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वैश्विक भूख सूचकांक में 100वें स्थान पर भारत, आखिर क्या है इसके पीछे की वजह

वैश्विक भूख सूचकांक में भारत पिछले साल की तुलना में तीन पायदान नीचे लुढ़क कर 100वें स्थान पर पहुंच गया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 31 Oct 2017 10:29 AM (IST)Updated: Tue, 31 Oct 2017 11:06 AM (IST)
वैश्विक भूख सूचकांक में 100वें स्थान पर भारत, आखिर क्या  है इसके पीछे की वजह
वैश्विक भूख सूचकांक में 100वें स्थान पर भारत, आखिर क्या है इसके पीछे की वजह

रमेश कुमार दुबे

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पिछले दिनों जारी अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आइएफपीआरआइ) के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत पिछले साल की तुलना में तीन पायदान नीचे लुढ़क कर 100वें स्थान पर पहुंच गया। रिपोर्ट में इसके लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मिड डे मील योजना में भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया गया है, लेकिन यह नहीं बताया गया है कि सस्ते आयात के कारण खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है। गौरतलब है कि वैश्विक तापवृद्धि, जलवायु परिवर्तन, कुदरती आपदाओं में इजाफा और बढ़ती लागत के चलते खेती पहले से ही घाटे का सौदा बन चुकी है, लेकिन अब मुक्त व्यापार नीतियों के तहत सस्ते कृषि उत्पादों का बढ़ता आयात किसानों को गहरे संकट में डाल रहा है।

इससे न केवल बढ़ती आबादी के अनुरूप खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी की रफ्तार धीमी पड़ गई है, बल्कि सरकारी कोशिशों के बावजूद किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही है। इसका सीधा असर प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता और किसानों की आमदनी पर पड़ रहा है। जिस उदारीकरण की नीतियों को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वरदान माना गया वही अब किसानों को कंगाली के बाड़े में धकेल रही हैं। यह समस्या इसलिए भी गंभीर होती जा रही है, क्योंकि भूमंडलीकरण के दौर में सरकार ने कृषि व्यापार का उदारीकरण तो कर दिया, लेकिन भारतीय किसानों को वे सुविधाएं नहीं मिलीं कि वे विश्व बाजार में अपनी उपज बेच सकें।

दूसरी ओर विकसित देशों की सरकारें और एग्री बिजनेस कंपनियां हर प्रकार के तिकड़म अपनाकर भारत के विशाल बाजार में अपनी पैठ बढ़ाती जा रही हैं। बंपर फसल के बावजूद किसानों को उपज की वाजिब कीमत न मिलने की एक बड़ी वजह सस्ता आयात भी है। भारत में खाद्य तेल और दालों का आयात तो लंबे अरसे से हो रहा है, लेकिन अब गेहूं, मक्का और गैर बासमती चावलों का भी आयात होने लगा है। पिछले तीन वर्षो में इन अनाजों का आयात 110 गुना बढ़ गया है, जो कि चिंता का कारण बनता जा रहा है। इस दौरान फलों और सब्जियों का आयात भी तेजी से बढ़ा है। अब तो बागवानी उपजों का भी आयात होने लगा है। समस्या यह है कि एक ओर कृषि उपजों का आयात बढ़ रहा तो दूसरी ओर देश से होने वाले कृषिगत निर्यात में कमी आने लगी है।

उदाहरण के लिए 2014-15 में 1.31 लाख करोड़ रुपये का निर्यात हुआ तो 2015-16 में यह 1.08 लाख करोड़ रुपये रह गया। कृषि उपज के बढ़ते आयात की एक बड़ी वजह यह है कि हमारे यहां सरकारें जितनी चिंता महंगाई की करती हैं उसका दसवां हिस्सा भी किसानों की आमदनी की नहीं करती हैं। यही कारण है कि बाजार में कीमतों में तनिक सी बढ़ोतरी होते ही सरकार के माथे पर बल पड़ने लगता है और वह तुरंत आयात शुल्क में कटौती कर देती है। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए उपाय कर रही है।

पिछले तीन वर्षो के दौरान कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए शुरू की गई योजनाएं इसका प्रमाण हैं। जैसे-राष्ट्रीय कृषि बाजार, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, यूरिया पर नीम का लेपन, जैविक खेती और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, पर विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के अनुरूप जिस ढंग से कृषि उपजों का आयात बढ़ रहा है उससे न केवल खेती-किसानी बदहाली की ओर जा रही है, बल्कि देश की खाद्य संप्रभुता भी खतरे में पड़ जाने की अशंका व्यक्त की जाने लगी है। आखिर भारत कोई छोटा-मोटा देश तो है नहीं जो आयातित खाद्यान्न के बल पर अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर ले। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो सस्ता आयात हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा।

(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी एवं आर्थिक मामलों के जानकार हैं)


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