आज एक दूसरे की जरूरत बन गए हैं भारत और जापान
भारत-जापान के मध्य 12वां वार्षिक शिखर सम्मेलन बेहद अहम रहा, क्योंकि इसमें दोनों देशों ने एशिया और एशिया के बाहर अपने रणनीतिक सहयोग बढ़ाने की बात कही।
अनीता वर्मा
भारत-जापान के मध्य 12वां वार्षिक शिखर सम्मेलन बेहद अहम रहा, क्योंकि इसमें दोनों देशों ने एशिया और एशिया के बाहर अपने रणनीतिक सहयोग बढ़ाने की बात कही। देखा जाए तो आज दोनों देशों का एक-दूसरे के करीब आना मजबूरी भी है। दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों एक-दूसरे की जरूरत बन गए हैं। जापानी प्रधानमंत्री भारत के साथ रिश्तों को और अधिक मजबूत करने के लिए इसलिए भी काफी उत्सुक हैं, क्योंकि उनके देश को चीन और उत्तर कोरिया से खतरा है। शायद इसीलिए भी इसे हर तरह की मदद मुहैया करा रहे हैं। उधर भारत को भी चीन से खतरा है और इसे अपने विकास के जरूरी संसाधन और तकनीकी की दरकार है। ये दोनों चीजें इसे जापान दे सकता है। ऐसे में भारत भी उससे नजदीकी बढ़ा रहा है।
आज जापान मंदी की चपेट में है। वहां निवेश फायदेमंद नहीं है। एक और बात वहां लोग अपना पैसा बैंकों में भी नहीं रख पा रहे हैं, क्योंकि ब्याज दर नकारात्मक है। ऐसा करने पर उल्टे उन्हें बैंकों को पैसा देना पड़ता है। ऐसे में वहां के निवेशक ऐसे देश की तलाश में हैं जहां निवेश के अच्छे अवसर मौजूद हों। उन्हें इसके लिए भारत मुफीद लग रहा है। बुलेट टेन की तकनीक और कर्ज देकर उसने भारत पर कोई उपकार नहीं किया है, बल्कि ऐसा कर वह चीन को मात देना चाहता है।
जाहिर है जापानी प्रधानमंत्री का यह कहना कि ताकतवर जापान भारत के हित में है और ताकतवर भारत जापान के हित में है, इसके मायने स्पष्ट रूप से समझे जा सकते हैं। इससे स्पष्ट है कि दोनों देशों की एक-दूसरे पर निर्भरता भविष्य में और बढ़गी। जापान ने डोकलाम पर भारत के रुख का सर्मथन किया। दरअसल डोकलाम सिक्किम, तिब्बत और भूटान के तिराहे पर स्थित वह स्थान है जहां पर चीन सड़क का निर्माण करना चाह रहा था, लेकिन मजे की यह थी कि डोकलाम भूटान का भूभाग है। यहां जापान ने भारत का साथ इसलिए दिया, क्योंकि दक्षिण चीन सागर विवाद में पूर्व में भारत उसका साथ दे चुका है। यदि डोकलाम पर वह भारत का साथ नहीं देता तो भविष्य में एक सशक्त आवाज खो देता।
वैसे भी दक्षिण चीन सागर विश्व समुदाय के समक्ष ज्वलंत मुद्दा चीन की नीतियों के कारण ही बना हुआ है। इसी कारण भारत और जापान उस पर एक रुख रखे हुए हैं। चूंकि दक्षिण चीन सागर प्रमुख वैश्विक व्यापारिक मार्गो में से एक है ऐसे में भारत और जापान निर्बाध नौवहन की स्वतंत्रता की वकालत करते रहे हैं। वर्तमान में चीन एशिया में अपना दबदबा बढ़ाने में लगा हुआ है। एशिया में शांति स्थापित करने के लिए चीन को रोकना आवश्यक है। इस क्षेत्र में चीन का एकतरफा अत्यधिक ताकतवर होना एशियाई देशों के हित में नहीं होगा। इस प्रकार चीन कारक भी जापान और भारत को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हाल के दिनों में उत्तर कोरिया ने कई परमाणु परीक्षण किए हैं।
उसकी कोई मिसाइल जापान के ऊपर से गुजरी तो कोई जापान सागर में गिरी। उत्तर कोरिया संकट के पीछे चीन और रूस की मौन सहमति भी रही। जापान भारत के साथ दोस्ती बढ़ाकर उनकी धार को कुंद करना चाहता है जापान समुद्र में द्वीपों पर बसा हुआ देश है जिसके ऊपर भी ग्लोबल वार्मिग का खतरा है। ग्लोबल वार्मिग की समस्या संपूर्ण विश्व के लिए खतरे की घंटी है। इसके कारण उष्णकटिबंधीय तूफानों की आवृत्ति में काफी वृद्धि देखी जा रही है। समुद्री द्वीपों के साथ एक समस्या यह भी है कि यदि समुद्री जलस्तर में भविष्य में बढ़ोतरी होगी तो उनके डूबने का खतरा है। जापान अपने अस्तित्व को बचाने के लिए भारत का साथ चाहता है, इसके बदले में इसे स्वच्छ ऊर्जा मुहैया करा रहा है। इस प्रकार देखा जाए तो दोनों देशों का रिश्ता लेन-देन पर आधारित प्रतीत होता है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)