आखिर कैसे रोकी जा सकती है उत्तर कोरिया की मनमानी
उत्तर कोरिया द्वारा किए गए हाइड्रोजन बम के परीक्षण के बाद वैश्विक फलक पर यह चर्चा अब आम है कि आखिर ऐसी मनमानी का क्या उपचार हो?
सुशील कुमार सिंह
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तमाम नसीहत और धमकी के बावजूद उत्तर कोरिया ने वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद दुनिया के किसी देश को नहीं रही होगी। उत्तर कोरिया के इस दुस्साहस के चलते वैश्विक फलक पर यह चर्चा अब आम है कि आखिर ऐसी मनमानी का क्या उपचार हो? वैसे देखा जाय तो निडर उत्तर कोरिया ने पहले ही कई बार दुस्साहस का परिचय देते हुए दुनिया के माथे पर बल ला चुका है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बंदिशें कई बार उस पर थोपी गईं, बावजूद इसके वहां के तानाशाह किम जोंग को काबू करना तो छोड़िए इसके दुस्साहस का कोई तोड़ नहीं ढूंढ़ा जा सका। लिहाजा अब समय आ गया है कि इन प्रतिबंधों तक ही सीमित न होकर वैश्विक समुदाय उत्तर कोरिया को अलग-थलग करने की सोचे। जब तक वहां के तानाशाह किम जोंग को सबक नहीं सिखाया जाएगा तब तक वह दुनिया की चिंता को समझ नहीं पाएगा।
गौर करने वाली बात यह भी है कि इन दिनों अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। बावजूद इसके उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण से यह साफ है कि फिलहाल उसे किसी धमकी का असर बिल्कुल नहीं है। इतना ही नहीं अभी चंद दिनों पहले ही उसके द्वारा दागी गई एक मिसाइल जापान के ऊपर से गुजरी थी जिसे लेकर चर्चा अभी शांत नहीं हुई थी कि एक और परीक्षण करके उसने दुनिया को फिलहाल थर्रा दिया है। माना जा रहा है कि यह बम नौ अगस्त, 1945 को नागासाकी पर गिरे बम से पांच गुना ज्यादा शक्तिशाली तो है ही इसके अलावा इसे मिसाइल से भी दागना पूरी तरह संभव है।
2011 में सत्ता में आने के बाद से किम जोंग का पूरा ध्यान सैन्य आधुनिकीकरण पर है। तभी से परमाणु हथियार को लेकर उस पर सनक सवार है। वैसे उत्तर कोरिया में परमाणु आकांक्षा 1960 के दशक से ही देखी जा सकती है। यह चाहत न केवल अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के खिलाफ है, बल्कि वह ऐतिहासिक साझेदार चीन और रूस पर निर्भरता से भी मुक्त होने के चलते है। क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से विश्व के कई छोटे देशों में शुमार उत्तर कोरिया वैश्विक नियमों को दरकिनार करते हुए अपने निजी एजेंडे को तवज्जो दे रहा है। उसकी प्राथमिकता मिसाइल और परमाणु परीक्षण जारी रखना है ताकि युद्ध की स्थिति में उसके पास पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता हो।
उत्तर कोरिया अक्सर लीबिया और इराक जैसे देशों का उदाहरण देता है और उसका मानना है कि यदि वे क्षमतावान होते तो उनका हश्र ऐसा न होता। वह लगातार अमेरिका की निंदा भी करता रहा है। यह संभव है कि उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों के दम पर दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था और जनसंख्या को चुनौती देने लगे, साथ ही अमेरिका के गले की हड्डी भी बन जाए। गौरतलब है कि अमेरिका और उत्तर कोरिया कहीं न कहीं युद्ध के मुहाने पर भी खड़े हैं, पर असल चिंता यह है कि जिस सीटीबीटी और एनपीटी सहित कई कार्यक्रमों के सहारे परमाणु हथियारों की रोकथाम के लिए बीते पांच दशकों से तमाम कोशिशें की जा रही हैं आखिर उसका क्या होगा?
परमाणु बम की होड़ में दुनिया को खड़ा करके उत्तर कोरिया बड़े अपराध को न्योता बरसों से देने में लगा है। सभ्य दुनिया का चेहरा ऐसा तो नहीं होता जैसा वहां के तानाशाह किम जोंग का है और सहने की सीमा भी इतनी नहीं होती जैसे कि शेष दुनिया इन दिनों तमाशबीन बनी हुई है। जो दुनिया परमाणु हथियारों का समाप्त करने की मनसूबा रखती है उसी में से एक अदना सा देश अगर इसकी होड़ विकसित करे तो क्या रास्ता अपनाया जाय? इस पर अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है। यह बात अक्सर कही जाती रही है कि मामले कूटनीति से निपटाए जाएंगे, पर उत्तर कोरिया शायद इसकी परिभाषा और व्याख्या से भी अछूता है। फिलहाल दुनिया के मानचित्र में छोटा दिखने वाला उत्तर कोरिया बड़ा दुस्साहस दिखाकर सभी को एक बार फिर बेचैन कर दिया है।
(लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं)