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भारत और जापान के रिश्तोंं में भी आई बुलेट ट्रेन की सी तेजी

अमेरिका के बाद अगर वैश्विक जगत में भारत का कोई रणनीतिक साझीदार है तो वह जापान ही है। दोनों नैसर्गिक मित्रता की ओर बढ़ रहे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 19 Sep 2017 10:20 AM (IST)Updated: Tue, 19 Sep 2017 10:20 AM (IST)
भारत और जापान के रिश्तोंं में भी आई बुलेट ट्रेन की सी तेजी
भारत और जापान के रिश्तोंं में भी आई बुलेट ट्रेन की सी तेजी

सुशील कुमार सिंह

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हाल के वर्षो में भारत-जापान संबंधों में महत्वपूर्ण और गुणात्मक बदलाव आया है। मौजूदा समय में तो यह बुलेट ट्रेन सरीखी रफ्तार ले ली है। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी द्वारा सृजित स्लोगन ‘जय जापान जय इंडिया’ इस बात को और पुख्ता करता है। गौरतलब है कि जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी की सितंबर यात्र वैसे तो बुलेट ट्रेन के चलते कहीं अधिक सुर्खियों में रही है, परंतु गुजरात के गांधीनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक में जो कुछ हुआ उससे स्पष्ट है कि रणनीतिक व सुरक्षा संबंधी मापदंडों पर भारत और जापान तुलनात्मक कहीं अधिक स्पीड से आगे बढ़ना चाहते हैं। दोनों देशों ने एक प्रकार से यह जता दिया कि रणनीतिक सहयोग के साथ दायरा बढ़ाने का मंसूबा फिलहाल रखते हैं।

गौरतलब है कि भारत जापान की तरफ से जारी संयुक्त घोषणापत्र का सीधा तात्पर्य प्रशांत महासागर से लेकर हिंद महासागर तक किसी भी देश को मनमानी की छूट नहीं होगी। जाहिर है चीन और उत्तर कोरिया समेत कइयों के लिए यह एक बड़ा और कड़ा संदेश है। जिस तर्ज पर थल सेना से लेकर नौसैनिक क्षेत्र तक में दोनों देशों ने खाका खींचा है उससे भी स्पष्ट है कि अमेरिका के बाद अगर वैश्विक जगत में कोई रणनीतिक साझीदार भारत का है तो वह जापान ही है। जापानी प्रधानमंत्री की बीते 14 सितंबर की यात्र रेल परिवहन की दृष्टि से भारत में एक बड़ी दस्तक ही कही जाएगी।

अहमदाबाद से मुंबई के बीच की बुलेट ट्रेन की परियोजना के कुल खर्च 110 हजार करोड़ रुपये में 88 हजार करोड़ रुपये का निवेश जापान द्वारा किया जाना साथ ही तकनीक भी उपलब्ध कराना इस बात का इशारा है कि भारत और जापान के संबंध केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक परिपाटी के साथ नैसर्गिक मित्रता की ओर बढ़ रहे हैं। जापान नहीं चाहता कि भारत में किसी प्रकार से चीन का हस्तक्षेप हो। गौरतलब है कि बुलेट ट्रेन के मामले में जापान की भांति चीन भी अव्वल है। हो न हो चीन की नजर व्यापारिक दृष्टि से बुलेट ट्रेन के मामले में भारत की ओर रही हो, पर जापान से मिली सौगात से यह रास्ता उसके लिए न केवल बंद हो गया, बल्कि दोनों की गाढ़ी दोस्ती से उसे जोर का झटका भी लगा है।

इतिहास को खंगाला जाय तो बौद्ध धर्म के उदय तथा जापान में इसके प्रचार-प्रसार के समय से ही दोनों देशों के बीच मधुर संबंध रहे हैं। भारत और जापान के बीच अप्रैल 1952 से राजनयिक संबंधों की स्थापना हुई जो मौजूदा समय में सौहार्दपूर्ण संबंध का रूप ले चुकी हैं। दोनों देशों द्वारा अनेक संयुक्त उपक्रमों की स्थापना से संबंधों की गहराई का पता चलता है। भारत और जापान 21वीं सदी में वैश्विक साझेदारी की स्थापना करने के लिए आपसी समझ पहले ही दिखा चुके हैं तब यह दौर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था। इंडो-जापान ग्लोबल पार्टनरशिप इन द ट्वेंटी फस्र्ट सेंचुरी इस बात का संकेत था कि जापान भारत के साथ शेष दुनिया से भिन्न राय रखता था। इतना ही नहीं वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं जापानी प्रधानमंत्री के साथ एक संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ जिसका शीर्षक था नए एशियाई युग में जापान-भारत साङोदारी।

गौरतलब है कि दिसंबर 2006 में मनमोहन सिंह और यही जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी ने सामरिक उन्मुक्तता को ध्यान में रखते हुए मसौदे को आगे बढ़ाया। उपरोक्त परिप्रेक्ष्य बताते हैं कि जापान और भारत कई दशकों से एक-दूसरे के लिए सकारात्मक रहे हैं। प्रधानमंत्री एबी ने एक दशक पहले कहा था कि किसी अन्य द्विपक्षीय संबंधों की तुलना में भारत और जापान के संबंधों में असीम संभावनाएं हैं। जाहिर है वर्तमान में भी दोनों इसी कसौटी पर एक बार फिर खरे उतरते दिखाई दे रहे हैं। भारत और जापान के भावी रिश्ते को जिस तरीके से जापानी प्रधानमंत्री ने यह कहते हुए कि हम ‘जय जापान जय भारत‘ को सच साबित करने के लिए काम करेंगे उसमें भी गाढ़ी दोस्ती का ही रहस्य छुपा हुआ है।

दो टूक यह भी है कि जापान की तुलना में इसका लाभ भारत के हिस्से में ही अधिक आने वाला है। हालांकि ‘जय जापान जय भारत’ के नारे से अनायास ही 1954 का हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा उभर आया जो 1962 में चीन आक्रमण के साथ इसलिए भरभरा गया, क्योंकि इसकी व्यावहारिकता पर कभी काम ही नहीं किया गया था, पर जापानी प्रधानमंत्री का नारा ‘जय जापान जय भारत’ इसलिए कहीं अधिक दृढ़ है, क्योंकि यह सात दशकों के संबंधों के बाद पनपाया गया है।

प्रधानमंत्री मोदी और उन्हीं के समकक्ष शिंजो एबी ने बुलेट ट्रेन के शिलान्यास के साथ रिश्तों की नई इबारत लिख दी है। मोदी ने साबरमती स्टेशन पर बुलेट ट्रेन के शिलान्यास के मौके पर कहा कि यह जापान से लगभग मुफ्त में मिल रही है। एबी ने कहा है कि मेक इन इंडिया के लिए जापान प्रतिबद्ध है। यह बात इसलिए दमदार है, क्योंकि भारत इसी के बूते दुनिया से अपने देश में निवेश की इच्छा रखता है। शिंजो एबी का यह वक्तव्य कि मेरे अच्छे मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूरदर्शी नेता हैं दशकों की गाढ़ी दोस्ती का एक दूसरा रंग ही है।

जिस तर्ज पर एशिया और प्रशांत महासागरीय देश आए दिन उथल-पुथल में रहते हैं और जिस प्रकार सीमा विवाद को लेकर चीन भारत को धौंस दिखाने का अवसर खोजता रहता है इसे भी संतुलित करने में जापान की दोस्ती बड़े काम की है। बीते 14 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी और जापानी पीएम के संयुक्त बयान में यह कहना कि पाकिस्तान 2008 के मुंबई और 2016 के पठानकोट हमलों के दोषियों को जल्द-से-जल्द सजा दिलवाए इससे पाकिस्तान को तो कड़ा संदेश मिला ही है साथ ही आतंकियों का समर्थन करने वाले चीन और उसकी बढ़ती आक्रमकता को भी निशाने पर लिया गया है। भारत-जापान की दोस्ती चीन को फिलहाल बहुत खल रही होगी। भारत और जापान के बीच हुए 15 अहम समझौते और हाई स्पीड रेल परियोजना साथ ही चीन के वन बेल्ट, वन रोड की काट खोजना भी इस बात का द्योतक है कि दक्षिण एशिया में ही नहीं, बल्कि वैश्विक फलक पर भारत अपना कद तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक विकसित कर चुका है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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