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शब्द भी हो रहे हैं चोरी, लेखक कट-कॉपी-पेस्ट कर लिख रहे हैं किताब

आजकल एक किताब बाजार में आती है तो उसके साथ ही विवाद भी खड़ा हो जाता है। कोई दूसरा लेखक उस किताब के लेखक पर अपनी कहानी चुराने का आरोप मढ़ देता है। आइए जानें यह सब हो क्या रहा है...

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 18 Nov 2017 01:52 PM (IST)Updated: Sat, 18 Nov 2017 02:07 PM (IST)
शब्द भी हो रहे हैं चोरी, लेखक कट-कॉपी-पेस्ट कर लिख रहे हैं किताब
शब्द भी हो रहे हैं चोरी, लेखक कट-कॉपी-पेस्ट कर लिख रहे हैं किताब

नई दिल्ली [स्मिता]। अपने लेखन से बड़ी-बड़ी बातें कहने वाले लेखकों पर आजकल चोरी के आरोप लग रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये आरोप उनकी ही बिरादरी के लोग यानी लेखक ही लगा रहे हैं। लेखक एक-दूसरे के कंटेट को कट, कॉपी, पेस्ट बता रहे हैं। कुल मिलाकर सोशल मीडिया पर लेखन में चोरी ट्रेंड कर रहा है।

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अभी कुछ दिन पहले युवा लेखिका प्रियंका ओम ने अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया कि प्रतिष्ठित लेखिका रजनी मोरवाल ने अपनी कहानी ‘महुआ’ में फेसबुक पर अपलोड हुई किसी दूसरे लेखक के विषय वस्तु को जस का तस रख दिया है। इस स्टेटस पर जितने भी कमेंट आए, उनमें से एक यह भी था कि जिस कहानीकार की रचना की चोरी का आरोप लेखिका पर लगा है, उन्होंने भी संभवत: किसी और वरिष्ठ लेखक का माल उड़ाया हुआ है।

वैसे रजनी मोरवाल फेसबुक पर सक्रिय रहती हैं, पर पिछले कुछ महीनों से उनका कोई भी स्टेटस फेसबुक पर अपलोड नहीं हो रहा है। यहां तक कि अपने ऊपर लगे आरोपों पर भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेखिका प्रियंका ओम सोशल साइट्स पर एक्टिव तो रहती हैं, लेकिन वे आइडिया या विषय वस्तु चोरी हो जाने के डर से प्रकाशन से पहले अपनी कहानियों को फेसबुक पर अपलोड नहीं करती हैं।

वे कहती हैं, ‘इंटरनेट पर दूसरों का लिखा कॉपी करना बहुत आसान है। जैसे ही आप किसी के लिखे मैटर पर क्लिक करते हैं, तो पूरा का पूरा मैटर कॉपी होने का ऑप्शन आ जाता है। यहां सबसे बड़ी बात तो यह है कि हिंदी साहित्य में चोरी रोकने के लिए न कोई कानून है और न कोई व्यवस्था। यदि आप चोर की ओर इंगित करते हैं, तो शर्मसार होने की बजाय वे लड़ने पर उतारू हो जाते हैं।’ सोशल मीडिया ने लेखक को प्रकाशक तो बना दिया है, लेकिन थोक के भाव में लिखी गई ज्यानदातर कविता-कहानियां कूड़ा ही होती हैं।

कभी-कभार गेहूं के साथ घुन भी पिस जाते हैं। यह कहावत तो यहां पूरी तरह फिट बैठती है। युवा कवि अंजु शर्मा ने चालीस पार महिलाओं पर आधारित एक कविता लिखी। जैसे ही यह कविता प्रसिद्ध हुई, तो दूसरे लेखक उन पर चोरी का आरोप लगाने लगे। साथ ही साथ दूसरे युवा कवि उनकी इस लोकप्रिय कविता को अपने नाम से पोस्ट भी करने लगे। अंजु कहती हैं, ‘लगभग तीन साल से लोग मुझे इस वाद-विवाद में घसीट रहे हैं। मैंने अपनी वॉल पर स्क्रीन शॉट लगाकर पूरी साहित्यिक बिरादरी से इस बाबत जवाब भी मांगा। दूसरी तरफ अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। मेरी कविताओं 'चालीस साला औरतें' और 'प्रेम कविता' को अपने नाम से फेसबुक वॉल पर लगाया गया।’

विदेश में साहित्यिक चोरी के कड़े कानून हैं, लेकिन भारत में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। पंकज सुबीर का हाल में कहानी संग्रह ‘चौपड़े की चुड़ैलें’ प्रकाशित हुआ है। टाइटल स्टोरी ‘चौपड़े की चुड़ैलें’ कहानी कई साहित्यिक आयोजनों में पुरस्कृत भी हुई। पंकज कहते हैं, ‘किसी ने मेरी कहानी के विषय वस्तु पर हूबहू एक सी ग्रेड फिल्म बना दी। मैंने उस फिल्मकार को अपनी कहानी के बारे में बताया और प्रमाण भी प्रस्तु‍त किए, लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। मेरी कई गजलें और कविताएं भी लेखकों ने कॉपी पेस्ट कर न सिर्फ अपने नाम से फेसबुक वॉल पर लगाई, बल्कि मुझे मैसेज भी भेजा। दरअसल, हिंदी के लेखकों के पास विरोध करने का कोई पॉवर ही नहीं है। कॉपीराइट और लेखक के मूल अधिकार को लेकर कोई प्रावधान नहीं है। रचना किसकी है, इसे तय नहीं किया जा सकता, क्योंकि इंटरनेट तारीख से चलता है।’

इंटरनेट पर बहुत सारी सामग्री पड़ी है। इसलिए मेहनत की बजाय अपने मनोनुकूल विषय को कट-पेस्ट करने में उन्हें अधिक सहूलियत होती है। हिंदी में बहुत सारी कहानियां और कुछ उपन्यास तो दूसरे भाषाओं जैसे कि ईरानी, अंग्रेजी, फ्रेंच आदि से अनूदित कर अपने नाम से लिख लिए जाते हैं। दूसरी भाषा में होती हैं, इसलिए यह बात जल्दी पकड़ में भी नहीं आती है।

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