ब्रिक्स में भारत ने चीन को दिया स्पष्ट संदेश, कहा- विवाद की वजह न बने मतभेद
ब्रिक्स सम्मेलन के आखिरी दिन भारत ने साफ कर दिया कि शांति, स्थिरता और विकास से ही ब्रिक्स देशों को और मजबूत बनाया जा सकता है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । चीन के शियामेन शहर में ब्रिक्स सम्मेलन के समापन की औपचारिक घोषणा के साथ अगले साल दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में अगले ब्रिक्स सम्मेलन की घोषणा की गई। ब्रिक्स सम्मेलन पर देश और दुनिया की नजर इस बात पर टिकी थी कि भारत और चीन के बीच बातचीत का एजेंडा क्या होगा। सोमवार को जब ब्रिक्स का घोषणापत्र जारी हुआ तो उसमें अहम बात ये रही कि पहली बार चीन ने माना कि लश्कर और जैश दुनिया के लिए खतरनाक हैं। ब्रिक्स के घोषणापत्र में लश्कर और जैश संगठनों का जिक्र होना भारत के लिए अहम कामयाबी मानी गई।
अगर आप 2016 गोवा ब्रिक्स के घोषणापत्र को देखें तो उस समय भारत की पूरजोर कोशिशों के बाद भी लश्कर और जैश के नाम पर चीन अड़ गया था। आज जब पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच मुलाकात हुई तो कयास लगाए जा रहे थे कि शायद डोकलाम के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच बातचीत हो। लेकिन चीन ने बातचीत से पहले ही साफ कर दिया कि डोकलाम पर बातचीत नहीं होगी। पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की बातचीत के बाद विदेश सचिव एस जयशंकर ने सधे अंदाज में कहा कि मतभदों को कभी विवाद नहीं बनने देंगे। भारत के इस बयान से साफ हो गया कि पंचशील सिद्धांतों के तहत ही चीन और भारत को आगे बढ़ने की जरुरत है।
मोदी-चिनफिंग मुलाकात के बाद भारत का बयान
- आपसी भरोसा बढ़ाने की जरुरत।
- बदलते दौर में दोस्ती मजबूत करने की आवश्यकता।
- ब्रिक्स को और मजबूत बनाने पर बल।
- सीमा पर शांति बनाए रखने की जरुरत।
- शांति के साथ विकास के पथ पर आगे बढ़ना चाहता है भारत
- मतभेदों को विवाद में नहीं बदलने देंगे।
- दोनों नेताओं में सकारात्मक बातचीत हुई।
-पीएम और चिनफिंग के बीच 1 घंटे बातचीत हुई ।
जानकार की राय
Jagran.Com से खास बातचीत में रक्षा मामलों के जानकार राज कादयान ने बताया कि ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणा पत्र में लश्कर और जैश का उल्लेख होना भारत के लिए अहम कामयाबी है। डोकलाम को चर्चा के केंद्र में न लाकर चीन ने ये संदेश देने की कोशिश की वो खुद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने को अलग-थलग नहीं होने देना चाहता है। लेकिन चीन पर भरोसा करना मुश्किल है। भारत को चीन से लगी सीमाओं पर अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूती के साथ आगे बढ़ाना चाहिए।
रुख बदलने पर चीन की ओर से आई सफाई
पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का अब तक समर्थन करते आ रहे चीन ने अपना रुख बदलने पर सफाई दी है। उसने कहा है कि जैश, लश्कर और हक्कानी नेटवर्क जिस तरह से क्षेत्र में हिंसा फैला रहे हैं, उसे देखते हुए ही उनका नाम ब्रिक्स घोषणापत्र में लिया गया है। विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि इन सभी संगठनों पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध लगा चुका है।
चीनी विद्वान ने अपनी सरकार को घेरा
एक चीनी विद्वान ने अपनी सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि ब्रिक्स घोषणापत्र में पाकिस्तान स्थित कुछ आतंकी समूहों के नाम शामिल करने से पाकिस्तान नाराज हो सकता है। इस कदम से पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्तों में तनाव भी आ सकता है। यह भारत के लिए ही जीत हो सकती है जिसने इसके लिए बहुत काम किया है।
सरकारी ‘चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कन्टेम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशंस’ के निदेशक हू शीशेंग ने कहा कि आगामी महीनों में चीनी राजनयिकों को पाकिस्तान के सामने बहुत सारे स्पष्टीकरण देने पड़ेंगे। उन्होंने कहा कि दस्तावेज में हक्कानी नेटवर्क का नाम शामिल करना ‘मेरी समझ से परे है।’ हू शीशेंग ने कहा, ‘इस समूह का प्रमुख अफगानिस्तान तालिबान का वास्तविक मुखिया है। इससे अफगानिस्तान की राजनीतिक समझौता प्रक्रिया में चीन की भूमिका और मुश्किल हो जाएगी या यूं कहें कि भविष्य में कोई भूमिका ही नहीं होगी।’ हू शीशेंग ने कहा, ‘यह मेरी समझ से परे है कि चीन इसके लिए राजी कैसे हो गया। मुझे नहीं लगता कि यह एक अच्छा विचार है। इस घोषणापत्र को तैयार करने वाले लोग गुमराह हो गए थे।’
आतंक के खिलाफ ब्रिक्स देश एकजुट
-ब्रिक्स घोषणापत्र में कहा गया है कि दुनियाभर में हुए आतंकी हमलों की हम कड़ी निंदा करते हैं।
-आतंकी हमलों को उचित ठहराने के लिए किसी भी तरह का तर्क नहीं दिया जा सकता है।
-आतंकी हमले करने, संगठन बनाने और आतंक समर्थक देशों की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
- आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए अंतराष्ट्रीय कानून के अनुसार सहयोग बढ़ाने की जरुरत है।
पीएम मोदी ने उठाया था मुद्दा
भारतीय अधिकारियों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन में आतंकवाद का मुद्दा पुरजोर ढंग से उठाया। उनका वहां मौजूद अन्य देशों ने भी समर्थन कर इस बुराई के खिलाफ मिलकर संघर्ष की मंशा जताई। ब्रिक्स देशों में ब्राजील, भारत, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।
क्या मसूद पर साथ देगा चीन ?
सवाल उठता है कि क्या अब जैश के सरगना मसूद अजहर पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने की राह खुलेगी? अभी तक संयुक्त राष्ट्र में अजहर पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव सिर्फ चीन की वजह से गिरता रहा है। पिछले महीने ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका की मदद के बावजूद चीन के अड़ियल रवैये से अजहर पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पारित नहीं हो पाया था। चीन का रवैया बदलता है या नहीं यह तो बाद में पता चलेगा। लेकिन एक बात तो साफ है कि ब्रिक्स 2017 में भारत ने अपने नजरिए को ठोस अंदाज में रखा और सदस्य देशों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहा।
ब्रिक्स में पीएम के सुझाव
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि व्यापार और अर्थव्यवस्था ब्रिक्स-ब्राजील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका-देशों में सहयोग का आधार है। उन्होंने सुझाव दिया कि परस्पर सहयोग बढ़ाने के लिये कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। उन्होंने विकासशील देशों की संप्रभु और कॉरपोरेट कंपनियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ब्रिक्स रेटिंग एजेंसी बनाए जाने का भी आह्वान किया।
सहयोग बढ़ाने पर जोर
उन्होंने सदस्य देशों के सेंट्रल बैंकों से अपनी क्षमताओं को और बढ़ाने और समूह तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की आकस्मिक विदेशी मुद्रा कोष व्यवस्था के बीच सहयोग को बढ़ावा देने का भी आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ब्रिक्स देश भारत और फ्रांस द्वारा नवंबर 2015 में शुरू किये गये अंतरराष्ट्रीय सौर गठजोड़ (आईएसए) के साथ काम कर सकते हैं।
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