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GDP में गिरावट से सरकार के माथे पर चिंता की लकीर, फिर भी आगे बढ़ने को तैयार

चालू वित्त वर्ष की दो तिमाहियों में सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट को लेकर केंद्र सरकार का चिंता करना स्वाभाविक ही है। इसका असर अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 25 Sep 2017 10:31 AM (IST)Updated: Mon, 25 Sep 2017 10:55 AM (IST)
GDP में गिरावट से सरकार के माथे पर चिंता की लकीर, फिर भी आगे बढ़ने को तैयार
GDP में गिरावट से सरकार के माथे पर चिंता की लकीर, फिर भी आगे बढ़ने को तैयार

सतीश सिंह

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चालू वित्त वर्ष की दो तिमाहियों में सकल घरेलू उत्पाद (जीपीडी) में गिरावट आने के बाद विकास को लेकर केंद्र सरकार का चिंता करना स्वाभाविक ही है। फिलहाल, अर्थव्यवस्था पर छाई मंदी दिखाई देने लगी है। स्थिति पर काबू पाने के लिए सरकार सार्वजनिक खर्च को बढ़ाने पर विचार कर रही है। हालांकि इससे राजकोषीय घाटे पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। फिर भी सरकार इस राह पर चलने के लिए तैयार है, क्योंकि मौजूदा समय में पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी करके ही विकास के विविध मानकों में तेजी लाई जा सकती है। पूंजी व्यय का मतलब है सरकारी खर्च में बढ़ोतरी करना। सरकार के खर्च को दो हिस्सों में बांटा जाता है। एक होता है पूंजीगत व्यय और दूसरा होता है राजस्व व्यय। सरकारी परिसंपत्तियों में वृद्धि करने वाले खर्चो को पूंजीगत व्यय कहा जाता है, जैसे पूल निर्माण। राजस्व व्यय वह होता है जिससे जिनसे न सरकार की उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होती और न ही आय जैसे वेतन व पेंशन। उदाहरण के तौर पर सड़क एवं आवास क्षेत्र में निवेश करने पर सीमेंट, छड़, रेत आदि की मांग में इजाफा होगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। मौजूदा समय में औद्योगिक गतिविधियों, बुनियादी क्षेत्र, रोजगार के अवसरों आदि में सुस्ती का माहौल बना हुआ है। उत्पादों की मांग में सुस्ती और खर्च करने से परहेज करने के कारण विकास का गुलाबीपन मद्दिम पड़ रहा है। माना जा रहा है कि पूंजीगत व्यय में वृद्धि होने से अर्थव्यवस्था में सुधार आ सकता है।

इसीलिए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली, वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु, रेलवे एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल, नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार एवं वित्त, वाणिज्य एवं रेल मंत्रलयों के वरिष्ठ अधिकारियों ने हाल ही में पूंजीगत व्यय को बढ़ाने के लिए उपलब्ध विकल्पों पर विचार-विमर्श किया है। वैसे, सरकार हमेशा से राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के अंदर रखना चाहती है, लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार को अर्थव्यवस्था में गति लाने के लिए पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी करनी होगी। इसलिए चालू वित्त वर्ष में पूंजीगत व्यय को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है, जो कि2016-17 के मुकाबले 25 प्रतिशत अधिक और संशोधित अनुमान 2.80 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 11 प्रतिशत अधिक है। ऐसे में सवाल का उठना लाजिमी है कि व्यय को बढ़ाने के लिए राजस्व के स्नोत क्या होंगे। वर्तमान में सरकार विनिवेश के विकल्प को सबसे कारगर मान रही है। एयर इंडिया का विनिवेश इस साल किया जा सकता है। पहले इसके विनिवेश में समय लगने की बात कही जा रही थी। केंद्र सरकार बाजार से भी उधारी ले सकती है।

गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में 5.8 लाख करोड़ रुपये सकल उधारी का लक्ष्य रखा गया है, वहीं कुल विनिवेश का लक्ष्य 72,500 करोड़ रुपये है। सरकार गैर-वित्तीय प्रोत्साहन के उपायों पर भी विचार कर रही है, जिसके तहत केंद्रीय एजेंसियों द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड जारी किया जा सकता है। सरकार बैंकों के पुनर्पूजीकरण के विभिन्न विकल्पों पर भी विचार कर रही है। इस आलोक में ऋण बाजार से पूंजी जुटाई जा सकती है अथवा फिर सरकार बैंकों में अपनी हिस्सेदारी को कम कर सकती है। कुछ सरकारी बैंकों का निजीकरण भी किया जा सकता है। वर्तमान में पूंजीगत व्यय और राजस्व में अंतर 5.05 लाख करोड़ रुपये है, जो पूरे वित्त वर्ष के 5.46 लाख करोड़ रुपये का करीब 92 प्रतिशत है। नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद कंपनियों द्वारा स्टॉक खाली करने और नए स्टॉक रखने से परहेज करने के कारण अप्रैल-जून तिमाही में आर्थिक विकास दर कम होकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई, जिसके कारण दूसरी तिमाही में भी जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई, जो वित्त वर्ष 2016-17 की अप्रैल-जून तिमाही के 7.9 प्रतिशत के मुकाबले काफी कम है।

दूसरी तरफ जीएसटी के लागू होने के बाद से सरकार के राजस्व प्राप्ति में भी कमी दृष्टिगोचर हो रही है,जबकि चालू वित्त वर्ष के दोनों तिमाहियों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रही। 1इधर, अप्रैल-जून 2017 में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर कम होकर 1.2 प्रतिशत रह गई, जो जनवरी-मार्च में 5.3 प्रतिशत थी। खनन और संबंधित गतिविधियों में भी आलोच्य अवधि के दौरान 0.7 प्रतिशत की कमी आई। कृषि विकास दर पिछले तिमाही के 5.2 प्रतिशत और अक्टूबर-दिसंबर 2016-17 की 6.9 प्रतिशत के मुकाबले कम होकर 2.3 प्रतिशत रह गई। एक अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में यदि राजस्व के आंकड़े नहीं बदलते हैं तो प्रत्येक 1,000 करोड़ रुपये के खर्च पर राजकोषीय घाटा जीडीपी के 0.1 प्रतिशत से कम दर से बढ़ेगा। इस तरह पूंजीगत व्यय में 40,000 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी से राजकोषीय घाटा बजट लक्ष्य के 3.2 प्रतिशत के मुकाबले बढ़कर 3.5 प्रतिशत हो सकता है।

देखा जाए तो भारत जैसे विकासशील देश में निवेश का जिम्मा सरकार ने ले रखा है। निजी निवेश और विदेशी संस्थागत निवेश का प्रतिशत भारत में बहुत कम है, जबकि निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार निवेशकों को ढेर सारी सुविधाएं देती है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पूंजीगत व्यय को बढ़ाने के लिए सरकार को ही आगे आना होगा। पूंजीगत व्यय में वृद्धि से भले ही शुरू में राजकोषीय घाटे में वृद्धि होगी, लेकिन जैसे ही विविध उत्पादों के मांग एवं खपत में बढ़ोतरी होगी। इससे स्थिति में सकारात्मक बदलाव का आना शुरू हो जाएगा, जिसकी पुष्टि ब्लूमबर्ग ग्लोबल बिजनेस फोरम की बैठक में विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यांग किम ने की है। उनका कहना है कि भारत तेज गति से वृद्धि कर रहा है। अर्थव्यवस्था में छाई मंदी अस्थायी है और यह दौर बहुत ही जल्द खत्म हो जाएगा। किम के मुताबिक भारत में निजी क्षेत्र और सरकार के बीच सहयोग बढ़ाने, विदेशी निवेश में बढ़ोतरी, बुनियादी ढांचा को मजबूत करने, स्वास्थ्य और शिक्षा में बेहतरी आदि को सुनिश्चित करने की जरूरत है, जिसे करने में सरकार समर्थ है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं) 


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