दोनों देशों की सेनाएं लंबे समय से आमने-सामने खड़ी थी। दोनों देश ही डोकलाम को लेकर अपनी-अपनी मांगों पर अड़े हुए थे। सिक्किम से लगते भूटान और चीन के ट्राइजंक्शन क्षेत्र डोकलाम में चीन की सड़क बनाने की कोशिशों को भारत द्वारा विफल किए जाने से उत्पन्न गतिरोध ने दोनों देशों के बीच अपेक्षाकृत शांत माहौल को तनावपूर्ण बना दिया है।
सीमा पर भले ही लड़ाई की कोई हलचल न दिखाई दे रही हो, लेकिन दोनों ओर से किसी भी स्थिति से निपटने की पूरी तैयारी की बात लगातार कही जा रही थी। वहीं चीन बातचीत के बजाय इस मुद्दे को गीदड़ भभकी से सुलझाने के लिए रोज नए-नए पैंतरे अपना रहा। चीन के अपेक्षा के विपरीत शुरू से ही आक्रामक रुख अपनाए जाने के बावजूद भारत इस विवाद का बातचीत के जरिये समाधान करना चाहता है और इसके लिए वह किसी भी मौके को नहीं छोड़ा।1दरअसल, भारत ट्राइजंक्शन क्षेत्र से जुड़े विवादों का समाधान संबंधित समझौतों के आधार पर करना चाहता है इसलिए वह इसी के अनुरूप गत 16 जून से पहले की स्थिति बनाये रखने पर जोर दे रहा है। बता दें कि सिक्किम सेक्टर के गतिरोध वाले डोकलाम इलाके को इंडियन रीजन में डोका-ला कहा जाता है।
जिस त्रिकोणीय इलाके में गतिरोध बना हुआ था, वह डोकलाम कहलाता है और वह भूटान के अधिकार वाला क्षेत्र है। इसी क्षेत्र पर कब्जा करके चीन वहां पर सड़क बनाना चाहता था जिसे गत 16 जून को भारतीय सेना ने बलपूर्वक रुकवा दिया। भारत की चिंता थी कि अगर चीन डोकलाम इलाके में अपना वर्चस्व साबित करने में कामयाब हो गया तो वो ‘चिकेन नेक’ इलाके में बढ़त ले लेगा, जो भारत के लिए नुकसानदायक होगा। हालांकि,चीन का कहना है कि वह अपने इलाके में सड़क बना रहा है। चीन दावा करता है कि ये उसके डोंगलांग रीजन का हिस्सा है। भारत-चीन का जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक 3,488 किलोमीटर का लंबा बॉडर है। इसका 220 किलोमीटक हिस्सा सिक्किम में आता है। यह इलाका उत्तर-पूर्वी प्रदेशों को बाकी इंडिया से जोड़ने वाले संकरे गलियारे के बिल्कुल नजदीक है।
ऐसे में यदि युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती तो इसका लाभ चीन को मिलता। चीन की इस मंशा को भारत बखूबी समझता था, इसलिए वह वहां ड्रैगन को किसी तरह की बढ़त देने के मूड में नहीं था। यही वजह है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भारत का रुख स्पष्ट करते हुए कहा है कि इस समस्या का समाधान युद्ध नहीं है और बातचीत से ही हल निकलता है। अमेरिका और रूस ने भी दोनों देशों से इस मुद्दे का बातचीत के जरिये हल करने को कहा है। भूटान द्वारा डोकलाम को उसकी जमीन बताए जाने और जापान द्वारा इस मुद्दे पर भारत का खुलकर समर्थन करने से भी भारतीय पक्ष को बल मिला है।1इस तरह भारत ने दुनिया को खासकर पड़ोसी देशों को खुद के एक क्षेत्रीय शक्ति होने का अहसास कराने में सफल रहा। मगर इस स्थिति का लंबे दौर तक टिकना मुश्किल है। क्योंकि सुरक्षा भारत की चिंता है। इसलिए इस आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता कि चीन कहीं कोई और मोर्चा खोल सकता है। इसलिए भारत को सतर्क रहना होगा।
(लेखक टेलीविजन पत्रकार हैं)